सोमवार, 1 जून 2020

डोर

कच्ची डोर है इश्क़
बिजली का तार नहीं
हौले हौले उठती गिरती
तरंगें हों,तो है बात कोई
एक बार के झटके में
जल जाने का मज़ा ख़ाक नहीं
इश्क़ की डोर चले थोड़ी सीधी
उड़ ले सांसें भर के जब ढील दें
तनातनी की बात में
तोड़ मरोड़ है
रिश्ता बेजोड़ नहीं
तेज़ आंच पे चढ़े इश्क़ में
मद्धम आंच का स्वाद नहीं
छूटे अगर हाथ तो
छोड़ दो सरल डोर भी
टुकड़ों से ख़ाली हाथ भले
टुकड़ों से बसता संसार नहीं
डोर आए तो सहेज लो
गांठों का पैबंद का कोई मोल नहीं
जो जाने कि इश्क़ है
तार बिजली
वो छिपा छिपा रखते हैं जेबों में
ख़ुद के हांथ जले
इश्क़ की डोर सब्र से
चरखा चढ़े
हौले हौले कातें
हौले हौले सिएं
चाहे तो बना लें ओढ़नी
चाहे तो रज़ाई बुन लें।


सौम्या वफ़ा।०©

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