रविवार, 28 जून 2020

थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं

थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं
कभी कभी आज भी ऐसा लगता है
खिड़की से आती हवा का
चेहरे को सहलाना अब भी अच्छा लगता है
सड़क पर चलते चलते बेखबर
सीटी बजाना अब भी अच्छा लगता है
अब भी अच्छा लगता है
शरारत करना
अच्छा लगता है पानी को छूना
किसी पंछी संग ख्यालों में उड़ जाना
टीन की छत पर नंगे पाओ फुदकना
दो बादलों के फुग्गों बीच
टांगे पसारे तैरते चले जाना
अब भी अच्छा लगता है
बुखार में आइसक्रीम खाना
अच्छा लगता है उड़ते जहाज़ की पूंछ पकड़ कर
हो हो चिल्लाना
किसी नौसिखुए की पतंग लूट लाना
अब भी अच्छा लगता है
पड़ोसी के घर की दीवारें फांद जाना
अच्छा लगता है अब भी
दरवाज़ा खटखटा कर भाग जाना
अब भी अच्छा लगता है
 छिपे रहकर टीप मार जाना
 अच्छा लगता है बस इस
 अच्छे लगने के एहसास में
 अच्छे लग जाना
 एक लंगड़ी टांग से
 इक्खट दुक्खट में
 दुनिया नाप जाना
थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं
कभी कभी आज भी ऐसा लगता है।




सौम्या वफ़ा।(9/8/2019).

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें