शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

वफ़ा

 तेरे मेरे बीच दायरा

दुनिया के दस्तूरों का है

ये फा़सला मीलों का नहीं

चंद फ़ैसलों का है

वफ़ा की क़ीमत 

हर बार अदा नहीं होती मुहब्बत से

ये बेवफ़ाई नारसाई की फ़ितरत सा है

जो है आज यहीं है

कल के अरमानों की जेबों में

सिक्का सिर्फ़ कसूरों का है

आज है तो जी लो

कल को रिश्ता सिर्फ़

तोहमतों का है

ना हम दिल लगाएं

ना तुम करो दिल्लगी

ज़िन्दगी की क़ैद में

चंद घड़ी को जीना

मोहलतों सा है

दो सांस में बांट लो उम्र आधी आधी

कि मुहब्बत से ख़ाली दुनिया

 ढूंडती है मशगूली में मुहब्बत

मुहब्बत काम बड़ी फु़रसतों का है।


सौम्या वफ़ा।©


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