रविवार, 15 नवंबर 2020

असबाब

 मखमली ख़्वाब

सुरमई जज़्बात

पंख महताब

दो लबों पे आब

और मेरे पल्लू के कोने से बंधा

एक टुकड़ा आफ़ताब

जीने को काफ़ी है मेरे

बस इतना सा असबाब।


@saumya_wafa0 ©

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