रविवार, 26 अप्रैल 2020

तेरा तुझको अर्पण

सांसों का तेरी मैं चढ़ाऊंगी धतूरा
तुम मेरी सांसों का पी लेना महुआ
डोलेंगे हम फिर पंख लगाए
जैसे माटी उड़े बनके धुआं
खींच लेना अपनी पलकों से तुम
मेरी सांस सांस का हर तार
नील भरना रात भर
 तुम नीली रात में
रात भर रंगू मैं सफेद चादर
 गाढ़ी लाल
भोर हो फिर जब सूरज उगे
धारा बन जाऊं मैं
और कर देना तुम जल का तरपन
दुपहरी तक फिर निपट जाएंगे
सारे जग के काज
मैं महकूंगी तो तुम जलना जैसे कपूर
और तुम जलो तो महकुंगी मैं जैसे
बरसों की छिपी कस्तूर
तुम धूप ढले तो बन जाना शिवालय
मैं मलूं तुमको घी और चन्दन
तुम माथे मेरे मलना कुमकुम
तुम पीसना दो पाटों में हल्दी
और
मैं भर लूंगी दो हाथों में मेहंदी
दे देना आवाज़ हवा को
तैयार हो जाए जब डोली
बुला लाना तारों को भी
मंगवा लाना चंदा की थाल
जब तक उतरे गोधूलि
फिर और रह ना जाएगा
 दीन दस्तूर का
कोई भी काम काज
और शाम ढले तक उठेगी जब डोली
एक ही होगा सत्य जैसे राम नाम
और सत्य सब जान के सारा
तोड़ चलूंगी मोह के बंधन
सौंपूंगी तुझको जो है तेरा
मुक्त हो के करूंगी
तेरा सब तुझको अर्पण।।



@सौम्या वफ़ा।©

(तेरा तुझको अर्पण, अर्पण और तर्पण दोनों ३० जनवरी २०२० को ही कर दिया था। प्रेम में श्राद्ध।)

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