मंगलवार, 24 नवंबर 2020

मैं और कविताएं

 हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं

आग़ में बहते बहते

चांदनी बुन लेती हूं

ज़ख्म सी हो अगर कोई कहानी

उस पर कविता का मलहम मल लेती हूं

ज़िन्दगी, मुश्किल पार कर के 

उसके आगे शुरू होती है

मैं ऐसी कहानियां, हर रोज़ सुनती हूं

मुश्किलें पार मगर,

कविता से ही करती हूं

फ्रेम में होती हैं कहानियां

और अंदर कविता रंगती हूं

मैं हर काहानी के पूर्ण विराम पे,

एक कविता का टीका कर देती हूं

हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं।



सौम्या वफ़ा।©


सोमवार, 23 नवंबर 2020

Pages of Peace ☀️🌗🌙☀️

 Fill Your blank pages 

With Rainbow Dreams of Peace

For Peace is the Only Love

And Love is Peace

The Two Companion

Are always together

For resolving the mysteries of universe,

Just like the Golden Lock and Silver Key

They are the only source of Truth;

For those who are seeking Liberation

Who are Somewhere in the Universe

While Still being On Earth Very much Alive

Your Peace will Lock the doors of

Unwanted darkness and Disbelief

Your Love will Open the Hearts

For bringing the Joy of Eternity

As there is no Separation between

Love and Peace

Peace is Love,

And Love is Peace

The eternal Bliss

And Ultimate Prosperity

Why to leave the precious pages of Life

Fill Your blank pages

With Rainbow Dreams of Peace.


Saumya Wafa.©


❇️🌟💜❇️🦋🌼🌱🌈🌱


शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

My Graceful Life 🌟💜💚💜🌟

 I was a Hopeless beggar

When I was running after pleasure,

My time was a misery

And I was a miserable loser;

Never knowing that I always had

The Most Beautiful Treasure

Until One day I almost lost it

The day,

I got the senses to realise it

What a tremendous chance I have got

Of having a gift of life;

The Most Precious

The most wonderous!

Since then,

Every day is a Surprise,

And night is a moment to return

What I got, 

before my bed is there to retire.!

Oh my Beautiful Life

With my head bow down,

And chest swelled with Gratitude

I am ready to embrace you every moment

You are the most Graceful!

I am living you and Loving you

All through in and Out!


(at your Precious Service my Life)


Saumya Wafa ©🌟💜💚🙌💖🙏💜🌟💚💜🙏🙌🦋🌱🦋🌷🥀🌱☘️❇️🌼☘️✨✨💖🌟💜💚🌟💜💚🌟💜🌟💜🌟💚🌟💜🙏🙏🙏🙏🙏🙏

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

कुछ अंग्रेज़ी में। An Ode to the Butterfly 🦋

 The Song of Broken wings

A pride with which her tiny Soul shines

Moulding the brave medals 

Of wars

Donning the glowing scars

With wisdomful Smile

She makes it,

a moment to remember

When her soul fought 

the mighty fight,

When She won the game of Survivor 

more than thousand times

Achieving a remarkable mark for her Life

From where now everyday,

A Ray of Light illuminates so Bright.

She holds onto this Light of Paradise

And Glides to her way

For which she was born

Living a life full size

With a Soul of phoenix

And Body of Butterfly

She lost the part of her wings

Yet she knew how to Fly

Reminding herself the fact

Living like Yourself;

Is the Best way to Gracefully Die.


Poem dedicated to the Butterfly 🦋

@saumya_wafa0 ©


An ode to the Butterfly who fought for her Life and in that war she lost a part of her wings, Yet she knew how to Fly. I don't know how that happened, but I know this butterfly who come everyday on our  small terrace garden. Along with 11-12 more other butterflies. 


She is one of the most beautiful and Delicate fighter who knows, how to keep flying...✨🖤💜💛✨☘️🌼☘️🌼🌼☘️💚🌷🌺🥀🌷❇️☘️🌼🍀

रविवार, 15 नवंबर 2020

राग रंग

 रंगों की खुशबुओं को, जी भर के पीते रहना

आंखे बंद कर के,

खुशबुओं में

 रंगों को टटोलना

पानी में घोल के पानी सा होना

उस रंगे पानी को फ़िर,

पानी से ही धो देना

जाने कैसे सीख लिया मैंने;

