शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

पलकें, सितारे और दुआ

 अपनी पलकों से टूट के ख़्वाब

 दुआ बन जाते हैं

हथेली पे रखे बुझे से चिराग़

फूंकों में रोशन हो जाते हैं

किसी की टूटी पलकों पे

किसी के ख़्वाब जगमगाते हैं

वो ख्वाब फ़िर,

किसी की दुआ बन जाते हैं

और किसी की दुआ

किसी की मन्नतों का हासिल हो जाते हैं

किसी के हासिल में

किसी के टूटे अफ़कार चमक बढ़ाते हैं

क़ायनात के जादू में

जितने टूटते हैं सितारे

उतने ही मुकम्मल होते हैं और

मुराद बन जाते हैं

उन मुकम्मल जहानों पर

कितने और

नए सितारे जड़ जाते हैं

अपनी पलकों से टूट के ख़्वाब

दुआ बन जाते हैं

सितारे हैं, पलके हैं

ख़्वाब हैं कि अश्क़

फ़र्क कहां कर पाते हैं

ये मिलके सब 

अशफ़ाक़ हो जाते हैं

जम जम का पाक़

आबशार हो जाते हैं

चमकते हैं, टूटते हैं

गिरते हैं और फ़िर

ज़र्रा ज़र्रा हो जाते हैं

अपनी पलकों से टूट के ख़्वाब

दुआ बन जाते हैं

अपनी पलकों से टूट के ख़्वाब

दुआ बन जाते हैं।



सौम्या वफ़ा।©०

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