शुक्रवार, 15 मई 2020

धरती आकाश

धरती तो धरती है
जैसी की तैसी है
गिरगिट सा रंग बदले सारा आकाश
कभी धुला धुला नीला
कभी फीका काला धुंधला
कभी ग़ुलाबी कभी
सुनहरा कभी नारंगी है
धरती की वफ़ा एक तरफा
बावरी सी काटे प्रेम के चक्कर
पर आकाश का चाल चलन
अतरंगी है

कैसे निभे दोनों में
रोज़ क्षितिज पर मिलने की हो बात
धरती बैठी रहे लगाए आस
मगर आकाश के तो हैं रसीले ठाठ
चाहे जितने लगा लो जुगत उपाय

पर इधर सूरज ढला और
उधर  बिगड़ जाए हर जुगाड़
सुनाने को मिले कोई तो सुनाऊं
ये कसक की कहानी

सुनने में बड़ी सुहानी लगती है
करीबी हो कोई अगर
तो ही ये राज़ बताऊं

असल में , ये प्रेम नहीं
सदियों पुरानी रंजिश है।

आदम का हाथ नहीं
इसमें कुदरत की ही कोई साज़िश है।




@सौम्या वफ़ा।©



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