कितना अच्छा है
यूं मद्धम मद्धम जलते रहना
ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना
बिन कुछ कहे सुने
महफ़िल से उठ
कहीं ख़ुद में,
भरे जामों को ख़ाली करना
किसी राह से गुज़रे तो उस राह को
सलामी करना
किसी मुड़ती गली के पते पर,
पर्चियां गुमनामी भरना
बादलों के पीछे छिटक रहे
धूप के सिक्कों से
मुट्ठियां जगमग रंगना
कभी मन की सुनना
कभी मन को सुना देना
सांसों का बातों से
मौन धरना
ज़रा सी आहट पे यूं ही
पिघलते रहना
आहिस्ता आहिस्ता
ख़्वाहिशों की तमन्ना से
दूर होते रहना
रंग बनके रोशनी में
चूर होते रहना
मीलों टिमटिमाते तारे को
सीने में रख
नूर कर लेना
कितना अच्छा है यूं
मद्धम मद्धम रोशनी में जलते रहना
ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना।
सौम्या वफ़ा।©
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