मोहे ऐसे सतायो श्याम
रूठा गली गलियार
मोसे छूटे चहुँ धाम
मोहे ऐसे सतायो श्याम
छुट गयो पनघट डगरिया
छोटे मोसे मथुरा का आँगन
छुट गयो नगरी
मोसे टुट गयो मोरी गगरिया
छूटे साज
छूटो रंग राग
लागो बैरागी अनुराग
सुर साजे जोग मोहे
मोहे भाये न शाम बिन जमुना के तीरे
तंग करत उछलत गिरत प्रेम तरंग
प्रेम बैरी का है बैर मोसे
छूटे जो शाम मोरे
बरसी बरखा उमड़ी जमुना
बह गयी मोरी अखियन से मेहंदी
बह गयी लाली मतवाली
बही संग संग चितवन
बह गयो लाज संग
चुनरी लहरिया
जो ऐसे सतायो श्याम
छोड़ गयो बिरहन को जान अनजान
आयो ना शाम से फिर
घर लौट के फागुन
पलट गयो मोरी डेहरी से ऋतुयन
ना लागे हल्दी बसंती
बिखर गयो माथे की बिंदिया
बह गयो संग शाम के
शाम की सिन्दूरी गोधूलि
कारी कारी डगरिया पे
लुट गयी बैरन
रतिया की निंदिया
नैनन में श्याम मलूँ
तो झपकी सी लागे
अंजन बेदर्दी मोहे चुभोये कंकरिया
तज गयो उपवन को सब सुख चैन
उतरे ना डारी रंग बसंती
लागे ना अंग केसरिया
तन मोरा चन्दन
मन की पीर को लिपटे भुजंग
लागे तीखी तीर सी बंसी
आग लगाए कूक
जियरा जलाये पपीहरा
रोम रोम में चिटके बीज
खिले कलियन हरी हरी
मन हरियाला जग उजियारा
तन हरा हरा रोगन रमा
जोगन भयो मन
ले नाम हरि हरि
दुल्हन शाम की जोगन बनी
डोली छोड़ जग छोड़ चली
कौन सी ये अगन लगी
जो जली घड़ी घड़ी
फिर भी ना डरी
जोगन का जोग चमका ऐसा
लागे जोगनिया खरी खरी
कौन सो लागे अब निर्गुण को हाथ
कौन दिसा अब ले जाए कहार
कौन सो सजावे गाम
मोहे ऐसे सतायो श्याम
मोहे ऐसे सतायो श्याम
रूठा गली गलियार
मोसे छूटे चहुँ धाम
मोहे ऐसे सतायो श्याम।
सौम्या वफ़ा। ©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें