बोझ की गठरी गंगा बहा के
ताले में बंद कर सब दिखलावे
मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ बस वो रह जाऊं
मैं तज के दुनियादारी सब
सीधी सीध में बढ़ जाऊं
सीखी सिखाई रटी रटाई
भुला के सब
एक नया ज्ञान हो जाऊं
मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं
बादलों के रेगिस्तान में
भाप सी खो जाऊं
क़तरा क़तरा जो ढूंढे कोई तो
क़तरा भी ना मिले
जो ढूंढे कोई जीवन तो
साँसों में समा जाऊं
मैं छोड़ के बाबुल की गली
ख़ुदी को ख़ुदा जानके
ख़ुद को कहीं ढूंढूं बसाऊं
मैं तोड़ के सब नाते भरम के
सात आसमाँ दूर उड़ जाऊं
तूफाँ जो आये राह में
मैं बवंडर बन लहराऊँ
कोई हो जो हाँथ ,
थामे जलती धूप में
तो पुरवैय्या बन माथे को सहलाऊँ
मैं थकूं भी तो ठहरूं ना
कभी झूमूँ , नाचूं, उडूं ,बलखाऊँ
कभी आहिस्ते आहिस्ते चलती जाऊं
मैं तोड़ के माटी की गगरिया
बूँद बूँद में उतरूं
और तर जाऊं
मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं
मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ , बस वो रह जाऊं।
सौम्या वफ़ा। ©
ताले में बंद कर सब दिखलावे
मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ बस वो रह जाऊं
मैं तज के दुनियादारी सब
सीधी सीध में बढ़ जाऊं
सीखी सिखाई रटी रटाई
भुला के सब
एक नया ज्ञान हो जाऊं
मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं
बादलों के रेगिस्तान में
भाप सी खो जाऊं
क़तरा क़तरा जो ढूंढे कोई तो
क़तरा भी ना मिले
जो ढूंढे कोई जीवन तो
साँसों में समा जाऊं
मैं छोड़ के बाबुल की गली
ख़ुदी को ख़ुदा जानके
ख़ुद को कहीं ढूंढूं बसाऊं
मैं तोड़ के सब नाते भरम के
सात आसमाँ दूर उड़ जाऊं
तूफाँ जो आये राह में
मैं बवंडर बन लहराऊँ
कोई हो जो हाँथ ,
थामे जलती धूप में
तो पुरवैय्या बन माथे को सहलाऊँ
मैं थकूं भी तो ठहरूं ना
कभी झूमूँ , नाचूं, उडूं ,बलखाऊँ
कभी आहिस्ते आहिस्ते चलती जाऊं
मैं तोड़ के माटी की गगरिया
बूँद बूँद में उतरूं
और तर जाऊं
मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं
मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ , बस वो रह जाऊं।
सौम्या वफ़ा। ©
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