मंगलवार, 11 अगस्त 2020

रेशमी ख़्वाब

 तुमने कै़द किया है

 ख़्वाबों को इन आंखों में

या क़ैद हो तुम ही कहीं

जहां भर के ख़्वाबों में

आंखों से पूछो ये किन्हें सम्हालती हैं,

टकटकी लगाए रातों में?

ज़ेहन में झांको ये क्या ढूंढता है,

बेतुक बुदबुदाती बातों में?

काते हैं तागे ख़्वाब के

सहेजे हैं परतों में किमख़ाबों के

या उलझे उलझे हैं हम ही

रेशम के धागों में?

पर आ गए हैं वक़्त पे

उड़ने को;

या उड़ रहे हैं ख़्वाबों में?

तुमने कै़द किया है

 ख़्वाबों को इन आंखों में

या क़ैद हो तुम ही कहीं

जहां भर के ख़्वाबों में!



सौम्या वफ़ा।©


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