रविवार, 26 अप्रैल 2020

हवा और हैरानी

हवा से कहो अब हवा हवा हो गई है
और हैरानी ने हैरान होकर
दम है तोड़ दिया
कोई आकर आग़ से कह दो
कि अब पिघला कर बुझा दे
ये बेवजह फड़फड़ाती
रोशनी की लौ
ये मचलती है तो
खामखां तड़पते हैं कुछ
चेहरे रंगों के
एक जली जली सी बू
आती है
कुछ पाक वफ़ा पे
नापाक इरादों के
और खामखां ही भभक पड़ती है
एक जानी पहचानी ख़ुशबू
वो ख़ुशबू जो कभी
इत्र थी मेरे बदन का
मगर आज
 बस लिबास है एक सितम का
बुझेगी ये तो वो
वो परछाई भी बुझ जाएगी
जो बिना पूछे ही आकर दीवारों पर
 यूं पसर जाती है
जैसे मानो घर हो उसी का
ये मनमानी ना रोशनी की
ना परछाई की अब चलेगी
ना ही तो ये घर है उस परछाई का
ना ही तो अब हक़ है उसे रोशनी का।



सौम्या वफ़ा।©


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