शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

निंदिया

 रात ढले निंदिया उड़ जाए 

पलकों के टूटे पंख लगाए

कड़वी कड़वी आंखों में कच्ची कच्ची 

दुनिया चुभ जाए

निंदिया की राह तके बिन

थकी अंखियां मानें ना

उतर के निंदिया आए इस बार

तो अंखियों में नए सपने सजाएं

सपनों का मीठा जो फ़िर से लागे

पलकों का कड़वा मिट जाए

सूखे सूखे आंखों के सेहरा में

कोई बारिश दे जाए

टूटे पंखों पे फ़िर लगाऊं

गुलाबी गुलाली गुब्बारे

बरसे तपते चेहरे पे हों 

ठंडे भीगे बोसे से फ़व्वारे

एक टूटे जो कहीं दूर सितारा

मैं बांट लूं उसे रात से आधा आधा

दबी दबी सी हंसी मेरी

फ़िर से खुल के खिलखिलाए

पर्दे के पीछे लुका मन

झाँ कर के झट से बाहों में आ जाए

ये चाहूं रात रात भर

और जाने कब नींद आ जाए

टूटे फूटे पंखों से

माथा सहला जाए

खुल गई जो आंखें गर

तो जादू सा सब गायब

जानूं मैं वो थी अभी यहीं

 जो देखूं कि

सिरहाने छूटे छूटे से रंग दे जाए

तकिए पे साए के साथी

नीले गुलाबी से हो जाएं

और निंदिया फ़िर उड़ जाए

पलकों के टूटे पंख लगाए।


सौम्या वफ़ा।©

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