रविवार, 9 फ़रवरी 2020

तुम थे या तुम्हारी मुहब्बत

पहले आंखों में डूबकर
होंठों से मुस्कुराते थे

अब होंठ भींचकर
आंखों से मुस्कुराते हो

खुलती थीं जो आंखें
सीधी मेरी आंखों में

चूमते थे जो लब
मेरे होठों को बेवजह की बातों में

अब मुंदी होती हैं वहीं आंखें
और
लब भी सिले होते हैं

पहले बोलते थकते नहीं थे
अब कितना कुछ छिपाते हो

मैं पढूं गर तुमको तो
हथेलियों से
आंखों पे पर्दा गिराते हो

फिर जो सुनने को हूं तरसती
वो छोड़
बाकी सब कह डालते हो

सूने रह जाते हैं होंठ
और रूखी सी आंखें

सूखी  रह जाती हूं मैं
पर भीज जाता है
सीने के पास आंचल

ना अलविदा ही कहते हो
ना फिर आने का कोई
 वादा ही कर जाते हो

फिर जाने से पहले क्यूं,
हर बार मेरा माथा चूम जाते हो?

पहले मुहब्बत को
हर एक बहाना बताते थे
अब हर बहाने को
 मुहब्बत जताते हो !

मुहब्बत करते थे पहले,
मगर अब
 ख़ुद मुहब्बत हो जाते हो।






@सौम्या वफ़ा।©®

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें