शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

ये क्या होने को है



यूं लगा कि कुछ खोने को है
बड़ा कोई सबब होने को है
कुछ बहुत ही ग़ज़ब होने को है
आसमां मेहरूम है रोशनी के साए से
समां मेहरूम है
हवा के हमसाए से
कोहरा ही कोहरा
धुआं ही धुआं
जाले ही जाले
बेपनाह छाए हैं
ना पंछी ही लौटे हैं घर को
ना पेट में तिनके ही कुलबुलाए हैं
यूं लगा कि कुछ होने को है
मगर ये क्या होने को है
क्यूं सूरज भी शर्मिंदा होके
बादलों में ख़ुद को छिपाए है
ना सितारे ही हैं
ना चांद ही है कहीं
अंधेरा भी आज उतना अंधेरा नहीं है

खबर आई  है ये छुपते छुपाते
लुटेरों से ख़ुद की आबरू बचाते

यूं हुआ है कहीं
कि बादलों की मांग उजड़ी है
मातामों की बारिश हुई है
आग की बाढ़ बही है

ख़ून की खेली है होली
नरसंहार की ईद मनी है
कई लाशें थीं लटकी क्रिसमस ट्री पर
कई आंखों के कोटरों में
बुझे चिराग़ की दिवाली जमी थी

कई गर्दनें कटी थीं फसलों की तरह
कई फंदों पे लोहड़ी के झूले झुलाए हैं

चीख पुकारों के संगीत
दहशत के ताशे बजाए हैं
मातमों के फूल बरसे हैं
अर्थियों के इतर गुलाब लगाए हैं
खबर आई है कि आज
आसमां की ओर जाना भी नहीं

आज सारे आसमां पर
विधवा के साए हैं।




सौम्या वफ़ा।©®

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