ख़ुद को रंग रंग के 

फ़िर ख़ाली कर लेना

हर रंग के राग में रंग के

फ़िर पानी कर लेना।


@saumya_wafa0©

असबाब

 मखमली ख़्वाब

सुरमई जज़्बात

पंख महताब

दो लबों पे आब

और मेरे पल्लू के कोने से बंधा

एक टुकड़ा आफ़ताब

जीने को काफ़ी है मेरे

बस इतना सा असबाब।


@saumya_wafa0 ©

मद्धम मद्धम

 कितना अच्छा है

यूं मद्धम मद्धम जलते रहना

ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना

बिन कुछ कहे सुने

महफ़िल से उठ 

कहीं ख़ुद में,

भरे जामों को ख़ाली करना

किसी राह से गुज़रे तो उस राह को

सलामी करना

किसी मुड़ती गली के पते पर,

पर्चियां गुमनामी भरना

बादलों के पीछे छिटक रहे

धूप के सिक्कों से

मुट्ठियां जगमग रंगना

कभी मन की सुनना

कभी मन को सुना देना

सांसों का बातों से

मौन धरना

ज़रा सी आहट पे यूं ही

पिघलते रहना

आहिस्ता आहिस्ता

ख़्वाहिशों की तमन्ना से

दूर होते रहना

रंग बनके रोशनी में

चूर होते रहना

मीलों टिमटिमाते तारे को

सीने में रख 

नूर कर लेना

कितना अच्छा है यूं

मद्धम मद्धम रोशनी में जलते रहना

ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना।


सौम्या वफ़ा।©

बुधवार, 11 नवंबर 2020

बोलती हैं खिड़कियां

 दीवारों के कान होते हैं

मगर बोलती हैं खिड़कियां

कभी खोल के तो देखो

क्या बोलती हैं खिड़कियां

पर्दों के घूंघट में छिपी

जाने क्या क्या सोचती हैं खिड़कियां

चटकी सिटकनियों और पड़ी झुर्रियों

को शायद छिपाती हैं खिड़कियां

देखती हूं तो

आंखों में छप जाती हैं खिड़कियां

सलाख़ों के पीछे, जाले- जालियों के पीछे

सांस लेती,

फड़फड़ाती खिड़कियां

दिल में कोई खड़का सा खड़काती खिड़कियां

दीवारों के सीने को चीर

मुझे;

मैं, मैं हूं

ये बताती खिड़कियां

दीवारों के कानों पे

पहरेदारी करती ये खिड़कियां

दीवारें तो ख़ामोश हैं

कि दीवारों के कान होते हैं

मगर बोलती हैं खिड़कियां।


सौम्या वफ़ा।©


मासूम

 मासूम वो है, जो अनछुआ है

और अनछुआ वो है

जिसे दुनिया ने नहीं

भोले से सपनों ने छुया है

भोले हैं सिर्फ़ वो सपने,

जिनमें बस प्यार है या दुआ है

इसलिए मासूम सिर्फ़ माँ है

और भोला बस उस बच्चे का जहां है

बचपन में मां ने जिसे थपकी देकर

सुलाया है

उस बच्चे को बस सोई दुनिया में

जगाना है

कंक्रीटों के कांटे नहीं,

मिट्टी में दुलार उगाना है

मासूम हथेलियों में फ़िर कोई

तितली का पंख सजाना है

नंगे पांव को ओस की बूंदे पहनाना है

एक डुबकी बचपन की लगा के

फ़िर से अनछुआ हो जाना है

एक मुस्कान में मां

एक खिलखिलाहट में बच्चा हो जाना है।


सौम्या वफ़ा।©

मेरी नींद

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता

ना इश्क़ का मुआमला है

ना ही कोई ख़ता वता

बस जाने कहां निकल जाती है

रोज़ रात को बांधे बस्ता

कहती है रात में ही तो

मिलती है,

 दो गिलास ठंडी सांसें

 और साथ में मिलता है सुकून

 चांद की टपरी पे;

 इत्मीनान की तश्तरियों में

 चार आने सस्ता,

 दिन को दुनिया में क्या ही दौड़ लगाएं

 जमहैयां छिपाएं

 ऊंघ लगाएं झपकियों में:

 दुनिया ठहरी ताश की बाज़ी

 और हम जोकर पत्ता

 नींद सोती है चांद तले

 और हम नींद का ताकते हैं रस्ता,

 नींद ख़ुद ही उतर आती है

 देख हमारी हालत खस्ता

 हां मगर नींद के उस हसीं चेहरे से,

 मुलाक़ात नहीं हो पाती

 हम आंखें खोलते हैं

 वो सवेरे सवेरे ही निकल जाती है

 कौन है वो नींद 

 और कैसा है उसका हसीं चेहरा

 एक यही बाकी है;

