हर दिन कहानियां जीते जीते
मैं कविताएं चुन लेती हूं
आग़ में बहते बहते
चांदनी बुन लेती हूं
ज़ख्म सी हो अगर कोई कहानी
उस पर कविता का मलहम मल लेती हूं
ज़िन्दगी, मुश्किल पार कर के
उसके आगे शुरू होती है
मैं ऐसी कहानियां, हर रोज़ सुनती हूं
मुश्किलें पार मगर,
कविता से ही करती हूं
फ्रेम में होती हैं कहानियां
और अंदर कविता रंगती हूं
मैं हर काहानी के पूर्ण विराम पे,
एक कविता का टीका कर देती हूं
हर दिन कहानियां जीते जीते
मैं कविताएं चुन लेती हूं।
सौम्या वफ़ा।©