रविवार, 4 अक्टूबर 2020

छोटा सा है मन भौरा

 छोटा सा है मन भौरा 

 और दुनिया कितनी बड़ी 

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली 

खाली पेट से पुकार 

लगाती प्यास है चख ली 

हर क़िताब  के बीच है लगा के रखा 

अपनी निशानियों का बुकमार्क 

हर बूँद पे पानी से 

अपनी तस्वीर खींच ली 

छूटी थी कहानी जहाँ 

वहां नयी शुरुआत लिख ली 

जले जितना और उड़े उतना 

मन भौरे ने जलते जलते 

भाप से हवा में फुर्र हो 

घुल घुल 

बरस  जाने की 

जादू भरी 

तरक़ीब है सुन ली 

छोटे से मन भौरे ने 

जाने अनजाने 

सारी दुनिया है तक ली 

प्यासे मन ने  जाने कैसे 

समंदर पे ग्लूकोज़ एनर्जी 

 की छड़ी घुमा दी है 

ख़ारी  ख़ारी  सब लहरों पे 

मिश्री है मल दी 

झीने झीने पंखों से  

पीछे छूटे सब जूठन की 

ऊँगली चट रेसेपी गढ़ ली 

जो लिखी ना गयीं उन क़िताबों 

को जी के 

भौरे की सूझ बड़ी बढ़ गयी 

पहले सपनों को मैं पकाने की 

करती रहती थी दिन रात तैयारी 

अब सपनों ने मुझको 

मद्धम मद्धम पकाने की 

पक्की सारी  तैयारी है कर ली 

बड़े दिनों से थी अनबन 

अब जाके मुसाफ़िर ने 

टूटी फूटी सब राहों से 

 है यारी कर ली 

जितनी भी थीं तस्वीरें 

सब औरों की थीं 

औरों में से कितनी तो 

ग़ैरों की थीं 

ख़ुद  को खोज के मैंने 

ख़ुद  ही ख़ुद की तस्वीर  बदल ली 

बदली तस्वीर पे नई तकदीर गढ़ ली

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली । ...  



सौम्या वफ़ा। ©


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