 रिश्ता सच्चा अलबत्ता

 कहने को मेरी ही पलकों में आती है

 पर कोई डाक नहीं लाती है

 उसने दरवाज़े से हटा दिया है

 किसी भी नाम का पट्टा

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता।


सौम्या वफ़ा।©

 

 

सोमवार, 9 नवंबर 2020

हरि को प्यारी

 पिया की प्रीत को नजरिया लागी 

झर झर  सूखे सब पात हरियाले  

ना सावन आये ना आये लाली

दुल्हन जग की हुयी  

हरि को प्यारी 

राग छूटा , अनुराग टूटा 

 छूटा मोह,  जग रूठा 

लागा  रंग राग जोग; 

कौन जाने सुख कैसा 

 तन- मन साजा पोर- पोर 

हरी के रंग जो मन राचा 

ना भाये  सिंगार, 

ना काम आये सिंधौरा 

जिस माथे सजे हरि की लौ 

उस माथे को क्या ही  बिंदिया,

 क्या हो चांदी बिछुआ 

जो बांधे पग घुंघरू हरी सौं  

साजे काहे  अंगिया संग 

लाली चुंदरिया 

जो रमी राख कारी 

गोरी देह पे जोगन की 

सिंदूर बन सूरज सौ

काहे उतारे, पारे, सँवारे 

गोरी गोरिया 

नैनन पे काजर कजरारे 

जो समाये नैनों में हरी 

पार हो गए सब नीर -तीर तिहारे 

काहे मले जोगन, चन्दन 

जोगन जले पल पल 

बन अगर बाती 

सीत जिया को, 

माटी पे बरसते सावन की लागे

गोरी महके बन महि 

हरी को बदरिया सी भावे  

क्या  बरखा, बहार , 

क्या ही  भादो 

हर मौसम  

हरी संग बन हरी  

नाचे बन बन उपवन 

सतरंगी जोगन बावरी 

क्या कोई कथा भाँचे 

क्या कोई महूरत बतावे 

क्या ही कोई जग में 

गीत सुनाये 

आये जो धुन 

हरि की बंसी की 

सब रज, राज -ताज तज 

हरि के संग हरी की प्यारी 

मुख पर धूप सँवारे, 

सांवरे संग ऊंची टेर  लगाए 

गगन चढ़ जाए गुलाबी 

जग बनाये बातें निराली 

दुल्हन जग की,

हुयी हरी को प्यारी 

दुल्हन जग की हुयी,  

हरि को प्यारी। 




 सौम्या वफ़ा।  ©


शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

जियो और जीने दो

 आजकल,

बासी पड़े कोरे पन्नों पर

सीने से घुमड़ता हुआ

 रंगों का बादल फट जाता है

और रंग देता है सतरंगी हर पन्ना

एक एक रंग की रिस्ती बूंद

सीने में कोई बीज सा बोती है

जैसे बरसों से वहीं अटकी पड़ी थी

फूटने को तैयार

मगर जो अब आज जाके फूटी है

जिससे निकल रही हैं

हरी गहरी समाती जड़ें

और पीले अंकुर

ख़ाली पन्ने की

ज़मीं पर एक नया बाग़ बसाने को

जो कभी अपनी ही नासमझी में

कोरा रह गया था

पर अब जाके ख़िल उठा है

ये कह के कि जियो और जीने दो।


मैंने

 लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है

ज़माने ने जब तब धकेला है अंधेरों में

मैंने सीने पे पड़ गई दरारों से;

लौ की कोपलों को फोड़ा है

जलाया है बेखु़दी ने,

राख़ कर छोड़ा है

मैंने राख़ के ढेरों में खोया 

अपना,मिट्टी का दाना ढूंढा है

भीग भीग कर सींचा है सीना

फ़िर ख़ूब तपाया है

मैंने सूखे सेहराओं में

बवंडर की पीठ पे चढ़

बरसातों को आंखों से निचोड़ा है

लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है।



सौम्या वफ़ा।








अपराजिता

 उसकी बात बात पे

कविता होती है

वो जीती है,

हंसती है;

हर बार मरती है

जीवित हो फिर फिर

जीवन के संग मचलती है

गिरती है, उछलती है,

संभलती है

उतरती है, चढ़ती है

जाने किस किस राह

मुड़ती है, चलती है

वो स्त्री है,

अंत से पहले नहीं रुकती है

सब मौसमों को झेलती, खेलती

वो सजती है, संवरती है

वो स्त्री सिर्फ़ स्त्री नहीं

वो अपराजिता होती है

उसकी मौन में

होती है कहानी

और बात बात पे कविता होती है

वो स्त्री है, वो कविता है

उसकी हर कहानी

अपराजिता होती है।


सौम्या वफ़ा।