लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार
मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है
ज़माने ने जब तब धकेला है अंधेरों में
मैंने सीने पे पड़ गई दरारों से;
लौ की कोपलों को फोड़ा है
जलाया है बेखु़दी ने,
राख़ कर छोड़ा है
मैंने राख़ के ढेरों में खोया
अपना,मिट्टी का दाना ढूंढा है
भीग भीग कर सींचा है सीना
फ़िर ख़ूब तपाया है
मैंने सूखे सेहराओं में
बवंडर की पीठ पे चढ़
बरसातों को आंखों से निचोड़ा है
लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार
मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है।
सौम्या वफ़ा।
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