तुम रौंद दो हमें ये तुम्हारी मर्ज़ी है
हम बनके गुलिस्तां महकते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है
माना की ख़ुशबू़ओं से इंकार
गुलों पे पर्दा
ये तुम्हारी खु़दगर्ज़ी है
हम बाग़ सजाए
खु़शबुएं बिखेरते रहें
ये हमारी खु़दगर्ज़ी है
जितना चाहे बिगाड़ लो चमन की आबो हवा
हम गुल बनकर खिलते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है।
सौम्या वफ़ा।©
हम बनके गुलिस्तां महकते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है
माना की ख़ुशबू़ओं से इंकार
गुलों पे पर्दा
ये तुम्हारी खु़दगर्ज़ी है
हम बाग़ सजाए
खु़शबुएं बिखेरते रहें
ये हमारी खु़दगर्ज़ी है
जितना चाहे बिगाड़ लो चमन की आबो हवा
हम गुल बनकर खिलते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है।
सौम्या वफ़ा।©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें