आंखों में तुमको भर मैं
तुम तक चलती जाती हूं
साथ साथ मेरे
एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो
मैं एक बार आंखों में
जीवन का पानी भरती हूं
और तुम अमृत बन
हज़ार बार चमक जाते हो
कैसे है यों
कि तुम जितने हो सफेद उतने ही रंगीन भी
कि तभी रोशनी का क़तरा कहलाते हो
मैं बार बार बनके बिगड़ती बिखरती
फ़िर बन संवर जाती हूं
और मेरे बिखरने पे तुम
हज़ार दरपन बन जाते हो
मेरे बनने में मुझसे एक हो जाते हो
मैं देखती हूं ख़ुद को बैठे बैठे यूं ही
तुम मेरे पोरों से बिखर
किरनें अनगिनत हो जाते हो
मैं निहारती हूं तुमको
तुम किरकिरे कतरों से
चिकना दर्पण बन जाते हो
मैं ढलती हूं
उम्र चढ़ती है
और तुम सूरज बन जगमगाते हो
कैसा जादू है कुदरत का
जितने पुराने हो
उतने ही नए होते जाते हो
अपने नए रंगों से
मुझको भी नया रंग जाते हो
ख़ुद की सूरत जो कभी थी कहीं
वो अब पहचानी जाती नहीं
हां मगर आइने से तुम
किसी नूर सा मुझपे चढ़ते जाते हो
मैं थमूं तो
मुझे भी संग संग बहाते हो
जीवन तुम ऐसे ही सदियों से
मुझमें अविरल बहते जाते हो
तुम सन्यासी के तप का फूल बन
मुझमें योग का बीज जमाते हो
मैं प्रेम करती हूं
और तुम मुझे प्रेम सिखाते हो
जीवन तुम ऐसे ही सदियों से
मुझमें अविरल बहते जाते हो
एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो।
सौम्या वफ़ा।©
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