इंतज़ार में है कश्ती ,
कि कब आएगा रे माझी
रंग सुर्ख़ सजा के क्या?
जो चढ़े ना समंदर का पानी
कश्ती, कश्ती है
बहती है या टूटी है,
कश्ती जो बांधी किनारे से
तो बुझी उसकी कहानी;
लहरों से है इश्क़ जिसे
उसे यूं किनारे पे
ना डुबा रे माझी!
सौम्या वफ़ा।©
कि कब आएगा रे माझी
रंग सुर्ख़ सजा के क्या?
जो चढ़े ना समंदर का पानी
कश्ती, कश्ती है
बहती है या टूटी है,
कश्ती जो बांधी किनारे से
तो बुझी उसकी कहानी;
लहरों से है इश्क़ जिसे
उसे यूं किनारे पे
ना डुबा रे माझी!
सौम्या वफ़ा।©
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