ख़ामोश बैठ कहीं
कोई इबादत लिखूं
माथे पे बहती नदी की
एक लकीर खींच
कोई नई इबारत लिखूं
ज़मीं पे पसरी दहलीज़ों को
ज़मीं में मिला, उनपे
जीने की इजाज़त लिखूं
मैं हर ज़र्रे की कोरी स्लेटों पर,
मुहब्बत की आदत लिखूं
ज़िन्दगी हो फ़लसफ़ा,
और मैं उसपे
इनायत लिखूं
ख़ामोश बैठ कहीं
कोई इबादत लिखूं।
सौम्या वफ़ा।०
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