गुरुवार, 28 मई 2020

मैं और इश्क़

तुम्हें इश्क़ है तो शाख़ हो जाओ
मैं लौट कर हर बार तुम तक आऊंगी
जो डालोगे डोरे कै़द के
तो फुर्र फुर्र हो जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो नीला आसमां हो जाओ
मैं महज़ पंछी नहीं परवाज़ भी हूं
मैं उड़ उड़ कर तुम पर छा जाऊंगी
जो चाहोगे कहीं ठहर के बना लें बसेरा
तो बादलों में कहीं गुम हो जाऊंगी।
मुझे नशेमन का शौक़ नहीं
मेरे पंखों में महज़ उड़ानों का ज़िक्र है
शाख़ों से है इश्क़ मुझे
मुझे खौफ़ नहीं खौफ़ का
बस क़फ़स से खौफ़ है
जो चाहो संग जीना
तो ज़िन्दगी बन जाओ
मैं हर परवाज़ पे तुमको जी जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो शाख़ हो जाओ
मैं हर बार लौट कर तुम तक आऊंगी।





सौम्या वफ़ा।०


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