सोमवार, 20 जुलाई 2020

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

बोझ की गठरी गंगा बहा के
ताले में बंद कर सब दिखलावे

मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे

बस जो हूँ बस वो रह जाऊं

मैं तज के दुनियादारी सब
सीधी  सीध में बढ़ जाऊं
सीखी सिखाई रटी रटाई
भुला के सब
एक नया ज्ञान हो  जाऊं

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

बादलों के रेगिस्तान में
भाप सी खो जाऊं

क़तरा  क़तरा  जो ढूंढे कोई तो
क़तरा  भी ना मिले

जो  ढूंढे कोई जीवन तो
साँसों में समा जाऊं

मैं छोड़ के बाबुल की गली
ख़ुदी  को ख़ुदा  जानके
ख़ुद  को कहीं ढूंढूं बसाऊं

मैं तोड़ के सब नाते भरम के
सात आसमाँ  दूर उड़ जाऊं

तूफाँ जो आये राह में
मैं बवंडर बन लहराऊँ

कोई हो जो हाँथ ,
थामे जलती धूप में
तो पुरवैय्या बन माथे को सहलाऊँ

मैं थकूं भी तो ठहरूं ना
कभी झूमूँ , नाचूं, उडूं ,बलखाऊँ
कभी आहिस्ते आहिस्ते चलती जाऊं

मैं तोड़ के माटी की गगरिया
बूँद बूँद में  उतरूं
और तर जाऊं

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ , बस वो रह जाऊं।



सौम्या वफ़ा। ©

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