जग में खोये अपने
अंधियारे साये को
अब मैं रोशनी नयी दिखाऊं
बीज उजियारे का आज मैं
माटी की कोख में उगाऊं
उपजे हरियाली काया
उपजे मन हरियाला
फूटे कोमल किरणें नयी
बरसे सीने से झर झर आंसू
बन अमृत दुधियारा
आज हरियाले पे बन मैं
फूल बसंती खिल जाऊं
जग में खोये अपने अंधियारे साये को
अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं
आसमान तक फैलें मेरी हथेलियां
पावों में गहरी जड़ें जमाऊँ
हाथों में ले समय की नोंक
सूरज का मैं कातू चरखा
लाली पर गुलाबी बन छाऊँ
मैं नाचूं, धरती झूमें
संग सारंगी गगन के
ताल दे बदरिया
मैं ही बरसूं जी भर भर
मैं ही तर तर जाऊं
मैं ही जलूं अपनी भसम में
मैं ही ख़ुद में रम रम जाऊं
इस पार की छोड़ के बातें
अपने कंधे चढ़ाये
अपनी कश्ती
लहरों में लहराऊँ
मैं तैरूं, मैं उड़ूँ
मैं उस पार उतर जाऊं
धूल धूल मटियारे में
जुगनू बन जगमगाऊं
मैं ही बरसूं जी भर भर
मैं ही तर तर जाऊं
जग में खोये अपने अंधियारे साये को
अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं।
सौम्या वफ़ा।©
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