कभी इक दौर था हम भी हक़ीक़त नहीं
ख़्वाबों में जीते थे
बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे
टेढ़ी हर लकीर को सीधी कर लेते थे
किसी के घर सुबह की रौनक को
अपनी रातें काली कर लेते थे
भूल आते थे जानकर उनके घर छतरियां
जिनके घर बारिश में भीगे थे
थोड़ा उनके प्याले की मिठास बढ़ाने को
ख़ुद की चाय फीकी कर लेते थे
महके किसी का आंगन सौंधा सौंधा
माटी सा
हम ख़ुद की ज़मीनें बंजर कर देते थे
वो पूछें महकी है कहां से ये ख़ुशबू
तो बदल बदल कर नाम
इत्रों पर इल्ज़ाम मढ़ देते थे
छिपकर मगर दरअसल
अश्कों से मूंह धोते थे
कभी वो रूठें तो रो पड़ते
कभी वो मनाते तो खिलखिलाकर हंस देते थे
मासूम से थे पर नादान नहीं
जानते थे सौदा है महंगा
और हम ठहरे फ़कीर अनाड़ी
कौड़ी को हीरे के भाओ तोलते थे
फ़िर भी किश्तें पूरी करने को
बार बार मुहब्बत गिरवी रख देते थे
कभी इक दौर था हम भी हक़ीक़त नहीं
ख़्वाबों में जीते थे
बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे ।
सौम्या वफ़ा।©
ख़्वाबों में जीते थे
बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे
टेढ़ी हर लकीर को सीधी कर लेते थे
किसी के घर सुबह की रौनक को
अपनी रातें काली कर लेते थे
भूल आते थे जानकर उनके घर छतरियां
जिनके घर बारिश में भीगे थे
थोड़ा उनके प्याले की मिठास बढ़ाने को
ख़ुद की चाय फीकी कर लेते थे
महके किसी का आंगन सौंधा सौंधा
माटी सा
हम ख़ुद की ज़मीनें बंजर कर देते थे
वो पूछें महकी है कहां से ये ख़ुशबू
तो बदल बदल कर नाम
इत्रों पर इल्ज़ाम मढ़ देते थे
छिपकर मगर दरअसल
अश्कों से मूंह धोते थे
कभी वो रूठें तो रो पड़ते
कभी वो मनाते तो खिलखिलाकर हंस देते थे
मासूम से थे पर नादान नहीं
जानते थे सौदा है महंगा
और हम ठहरे फ़कीर अनाड़ी
कौड़ी को हीरे के भाओ तोलते थे
फ़िर भी किश्तें पूरी करने को
बार बार मुहब्बत गिरवी रख देते थे
कभी इक दौर था हम भी हक़ीक़त नहीं
ख़्वाबों में जीते थे
बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे ।
सौम्या वफ़ा।©
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