शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

मैंने

 लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है

ज़माने ने जब तब धकेला है अंधेरों में

मैंने सीने पे पड़ गई दरारों से;

लौ की कोपलों को फोड़ा है

जलाया है बेखु़दी ने,

राख़ कर छोड़ा है

मैंने राख़ के ढेरों में खोया 

अपना,मिट्टी का दाना ढूंढा है

भीग भीग कर सींचा है सीना

फ़िर ख़ूब तपाया है

मैंने सूखे सेहराओं में

बवंडर की पीठ पे चढ़

बरसातों को आंखों से निचोड़ा है

लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है।



सौम्या वफ़ा।








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