सोमवार, 20 जुलाई 2020

एक शांत शीतल सी लड़की

एक शांत शीतल सी लड़की  जो
 गीत लिखती है आज़ादी के

पन्नों पर उतारती है सपने सुलगते
हरी भरी आबादी के

 दहकते अंगारों के कुछ निशाँ
मिट जाते हैं जो बारी बारी
 उसके ठन्डे मीठे स्पर्श से

उसकी आँखों के दहकते दो खुर्शीद
उबल से पड़ते हैं स्याही बनके

एक एक  गरम सुलगते शब्द उसके
चमकते हैं पीले पन्नों पे तारे बनके


कभी ख़ुशी ख़ुशी सब समेट के
कभी मन मार के
सब बिखेर के

दुनिया से दूर एक नयी दुनिया बसाती है

जब जब वो गीत लिखती है आज़ादी के

हौले हौले ठंडी पुरवैया सी बहती लड़की
आग़  सी बरस जाती है काग़ज़ पे

जल जाता है काग़ज़ कुछ
कुछ निशाँ रह जाते हैं उसके हाथों पे

सुन्दर  बेदाग़ सी लड़की
दाग़ों के तमगे टाँगे सीने पे

रात की किताबों में  चमकती है
चाँदनी उड़ेले ,चाँद बनके
राह दिखाती है  धरती के
भूले बिसरों को

आसमान में उड़ती कहानी के

एक शांत शीतल सी लड़की
जो गीत लिखती है आज़ादी के।



सौम्या वफ़ा। ©

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