सोमवार, 14 सितंबर 2020

कभी कभी

 कभी कभी कितना लगता है

कि ज़ेहन में कहीं

कुछ अटका सा है

कितना भी ढूंढो 

अक्सर मिलता नहीं

ख़ुद से छिपा बैठा

तहों का फांस है

और बैठ जाओ ज्यों ही

ख़ाली चुपचाप

ख़ुद ही निकल कर आ जाता है बाहर

मानो आंख मिचौली में

चोर के पकड़ जाने पर

ख़ुशी मनाता कोई बच्चा तैयार है

और बस झटके से कब आ जाता है 

आंखों के सामने

मन में छिपा बैठा कंकड़

साथ में कलकल कर बहती लहरों के

कि मालूम ही नहीं चलता

कि वो जो कब से अटका सा था

वो कब का धुल कर बह गया है।


सौम्या वफ़ा।©

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