सोमवार, 11 मई 2020

मर्ज़ी

तुम रौंद दो हमें ये तुम्हारी मर्ज़ी है
हम बनके गुलिस्तां महकते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है
माना की ख़ुशबू़ओं से इंकार
गुलों पे पर्दा
ये तुम्हारी खु़दगर्ज़ी है
हम बाग़ सजाए
 खु़शबुएं बिखेरते रहें
  ये हमारी खु़दगर्ज़ी है
  जितना चाहे बिगाड़ लो चमन की आबो हवा
हम गुल बनकर खिलते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है।


सौम्या वफ़ा।©

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