मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मन मलंगी

 मन मलंगी की धुन अतरंगी 

जहाँ जाए जहां में 

देखे ख़्वाब सतरंगी 

उड़े मन मतवाला बन 

क़ाग़ज़ पतंगी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर 

मन की माने राजा है 

मन  की ना माने फ़कीर 

मन है  मन का

जिधर ठहर जाए    

उधर ही रमा ले  धूनी 

जाने जग जोगिया 

जोगी जाने मन को रोगी 

किस ठौर मिले ठंडी छाँव 

किस ठौर जलेंगे धूप  में पाँव 

कभी तिनके के सहारे 

 बुझा ले प्यास 

कभी नदिया किनारे 

प्यास रह जाए प्यासी 

मन का  भेद मन ही जाने 

मन रांझा मन हीर

मन बावला बंजारा 

मन ही सूफ़ी  पीर 

कभी बाजे मन में  इकतारा 

कभी बाजे सारंगी 

कभी ख़ामोशी से  रुक जाए 

 मन तक आती सदा हमरंगी 

मीठा लागे जी को घर का बासी 

लागे फीका जगमग जग में 

घर का वासी 

दिसा  भूले 

भटके मारा मारा 

कभी बैठे डेहरिया पे 

बाट जोए बटोही 

ठोकर खा के मिलेगी 

राह राही 

भटक के मिलेगी मंज़िल 

जाना चाहे जिधर भी मन, 

चल देना 

थामे सूने हाथ में अपना ही हाथ 

ठहर गया जो साथ की चाह  में 

 बिछुरी उसकी  चदरिया सुनहली 

जो मन ने खोया जग में 

जो पाया जग में मन ने 

जग को देते जाना 

खाली हाथ आये थे 

खाली मन ना जाना 

ठाठ बाठ  की बांधे गठरी 

ढोता है काहे बोझ बेरंगी 

बोझा छोड़ राह में 

मंज़िल को दौड़ लगाना 

दिल में आग लगा के 

मन को पंख लगाना 

भूल के सब काज बेनामी 

सरसरा के उड़ जाना 

भूल के जगवा अनारी 

मन को मन का दाता  माने 

मनका मनका फेरे जाना 

जग के मोह में मूरख तू 

जागे ना सोये 

जगवा भरम की फेरी रंगीली 

जग बौराये तो होये सब मैला  

मन बौराये तो उजियाला 

होये बैरागी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर 

मन का मनका फेर तू 

मन को लेना जीत 

मन मलंगी की धुन अतरंगी 

जहाँ जाए जहां  में 

देखे ख़्वाब  सतरंगी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर। 


सौम्या वफ़ा। ©





 

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