रविवार, 28 जून 2020

दुआ

जब हम नहीं पहुंच पाते
तो दुआ भेज देते हैं
नम आंखों को
नर्म आवाज़ को
ख़ुद में समेट लेते हैं
घर का दरवाज़ा खटखटाते हैं
केवल मुस्कुराहटें और तोहफ़े
और बातों बातों में ही बस
मिठाईयां बटोर लेते हैं
हलक में जाने क्या अटक सा जाता है
झाड़ पोंछ कर उसे फ़िर
एक बक्से में लपेट देते हैं
इसी तरह दूर दूर से हम
करीब के सारे
रिश्ते सहेज लेते हैं
जब हम नहीं पहुंच पाते हैं तो
दुआ भेज देते हैं।



सौम्या वफ़ा।(14/8/2019)

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