गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

दूर के ढोल

ये दुनिया है दूर के ढोल सुहावनी
हर किसी को है अपनी छौंकनी
हर किसी को है अपनी बघारनी
सच्चा सौदा करे जो
खा जाए वो ही गच्चा
पेट ख़ाली
जेबें ख़ाली
दिल थोड़ा थोड़ा रोए
छुप के मां के आंचल में
जैसे रोए बच्चा
थोड़ा चोरी कर ले ख़बरें
थोड़ा जमकर पीटे थाली
कुछ निकलकर खुल्लखुल्ला
हरकतें कर ले मवाली
दिन भारी भारी हो चले हैं
रातें पूरी बवाली
मुंह पर अंगौछा बांधे
मनाए है बिन मौसम दिवाली
अगली सुबह भर भर के
कुट्टमस कर दे उनकी
जो बचाए हैं जान हमारी
अब हर सुबह ख़ुदा खड़ा है
लेके हाथ में डमरू
नाचें हम सब बने जमूरे
एक वो ही ठहरा असली मदारी
एक डुग - डुग हुई नहीं कि
दिल कांपता है धुक- धुक
कश्ती कीचड़ में है जम गई
ना जहाज़ उड़े
ना दौड़े छुक - छुक
लुटेरे बने लूटते रहे
कुदरत को
लूट सके जब तक
अब ख़ुदा ने लाठी ऐसी मारी
कीमतें चुकानी पड़ रही हैं भारी
जल गई है कितनों की रस्सी
फ़िर भी अकड़ नहीं गई सारी
चूल्हा चौका हो गया भसम
दाल गली नहीं
रोटी झुलस गई बेचारी
जिधर देखो उधर
चार कंधों पर
निकल पड़ी है एक सवारी
जाने कब तक चलेगा खेल निराला
ना कहना ये कहावतें हैं पुरानी
दादी नानी की है कहानी
थोड़ा तो अब सुधर जाओ
कि ना पछताना होए दोबारा
ये दुनिया है दूर के ढोल सुहावनी
हर किसी को है अपनी छौंकनी
हर किसी को है अपनी बघारनी ।



सौम्या वफ़ा।©

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