एक रात एक चिराग़ को
पंख लग गए
और वो धुआं बनकर उड़ गया।
सौम्या वफ़ा '०'।
जो कर रहा हो मन को मोहित
वहीं अक्सर होता है,
मन शोषित
जहां ज़ुबान में है
ज़रूरत से ज़्यादा मिश्री
वहीं मीठा ज़हर भी होता है
होती है जहां चुप्पी ज़रूरत से ज़्यादा
वहीं कोई अंदर से खोखला और ख़ाली होता है
लगती है जहां अक्सर शांत सी कोई झील
वहीं धोखा होता है
प्रेम और माया में फ़र्क है यही
प्रेम समय के साथ खिलता चला जाता है
और माया झड़कर बिखर जाती है।
"वो जानती ना थी और कुछ
बस सूरज को पोर पोर पीना
और चांद को घूंट घूंट
काया उसकी ऐसे ही कारिख हुई
और मन
उजियारा कनक।"
सौम्या वफ़ा।©
सफ़र शुरु किया था
मुसाफ़िरों सा
बिगड़ गया था हाल मेरा,
ज़माने में
काफ़िरों सा
हम तंग थे मगर
कलाकार थे
कुछ और ना सही
अपनी राह के शहकार थे
जाने क्या क्या चाहत थी
जाने क्या क्या हसरत थी
मिट गई सब दूधिया धुंधलके में
मंज़िल पे हक़ीक़त
शम्स सी नुमायां थी
ना कुछ चाहत थी
ना कोई हसरत थी
थी बस एक शिद्दत भरी कोशिश
है बस एक मुद्दत रंगी कोशिश
भटके मुसाफ़िर से राह हो जाने की
राह की निग़ाह हो जाने की
उरूज पे पहुंच के
इंसां हो जाने की
उरूज पे पहुंच के
इंसां हो जाने की।
सौम्या वफ़ा।©