शनिवार, 11 जुलाई 2020

फ़िर बारिश

उतरी एक बार फिर छत से कांच पे जो बारिश
धुली धुली है फ़िर से
धूल भरी जो थी यादें सारी
रंग सारे हैं फ़िर रंग बिरंगे
भीगे भीगे भीने भीने
कुछ हरे कुछ नीले
तुम कहो ना कहो
मैं मिलूं ना मिलूं
उतरेंगी जब जब बारिशें
याद आएंगी वो तारीखें
वो नई नई खिली कलियां
और वो बगिया से उखड़ी तुलसी
याद आएंगी वो मुलाकातें
वो शिकायतें
याद आएंगी वो रूठने मनाने की
मनुहारें  सारी
मेरी आंखों से गुज़र के
तुम्हारी धड़कनों में उतरती
 हवा की धुन बावरी
 याद आएंगी दो हाथों के बीच
 धधकती भरी बरसात में आग
 याद आएंगी वो सब सांसों की
 चढ़ती उतरती लयकारी
 याद आएगी
  उंगलियों पे चक्कर काटती हैरानी
  याद आएगी कांचों को सजाती
  दुनिया पे पर्दा डाले
  तेरी मेरी हर सांस की धुंध से बनी चित्रकारी
  याद आएंगे यादों में
  पांव भूल गए हैं जिधर का रास्ता
  रास्ते भूल गए हैं जो मंजिलें पुरानी
  वो रास्ते सारे फ़िर चल पड़ेंगे
  जब जब पांव के नीचे आएगी
  रिमझिम फुहार बनके पिचकारी
  दो आंसुओं के कतरे होंगे साथ हमेशा
  आंखों से कानों तक
  कानों से ठोनी तक झूल के उतरते
  जैसे हल्के हल्के इतराते मोती के बूंदे
 याद आएंगी खो चुकी खुशबुएं
 साथ साथ हल्की सी भारी
 मुस्कानों की गठरी
 याद आएंगी खुशियों के वादों पे मिली
 आंसुओं की सौगात
 याद आएंगी सारी बातें
 और उन बातों का हर हिसाब
 याद आएंगी समन्दर को बूंदों से भरकर
 तर देने की बात
 याद आएंगी आकाश की धरती से मिलन की
 वो अनदेखी बात
 याद आएगी वो तरपन की रात
 याद आएगी बाकी रह गई है
 मेरी जो हर बात
 याद आएगी तुमपे जो है बाकी
 मेरी मिट्टी की खुशबूओं की उधारी
 और बीत जाएंगी टपकते टपकते
 छत से
 कांच को धोते धोते बारिश सारी
 बाकी होंगी बाद फ़िर सर्दी की बर्फ़
 गर्मी की धूल
 जिनमें बिसर जाएंगे फ़िर ये
 गीत मल्हारी
 के फ़िर आएंगी जब बूंदें
 उतरेगी छत से कांच पे जो बारिश
 धुली धुली होगी फ़िर से
 धूल भरी जो थीं यादें सारी
 सिलसिला है ये मौसमों का
 सिलसिला रहेगा जारी....



सौम्या वफ़ा।©



 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें