हाथों पर उभर कर ना अाई
मगर हर हर्फ़ पर उतर गई जो
वो लक़ीर हो तुम
क़िस्मत से ना अाई
मगर ख़ुदी से बनाई जो
वो बुलंद तक़दीर हो तुम
अंधेरों में तन्हा ही रह गई
मगर अब भी है जिसमें नूर
वो हवाओं पे बसी
तामीर हो तुम
बिगड़ी तो बन ना पाई
मगर बिगड़ी को बनाते बनाते
चमक गई जो
वो हौसलों की गढ़ी शमशीर हो तुम ।
@सौम्या वफ़ा।
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