शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

अपराजिता

 उसकी बात बात पे

कविता होती है

वो जीती है,

हंसती है;

हर बार मरती है

जीवित हो फिर फिर

जीवन के संग मचलती है

गिरती है, उछलती है,

संभलती है

उतरती है, चढ़ती है

जाने किस किस राह

मुड़ती है, चलती है

वो स्त्री है,

अंत से पहले नहीं रुकती है

सब मौसमों को झेलती, खेलती

वो सजती है, संवरती है

वो स्त्री सिर्फ़ स्त्री नहीं

वो अपराजिता होती है

उसकी मौन में

होती है कहानी

और बात बात पे कविता होती है

वो स्त्री है, वो कविता है

उसकी हर कहानी

अपराजिता होती है।


सौम्या वफ़ा।


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