शुक्रवार, 15 मई 2020

शब्दों का जादूगर

वो शब्दों का जादूगर था
शब्दों के लिए जज़्बातों को बेच आया था
उधारी पर बड़े बड़े तोहफ़े खूब लाया था
जिगरा तो था ही नहीं ,
 दिल भी गिरवी रख आया था
 बहानों की लंबी चौड़ी फ़ेहरिस्त भी
 ज़ुबान पर उतार लाया था
 उसके दिल में क्या था वो ही जाने
 या राम जाने
 जिस राम का ढोंग वो
 कृष्ण से कर आया था
 चढ़ाने को जिस्म की अंगीठी पर
 राशन भरपूर लाया था
 मगर दिल की अधगली दाल में
 पंसारी से कंकड़ भरवा आया था
 सौदे का खरा था
 इरादों का नहीं
 लेकर प्यार का सारा
 कच्चा माल
  चौगुने मोल में
 पैकिंग नई कर के देता जा रहा था
 कोरे पन्नों को शुरू शुरू में पैकिंग
 का नया रंग
 दिलो जान से भाया था
 रंग उतरा तो अन्दर
 सब निल बटे सन्नाटा छाया था
 बड़बोली उसकी शब्दों की
 दुकान पर मैंने उस दिन
 अलीगढ़ी ताला पाया था
 सुना है अपने ही घर उसने चोरी की थी
 और वहीं बिस्तर पर
 मेरा प्यार बिसरा आया था
 उसके हाथ में मैंने
  अपने घर की चाबी दी थी
 वो जाने कहां गिरा आया था
 जादूगर से वो सीधा बन गया जोगी
 लेकर गायब हो गया था
 मेरे खज़ाने भरी तिज़ोरी
 कर के सच की बत्ती गुल
 अंधेरे की धूल आंखों में झोंक कर
 वो सबको अंधा कर आया था
 वो शब्दों का जादूगर था
 शब्दों के लिए
 जज़्बातों को बेच आया था।




@सौम्या वफ़ा।©


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