रविवार, 28 जून 2020

दो लोग

दो बरस पहले दो लोग मिले थे
आज वो ढूंढ के भी नहीं मिल पाते हैं
लेकर आए थे साथ जो तुम
थोड़ी अपनी मिश्री थोड़ा अपना नमक
लेकर अाई थी जो मैं
थोड़ी अपनी शहद थोड़ा अपना नमक
अब ना तुममें मिश्री है
ना मुझमें नमक
अब ना मुझमें मिठास है ना तुममें नमक
बस अब तुम्हारी गर्मी मुझमें है
और तुम में सांस लेती है
मेरी वही गमक
आंखें अब भी जब टकराती हैं
बोलती भी हैं और शर्माती भी हैं
जान अब भी है
मगर उतनी ही जितनी
 सांस खींच ले जाती है
 दो हाथ अब भी एक दूसरे को
 एक ही जिस्म और जान का हिस्सा जानते हैं
 दोनों के सिर अब भी अपना अपना सिरहाना
 अपने हमजान के सीने पे पहचानते हैं
 बस पहले दो जानें
 खुशियों के लिबास में
 संवर कर आती थीं
 अब दो मर्ज़ मिलते हैं
 अपने अपने मुदावे से
 और कफ़नों में लिपट के आते हैं
 जीने भर को ज़रूरी हो जितना
 उतना भर
 हवा से नमक
 आसमां से मिश्री चुराते हैं
 जीने भर को ज़रूरी हो जितना
 बस उतना ही जी के रह जाते हैं।



सौम्या वफ़ा।(6/2/2020).

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