सोमवार, 21 सितंबर 2020

रोशनी

 जग में खोये अपने 

अंधियारे साये को 

अब मैं रोशनी नयी दिखाऊं 

बीज उजियारे का आज मैं 

माटी की कोख में उगाऊं  

उपजे हरियाली काया 

उपजे मन हरियाला 

फूटे कोमल किरणें नयी 

बरसे सीने से झर झर आंसू 

 बन अमृत दुधियारा 

आज हरियाले पे बन मैं 

फूल बसंती खिल जाऊं  

जग में खोये अपने अंधियारे साये को 

अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं 

आसमान तक फैलें  मेरी हथेलियां  

पावों में गहरी जड़ें जमाऊँ

हाथों में ले समय की नोंक 

 सूरज का मैं कातू चरखा  

लाली पर गुलाबी बन छाऊँ  

मैं नाचूं, धरती झूमें 

संग सारंगी गगन के 

ताल दे बदरिया 

मैं ही बरसूं जी भर भर 

मैं ही तर तर जाऊं

मैं ही जलूं अपनी भसम में 

मैं ही ख़ुद में रम रम जाऊं 

इस पार की छोड़ के बातें 

अपने कंधे चढ़ाये 

अपनी कश्ती 

लहरों में लहराऊँ  

मैं तैरूं, मैं उड़ूँ

मैं उस पार उतर जाऊं 

धूल धूल मटियारे में 

जुगनू बन जगमगाऊं 

मैं ही बरसूं जी भर भर 

मैं ही तर तर जाऊं  

जग में खोये अपने अंधियारे साये को 

अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं। 


सौम्या वफ़ा।©


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