मन मलंगी की धुन अतरंगी
जहाँ जाए जहां में
देखे ख़्वाब सतरंगी
उड़े मन मतवाला बन
क़ाग़ज़ पतंगी
मन की सुन लेना
मन जो भी बोले
मन ही जाने तेरी पीर
मन की माने राजा है
मन की ना माने फ़कीर
मन है मन का
जिधर ठहर जाए
उधर ही रमा ले धूनी
जाने जग जोगिया
जोगी जाने मन को रोगी
किस ठौर मिले ठंडी छाँव
किस ठौर जलेंगे धूप में पाँव
कभी तिनके के सहारे
बुझा ले प्यास
कभी नदिया किनारे
प्यास रह जाए प्यासी
मन का भेद मन ही जाने
मन रांझा मन हीर
मन बावला बंजारा
मन ही सूफ़ी पीर
कभी बाजे मन में इकतारा
कभी बाजे सारंगी
कभी ख़ामोशी से रुक जाए
मन तक आती सदा हमरंगी
मीठा लागे जी को घर का बासी
लागे फीका जगमग जग में
घर का वासी
दिसा भूले
भटके मारा मारा
कभी बैठे डेहरिया पे
बाट जोए बटोही
ठोकर खा के मिलेगी
राह राही
भटक के मिलेगी मंज़िल
जाना चाहे जिधर भी मन,
चल देना
थामे सूने हाथ में अपना ही हाथ
ठहर गया जो साथ की चाह में
बिछुरी उसकी चदरिया सुनहली
जो मन ने खोया जग में
जो पाया जग में मन ने
जग को देते जाना
खाली हाथ आये थे
खाली मन ना जाना
ठाठ बाठ की बांधे गठरी
ढोता है काहे बोझ बेरंगी
बोझा छोड़ राह में
मंज़िल को दौड़ लगाना
दिल में आग लगा के
मन को पंख लगाना
भूल के सब काज बेनामी
सरसरा के उड़ जाना
भूल के जगवा अनारी
मन को मन का दाता माने
मनका मनका फेरे जाना
जग के मोह में मूरख तू
जागे ना सोये
जगवा भरम की फेरी रंगीली
जग बौराये तो होये सब मैला
मन बौराये तो उजियाला
होये बैरागी
मन की सुन लेना
मन जो भी बोले
मन ही जाने तेरी पीर
मन का मनका फेर तू
मन को लेना जीत
मन मलंगी की धुन अतरंगी
जहाँ जाए जहां में
देखे ख़्वाब सतरंगी
मन की सुन लेना
मन जो भी बोले
मन ही जाने तेरी पीर।
सौम्या वफ़ा। ©
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