छोटा सा है मन भौरा
और दुनिया कितनी बड़ी
जाने अनजाने ही
सारी दुनिया है तक ली
ऊंचे ऊंचे सपनों की
हर क़िताब है चख ली
खाली पेट से पुकार
लगाती प्यास है चख ली
हर क़िताब के बीच है लगा के रखा
अपनी निशानियों का बुकमार्क
हर बूँद पे पानी से
अपनी तस्वीर खींच ली
छूटी थी कहानी जहाँ
वहां नयी शुरुआत लिख ली
जले जितना और उड़े उतना
मन भौरे ने जलते जलते
भाप से हवा में फुर्र हो
घुल घुल
बरस जाने की
जादू भरी
तरक़ीब है सुन ली
छोटे से मन भौरे ने
जाने अनजाने
सारी दुनिया है तक ली
प्यासे मन ने जाने कैसे
समंदर पे ग्लूकोज़ एनर्जी
की छड़ी घुमा दी है
ख़ारी ख़ारी सब लहरों पे
मिश्री है मल दी
झीने झीने पंखों से
पीछे छूटे सब जूठन की
ऊँगली चट रेसेपी गढ़ ली
जो लिखी ना गयीं उन क़िताबों
को जी के
भौरे की सूझ बड़ी बढ़ गयी
पहले सपनों को मैं पकाने की
करती रहती थी दिन रात तैयारी
अब सपनों ने मुझको
मद्धम मद्धम पकाने की
पक्की सारी तैयारी है कर ली
बड़े दिनों से थी अनबन
अब जाके मुसाफ़िर ने
टूटी फूटी सब राहों से
है यारी कर ली
जितनी भी थीं तस्वीरें
सब औरों की थीं
औरों में से कितनी तो
ग़ैरों की थीं
ख़ुद को खोज के मैंने
ख़ुद ही ख़ुद की तस्वीर बदल ली
बदली तस्वीर पे नई तकदीर गढ़ ली
छोटे से मन भौरे ने
जाने अनजाने ही
सारी दुनिया है तक ली
ऊंचे ऊंचे सपनों की
हर क़िताब है चख ली । ...
सौम्या वफ़ा। ©
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