पिया की प्रीत को नजरिया लागी
झर झर सूखे सब पात हरियाले
ना सावन आये ना आये लाली
दुल्हन जग की हुयी
हरि को प्यारी
राग छूटा , अनुराग टूटा
छूटा मोह, जग रूठा
लागा रंग राग जोग;
कौन जाने सुख कैसा
तन- मन साजा पोर- पोर
हरी के रंग जो मन राचा
ना भाये सिंगार,
ना काम आये सिंधौरा
जिस माथे सजे हरि की लौ
उस माथे को क्या ही बिंदिया,
क्या हो चांदी बिछुआ
जो बांधे पग घुंघरू हरी सौं
साजे काहे अंगिया संग
लाली चुंदरिया
जो रमी राख कारी
गोरी देह पे जोगन की
सिंदूर बन सूरज सौ
काहे उतारे, पारे, सँवारे
गोरी गोरिया
नैनन पे काजर कजरारे
जो समाये नैनों में हरी
पार हो गए सब नीर -तीर तिहारे
काहे मले जोगन, चन्दन
जोगन जले पल पल
बन अगर बाती
सीत जिया को,
माटी पे बरसते सावन की लागे
गोरी महके बन महि
हरी को बदरिया सी भावे
क्या बरखा, बहार ,
क्या ही भादो
हर मौसम
हरी संग बन हरी
नाचे बन बन उपवन
सतरंगी जोगन बावरी
क्या कोई कथा भाँचे
क्या कोई महूरत बतावे
क्या ही कोई जग में
गीत सुनाये
आये जो धुन
हरि की बंसी की
सब रज, राज -ताज तज
हरि के संग हरी की प्यारी
मुख पर धूप सँवारे,
सांवरे संग ऊंची टेर लगाए
गगन चढ़ जाए गुलाबी
जग बनाये बातें निराली
दुल्हन जग की,
हुयी हरी को प्यारी
दुल्हन जग की हुयी,
हरि को प्यारी।
सौम्या वफ़ा। ©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें