रविवार, 26 अप्रैल 2020

अव्वल खिलाड़ी

तुम बड़े नटखट बड़े चंचल थे
जैसे भरी पूरी उमर में भी
बच्चे के बचपन थे
कितना खेला तुमने खेल खिलौनों से
कितने ही तोड़े फेंके
कितनों को रख कर भुला दिया
कितनों को ज़िद से हथिया लिया
तुम बड़े नटखट बड़े चंचल थे
जैसे भरी पूरी उमर में भी
 बच्चे के बचपन थे
 इस बार भी बहुत खेले तुम
 थोड़े झूठ कुछ मुखौटे
 कभी ख़ुद से लाए कभी हमसे लूटे
 खेल खेल कर निकल गए
 बोले हम हैं अव्वल खिलाड़ी
 जाना हमने जब और चोरी पकड़ी
 बोल के निकल गए कि
 अरे पगली हम कब खेले
 हम जो हारे तो हार गए
 क्यूंकि हारे तो भी जीते!
 तुम अपनी कहो
 क्यूं पासा सच्चा खेला नहीं?
 क्यूं फांसा तो झेला नहीं?
 अब जो जग हंसे तुम पे
 तो बच निकले;
 अरे जा रे चल ,झूठे!!!


@सौम्या वफ़ा।©

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