तेरे मेरे बीच दायरा
दुनिया के दस्तूरों का है
ये फा़सला मीलों का नहीं
चंद फ़ैसलों का है
वफ़ा की क़ीमत
हर बार अदा नहीं होती मुहब्बत से
ये बेवफ़ाई नारसाई की फ़ितरत सा है
जो है आज यहीं है
कल के अरमानों की जेबों में
सिक्का सिर्फ़ कसूरों का है
आज है तो जी लो
कल को रिश्ता सिर्फ़
तोहमतों का है
ना हम दिल लगाएं
ना तुम करो दिल्लगी
ज़िन्दगी की क़ैद में
चंद घड़ी को जीना
मोहलतों सा है
दो सांस में बांट लो उम्र आधी आधी
कि मुहब्बत से ख़ाली दुनिया
ढूंडती है मशगूली में मुहब्बत
मुहब्बत काम बड़ी फु़रसतों का है।
सौम्या वफ़ा।©
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें