बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुसाफ़िर

 मुसाफ़िर हो या राहें दोनों को बस 

गुज़रते चले जाने की

ख़्वाहिश नौशाद है

कि भटकते रहने में पुर सूकूं ए एहसास है

मंज़िल से ख़ूबसूरत हैं मुसाफ़िर को राहें

मुसाफ़िर से ना पूछ कि

ठहर जाने का क्या इंतज़ाम है

ख़्वाबों में ही महज़ ठहरते हैं राही

मंज़िल राहों का आख़िरी इत्मेनान है

ठहरा पानी क्या ही जाने

बहते चले जाना कैसी प्यास है

बस गुजरते चले जाने की ख़्वाहिश नौशाद है।

सौम्या वफ़ा।©





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