शुक्रवार, 15 मई 2020

ग़ज़ल

तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की
नर्मी क्यूं चुरा ले गए
उतरती थी इतरा के पन्नों पर जो स्याही
उस सुर्ख़ श़बाब की
शो़खी क्यूं  उड़ा ले गए
महकता था जो पन्नों पे
कन्नौज का श़हर
उस बसे बसाए श़हर की
ख़ुशबू क्यूं  चुरा ले गए
मेरे शामियाने में आती थी
ज़रा देर से सहर
तुम गए तो गए
मगर ये रात के पैराहन
क्यूं उतार ले गए
मेरी आंखों सी बोलती थी मेरी क़लम
तुम गए तो गए मगर मेरी क़लम को
आख़िरी कलमा क्यूं पढ़ा गए
तुम गए तो गए
मगर मेरी हर ग़ज़ल को
नाम शायर क्यूं रटा गए
आब को आग़ से क्यूं बुझा गए
तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की नर्मी क्यूं चुरा ले गए?



@सौम्या वफ़ा।©




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