मंगलवार, 24 नवंबर 2020

मैं और कविताएं

 हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं

आग़ में बहते बहते

चांदनी बुन लेती हूं

ज़ख्म सी हो अगर कोई कहानी

उस पर कविता का मलहम मल लेती हूं

ज़िन्दगी, मुश्किल पार कर के 

उसके आगे शुरू होती है

मैं ऐसी कहानियां, हर रोज़ सुनती हूं

मुश्किलें पार मगर,

कविता से ही करती हूं

फ्रेम में होती हैं कहानियां

और अंदर कविता रंगती हूं

मैं हर काहानी के पूर्ण विराम पे,

एक कविता का टीका कर देती हूं

हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं।



सौम्या वफ़ा।©


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