शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

जीवन

 आंखों में तुमको भर मैं

 तुम तक चलती जाती हूं

 साथ साथ मेरे

एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो

मैं एक बार आंखों में

जीवन का पानी भरती हूं

और तुम अमृत बन

हज़ार बार चमक जाते हो

कैसे है यों

कि तुम जितने हो सफेद उतने ही रंगीन भी

कि तभी रोशनी का क़तरा कहलाते हो

मैं बार बार बनके बिगड़ती बिखरती

फ़िर बन संवर जाती हूं

और मेरे बिखरने पे तुम

 हज़ार दरपन बन जाते हो

मेरे बनने में मुझसे एक हो जाते हो

मैं देखती हूं ख़ुद को बैठे बैठे यूं ही

तुम मेरे पोरों से बिखर 

किरनें अनगिनत हो जाते हो

मैं निहारती हूं तुमको

तुम किरकिरे कतरों से

चिकना दर्पण बन जाते हो

मैं ढलती हूं

उम्र चढ़ती है

और तुम सूरज बन जगमगाते हो

कैसा जादू है कुदरत का

जितने पुराने हो

उतने ही नए होते जाते हो

अपने नए रंगों से

मुझको भी नया रंग जाते हो

ख़ुद की सूरत जो कभी थी कहीं

वो अब पहचानी जाती नहीं

हां मगर आइने से तुम

किसी नूर सा मुझपे चढ़ते जाते हो

मैं थमूं तो

 मुझे भी संग संग बहाते हो

 जीवन तुम ऐसे ही सदियों से

 मुझमें अविरल बहते जाते हो

 तुम सन्यासी के तप का फूल बन

 मुझमें योग का बीज जमाते हो

 मैं प्रेम करती हूं

 और तुम मुझे प्रेम सिखाते हो

 जीवन तुम ऐसे ही सदियों से

 मुझमें अविरल बहते जाते हो

 एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो।


सौम्या वफ़ा।©



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