सोमवार, 21 सितंबर 2020

खु़दी

 रोशनी के तले

स्याह सी खिंची लकीर है कोई

कांच के उस दोहरे बदन के पार

अपना ही हमसाया है कहीं

बोतल में बंद जिन्न सी है खु़दी 

मुझे ढूंढ के लानी है 

खु़दी में वो फूंक तिलस्मी

तकदीरों से परे

सितारों से बढ़ानी है पहचानें और भी

एक पर्दा है धूप का

इक दीवार है पानी की

जिसके उस पार अब भी बाकी है ख़्वाहिश

ख़ुद को आज़माने की।

रहें या ना रहें निशां

एक बार ज़िन्दगी को 

छू के गुज़र जाने की।


सौम्या वफ़ा।©

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