शनिवार, 8 अगस्त 2020

औंधी बारिश

 औंधे औंधे मुंह चली आई बारिश

जैसे भूल गई हो रस्ता

धूप अभी तक सिमटी नहीं

ना बादलों का उमड़ा दस्ता

दो बूंदे कहां से जाने

आ कर दे गईं माथे पर

बरसों भूला कोई बोसा

यूं लगा कि अपना ही अक्स है

मगर काश कि अपना होता।


@सौम्या वफ़ा।०©

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