बुधवार, 11 नवंबर 2020

मासूम

 मासूम वो है, जो अनछुआ है

और अनछुआ वो है

जिसे दुनिया ने नहीं

भोले से सपनों ने छुया है

भोले हैं सिर्फ़ वो सपने,

जिनमें बस प्यार है या दुआ है

इसलिए मासूम सिर्फ़ माँ है

और भोला बस उस बच्चे का जहां है

बचपन में मां ने जिसे थपकी देकर

सुलाया है

उस बच्चे को बस सोई दुनिया में

जगाना है

कंक्रीटों के कांटे नहीं,

मिट्टी में दुलार उगाना है

मासूम हथेलियों में फ़िर कोई

तितली का पंख सजाना है

नंगे पांव को ओस की बूंदे पहनाना है

एक डुबकी बचपन की लगा के

फ़िर से अनछुआ हो जाना है

एक मुस्कान में मां

एक खिलखिलाहट में बच्चा हो जाना है।


सौम्या वफ़ा।©

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