रविवार, 10 मई 2020

अंजुली

कभी मुट्ठी में बंद था
अंजुली भर सारा आकाश
मुट्ठी खुली तो कैद से छूटा आकाश
सारे आकाश पर है अब
 खुले पंखों की छाप
 बिखर गए मोती जाली
रह गई सच की कंठी साथ
फिसले जादू के महल सारे
छूट गई हाथ से
बेहरूपिए की ताश
एक  अंजुली सागर समान
जाने ना आकाश का अभिमान
मिली अंधेरे में सच की लौ
जब छोड़ा मुट्ठी से कांच
ना रहे डर में छिपे चेहरे नक़ली
 ना रहे स्वारथ चाशनी के पाश
अज्ञानी की राह से उड़ गई अंजुली
पंछी बन नील गगन के उस पार।



@सौम्या वफ़ा।©®

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