भीड़ में खोए मन को,
जब अपना पता मिल जाता है
यूँ समझ लो,
बस उस घडी
पत्थर में,
ख़ुदा मिल जाता है
सुबहो का रंग,
शामों पे
खिल जाता है
एक ही फ़लक पे
चाँद और सूरज
जगमगाता है
रातें भटकती नहीं,
फिर कभी तनहा
तारों का पूरा
काफ़िला साथ आता है
दिशाओं का
होता नहीं, कोई भरम;
वक़्त,खुद ही रास्ता दिखाता है
भीड़ में खोये मन को
जब अपना पता मिल जाता है
यूँ समझ लो बस उस घडी;
पत्थर में खुदा मिल जाता है।
- सौम्या वफ़ा। ©
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