वो कैसा समय, कैसा युग था
जब रिश्तों का आविष्कार हुआ था?
क्या उस आविष्कारक को भी कभी प्यार हुआ था!!!
या ले ली थी उसने , एक चुनौती
बिना किसी के दिए स्वयं ही
उस दिन वो ईश्वर और प्रकृति के विरुद्ध
युद्ध में उतर गया था
सारी धरती जो स्वर्ग थी
बदल दी वो युद्ध भूमि में
हां वो आविष्कारक ,
स्वयं को अधिक शक्तिशाली बताने को
शैतान की शक्ल में तैयार हुआ था
उस दिन के बाद से फिर हर दिन
प्यार नहीं कारोबार हुआ था
सारी कमान थी शैतान की
और नाम पे रीत रवाजों के
बाहमन मुल्ला ने ख़ूब बांटे पंजीरी पेड़े
और बेचने को उस दिन
बनिया ने हर किस्म का बाज़ार लगाया था
हर किसी को पकड़ कर लगाए गए थे
लेबल
और जो ना हुआ था तैयार लगवाने को
हर उसको
समाज के रखवाले शैतान ने
मौत के घाट उतार दिया था
उस दिन के बाद से हर दिन
स्वर्ग सिमट कर रह गया
पुराणों और किताबों में
और जीने को हर जगह
नर्क का विस्तार हुआ था
उसके बाद से तो बस हर दिन
रिश्तों का आविष्कार हुआ था
आवश्यकता अगर आविष्कार की जननी है
तो क्यूं नहीं ईश्वर ने स्वयं या ख़ुदा ने ख़ुद
ये लेबल हम सब पर चस्पा किया था?
जानकर भी चुप रहते हैं
ये सारे जानने वाले
कि आविष्कार के नाम पर ही हर बार
दोहन और शोषण
इसी नर्क के विस्तार में हुआ था!
अर्थ से
अनर्थ हुआ था उस दिन
जिस दिन रिश्तों का आविष्कार हुआ था
उस दिन भरे चौराहे पर
शुद्धता और संपूर्णता की हुई थी फांसी
और सरलता का भरी सभा में
चीरहरण का त्योहार हुआ था
स्वीकार्य का हुआ था जग उपहास
भावनाओं का तिरस्कार हुआ था
चहुं ओर
सत्यम शिवम् सुंदरम का
नर संहार हुआ था
नग्न ही पड़ी थी
प्रकृति की लाश
ना कफ़न को बढ़ा था कोई आगे
ना किसी ने अंतिम संस्कार ही किया था!
मूक दर्शक थे सब इस हाहाकार के
फिर एक मशाल जली साहस की
उसे भी मगर फिर
जल जल कर जीने को
बहिष्कार दिया था!!!
वो युग था तमस का अंध गह्वर
वो युग काले अंधकार का था
उस दिन हर सरल बहते दरिया में
एक भंवर तैयार हुआ था
जिस क्षण उस युग में
रिश्तों का आविष्कार हुआ था।
सौम्या वफ़ा।
(२३.३.२०२०).
जब रिश्तों का आविष्कार हुआ था?
क्या उस आविष्कारक को भी कभी प्यार हुआ था!!!
या ले ली थी उसने , एक चुनौती
बिना किसी के दिए स्वयं ही
उस दिन वो ईश्वर और प्रकृति के विरुद्ध
युद्ध में उतर गया था
सारी धरती जो स्वर्ग थी
बदल दी वो युद्ध भूमि में
हां वो आविष्कारक ,
स्वयं को अधिक शक्तिशाली बताने को
शैतान की शक्ल में तैयार हुआ था
उस दिन के बाद से फिर हर दिन
प्यार नहीं कारोबार हुआ था
सारी कमान थी शैतान की
और नाम पे रीत रवाजों के
बाहमन मुल्ला ने ख़ूब बांटे पंजीरी पेड़े
और बेचने को उस दिन
बनिया ने हर किस्म का बाज़ार लगाया था
हर किसी को पकड़ कर लगाए गए थे
लेबल
और जो ना हुआ था तैयार लगवाने को
हर उसको
समाज के रखवाले शैतान ने
मौत के घाट उतार दिया था
उस दिन के बाद से हर दिन
स्वर्ग सिमट कर रह गया
पुराणों और किताबों में
और जीने को हर जगह
नर्क का विस्तार हुआ था
उसके बाद से तो बस हर दिन
रिश्तों का आविष्कार हुआ था
आवश्यकता अगर आविष्कार की जननी है
तो क्यूं नहीं ईश्वर ने स्वयं या ख़ुदा ने ख़ुद
ये लेबल हम सब पर चस्पा किया था?
जानकर भी चुप रहते हैं
ये सारे जानने वाले
कि आविष्कार के नाम पर ही हर बार
दोहन और शोषण
इसी नर्क के विस्तार में हुआ था!
अर्थ से
अनर्थ हुआ था उस दिन
जिस दिन रिश्तों का आविष्कार हुआ था
उस दिन भरे चौराहे पर
शुद्धता और संपूर्णता की हुई थी फांसी
और सरलता का भरी सभा में
चीरहरण का त्योहार हुआ था
स्वीकार्य का हुआ था जग उपहास
भावनाओं का तिरस्कार हुआ था
चहुं ओर
सत्यम शिवम् सुंदरम का
नर संहार हुआ था
नग्न ही पड़ी थी
प्रकृति की लाश
ना कफ़न को बढ़ा था कोई आगे
ना किसी ने अंतिम संस्कार ही किया था!
मूक दर्शक थे सब इस हाहाकार के
फिर एक मशाल जली साहस की
उसे भी मगर फिर
जल जल कर जीने को
बहिष्कार दिया था!!!
वो युग था तमस का अंध गह्वर
वो युग काले अंधकार का था
उस दिन हर सरल बहते दरिया में
एक भंवर तैयार हुआ था
जिस क्षण उस युग में
रिश्तों का आविष्कार हुआ था।
सौम्या वफ़ा।
(२३.३.२०२०).
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