उतरी एक बार फिर छत से कांच पे जो बारिश
धुली धुली है फ़िर से
धूल भरी जो थी यादें सारी
रंग सारे हैं फ़िर रंग बिरंगे
भीगे भीगे भीने भीने
कुछ हरे कुछ नीले
तुम कहो ना कहो
मैं मिलूं ना मिलूं
उतरेंगी जब जब बारिशें
याद आएंगी वो तारीखें
वो नई नई खिली कलियां
और वो बगिया से उखड़ी तुलसी
याद आएंगी वो मुलाकातें
वो शिकायतें
याद आएंगी वो रूठने मनाने की
मनुहारें सारी
मेरी आंखों से गुज़र के
तुम्हारी धड़कनों में उतरती
हवा की धुन बावरी
याद आएंगी दो हाथों के बीच
धधकती भरी बरसात में आग
याद आएंगी वो सब सांसों की
चढ़ती उतरती लयकारी
याद आएगी
उंगलियों पे चक्कर काटती हैरानी
याद आएगी कांचों को सजाती
दुनिया पे पर्दा डाले
तेरी मेरी हर सांस की धुंध से बनी चित्रकारी
याद आएंगे यादों में
पांव भूल गए हैं जिधर का रास्ता
रास्ते भूल गए हैं जो मंजिलें पुरानी
वो रास्ते सारे फ़िर चल पड़ेंगे
जब जब पांव के नीचे आएगी
रिमझिम फुहार बनके पिचकारी
दो आंसुओं के कतरे होंगे साथ हमेशा
आंखों से कानों तक
कानों से ठोनी तक झूल के उतरते
जैसे हल्के हल्के इतराते मोती के बूंदे
याद आएंगी खो चुकी खुशबुएं
साथ साथ हल्की सी भारी
मुस्कानों की गठरी
याद आएंगी खुशियों के वादों पे मिली
आंसुओं की सौगात
याद आएंगी सारी बातें
और उन बातों का हर हिसाब
याद आएंगी समन्दर को बूंदों से भरकर
तर देने की बात
याद आएंगी आकाश की धरती से मिलन की
वो अनदेखी बात
याद आएगी वो तरपन की रात
याद आएगी बाकी रह गई है
मेरी जो हर बात
याद आएगी तुमपे जो है बाकी
मेरी मिट्टी की खुशबूओं की उधारी
और बीत जाएंगी टपकते टपकते
छत से
कांच को धोते धोते बारिश सारी
बाकी होंगी बाद फ़िर सर्दी की बर्फ़
गर्मी की धूल
जिनमें बिसर जाएंगे फ़िर ये
गीत मल्हारी
के फ़िर आएंगी जब बूंदें
उतरेगी छत से कांच पे जो बारिश
धुली धुली होगी फ़िर से
धूल भरी जो थीं यादें सारी
सिलसिला है ये मौसमों का
सिलसिला रहेगा जारी....
सौम्या वफ़ा।©
धुली धुली है फ़िर से
धूल भरी जो थी यादें सारी
रंग सारे हैं फ़िर रंग बिरंगे
भीगे भीगे भीने भीने
कुछ हरे कुछ नीले
तुम कहो ना कहो
मैं मिलूं ना मिलूं
उतरेंगी जब जब बारिशें
याद आएंगी वो तारीखें
वो नई नई खिली कलियां
और वो बगिया से उखड़ी तुलसी
याद आएंगी वो मुलाकातें
वो शिकायतें
याद आएंगी वो रूठने मनाने की
मनुहारें सारी
मेरी आंखों से गुज़र के
तुम्हारी धड़कनों में उतरती
हवा की धुन बावरी
याद आएंगी दो हाथों के बीच
धधकती भरी बरसात में आग
याद आएंगी वो सब सांसों की
चढ़ती उतरती लयकारी
याद आएगी
उंगलियों पे चक्कर काटती हैरानी
याद आएगी कांचों को सजाती
दुनिया पे पर्दा डाले
तेरी मेरी हर सांस की धुंध से बनी चित्रकारी
याद आएंगे यादों में
पांव भूल गए हैं जिधर का रास्ता
रास्ते भूल गए हैं जो मंजिलें पुरानी
वो रास्ते सारे फ़िर चल पड़ेंगे
जब जब पांव के नीचे आएगी
रिमझिम फुहार बनके पिचकारी
दो आंसुओं के कतरे होंगे साथ हमेशा
आंखों से कानों तक
कानों से ठोनी तक झूल के उतरते
जैसे हल्के हल्के इतराते मोती के बूंदे
याद आएंगी खो चुकी खुशबुएं
साथ साथ हल्की सी भारी
मुस्कानों की गठरी
याद आएंगी खुशियों के वादों पे मिली
आंसुओं की सौगात
याद आएंगी सारी बातें
और उन बातों का हर हिसाब
याद आएंगी समन्दर को बूंदों से भरकर
तर देने की बात
याद आएंगी आकाश की धरती से मिलन की
वो अनदेखी बात
याद आएगी वो तरपन की रात
याद आएगी बाकी रह गई है
मेरी जो हर बात
याद आएगी तुमपे जो है बाकी
मेरी मिट्टी की खुशबूओं की उधारी
और बीत जाएंगी टपकते टपकते
छत से
कांच को धोते धोते बारिश सारी
बाकी होंगी बाद फ़िर सर्दी की बर्फ़
गर्मी की धूल
जिनमें बिसर जाएंगे फ़िर ये
गीत मल्हारी
के फ़िर आएंगी जब बूंदें
उतरेगी छत से कांच पे जो बारिश
धुली धुली होगी फ़िर से
धूल भरी जो थीं यादें सारी
सिलसिला है ये मौसमों का
सिलसिला रहेगा जारी....
सौम्या वफ़ा।©
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