औंधे औंधे मुंह चली आई बारिश
जैसे भूल गई हो रस्ता
धूप अभी तक सिमटी नहीं
ना बादलों का उमड़ा दस्ता
दो बूंदे कहां से जाने
आ कर दे गईं माथे पर
बरसों भूला कोई बोसा
यूं लगा कि अपना ही अक्स है
मगर काश कि अपना होता।
@सौम्या वफ़ा।०©
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