रात ढले निंदिया उड़ जाए
पलकों के टूटे पंख लगाए
कड़वी कड़वी आंखों में कच्ची कच्ची
दुनिया चुभ जाए
निंदिया की राह तके बिन
थकी अंखियां मानें ना
उतर के निंदिया आए इस बार
तो अंखियों में नए सपने सजाएं
सपनों का मीठा जो फ़िर से लागे
पलकों का कड़वा मिट जाए
सूखे सूखे आंखों के सेहरा में
कोई बारिश दे जाए
टूटे पंखों पे फ़िर लगाऊं
गुलाबी गुलाली गुब्बारे
बरसे तपते चेहरे पे हों
ठंडे भीगे बोसे से फ़व्वारे
एक टूटे जो कहीं दूर सितारा
मैं बांट लूं उसे रात से आधा आधा
दबी दबी सी हंसी मेरी
फ़िर से खुल के खिलखिलाए
पर्दे के पीछे लुका मन
झाँ कर के झट से बाहों में आ जाए
ये चाहूं रात रात भर
और जाने कब नींद आ जाए
टूटे फूटे पंखों से
माथा सहला जाए
खुल गई जो आंखें गर
तो जादू सा सब गायब
जानूं मैं वो थी अभी यहीं
जो देखूं कि
सिरहाने छूटे छूटे से रंग दे जाए
तकिए पे साए के साथी
नीले गुलाबी से हो जाएं
और निंदिया फ़िर उड़ जाए
पलकों के टूटे पंख लगाए।
सौम्या वफ़ा।©
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