शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

जीवन

 आंखों में तुमको भर मैं

 तुम तक चलती जाती हूं

 साथ साथ मेरे

एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो

मैं एक बार आंखों में

जीवन का पानी भरती हूं

और तुम अमृत बन

हज़ार बार चमक जाते हो

कैसे है यों

कि तुम जितने हो सफेद उतने ही रंगीन भी

कि तभी रोशनी का क़तरा कहलाते हो

मैं बार बार बनके बिगड़ती बिखरती

फ़िर बन संवर जाती हूं

और मेरे बिखरने पे तुम

 हज़ार दरपन बन जाते हो

मेरे बनने में मुझसे एक हो जाते हो

मैं देखती हूं ख़ुद को बैठे बैठे यूं ही

तुम मेरे पोरों से बिखर 

किरनें अनगिनत हो जाते हो

मैं निहारती हूं तुमको

तुम किरकिरे कतरों से

चिकना दर्पण बन जाते हो

मैं ढलती हूं

उम्र चढ़ती है

और तुम सूरज बन जगमगाते हो

कैसा जादू है कुदरत का

जितने पुराने हो

उतने ही नए होते जाते हो

अपने नए रंगों से

मुझको भी नया रंग जाते हो

ख़ुद की सूरत जो कभी थी कहीं

वो अब पहचानी जाती नहीं

हां मगर आइने से तुम

किसी नूर सा मुझपे चढ़ते जाते हो

मैं थमूं तो

 मुझे भी संग संग बहाते हो

 जीवन तुम ऐसे ही सदियों से

 मुझमें अविरल बहते जाते हो

 तुम सन्यासी के तप का फूल बन

 मुझमें योग का बीज जमाते हो

 मैं प्रेम करती हूं

 और तुम मुझे प्रेम सिखाते हो

 जीवन तुम ऐसे ही सदियों से

 मुझमें अविरल बहते जाते हो

 एक एक कण में तुम हीरे सा छलछलाते हो।


सौम्या वफ़ा।©



बुधवार, 16 दिसंबर 2020

इबादत

 ख़ामोश बैठ कहीं

 कोई इबादत लिखूं

 माथे पे बहती नदी की

 एक लकीर खींच

 कोई नई इबारत लिखूं

 ज़मीं पे पसरी दहलीज़ों को

 ज़मीं में मिला, उनपे 

जीने की इजाज़त लिखूं

 मैं हर ज़र्रे की कोरी स्लेटों पर,

 मुहब्बत की आदत लिखूं

 ज़िन्दगी हो फ़लसफ़ा,

 और मैं उसपे 

 इनायत लिखूं

 ख़ामोश बैठ कहीं

 कोई इबादत लिखूं।


सौम्या वफ़ा।०


सोमवार, 7 दिसंबर 2020

सफ़र

 सफ़र में जो कहीं

प्यासी हो लूं

धूप घोल, पानी में पी लूं

एक निवाले संग सारा जग जी लूं

धरती संग बढूं पग पग

हवा को कंधे डाले डोलूं

ढलती शाम की सीढ़ी चढ़

आसमां की सिटकनी लगा दूं

मैं  बादलों का एक कमरा बना

चंदा को बाहों में भर लूं

एक फूंक में उडूं

एक बूंद में डूबुं

एक क़तरा छू के

जलूं - चमकूं

कोयला- कोयला 

पिस पिस हीरा बनूं

सोना सोना हो मिट्टी बनूं

मिट्टी बन बन

राख हो जाऊं

धुआं धुआं उभरूं

उभर के कहीं गुम हो जाऊं

किसी टूटते सितारे का

मेहताब हो जाऊं

वो बुझे जो तो मैं जलूं

उसके कतरे का मैं ज़र्रा

बन जाऊं

वो सिसके मैं आहें हो जाऊं

वो हंसे मैं मुस्कुराऊं

वो बोले नस नस में

मैं ख़ामोशी बन आलम में गूंजूं

बालू के ढेरों में तारे खंगालूं

उन तारों से अपना आईना तराशूं

एक दफा़ देखूं 

आइने में ख़ुद को

मैं ख़ुद से मिलके ये जहां भूलूं

फ़िर आइने में ही कोई खिड़की बना लूं

जब जी चाहे ताकूं झाकूं

सूरत मिलती है यूं तो उसकी मुझसे;

मगर मैं तो उसे

ख़ुदा जानूं

आईना देख देख 

मैं ख़ुद को क्या क्या ना समझा लूं

भर के फ़िर आइने को झोले में,

मैं इक और क़दम बढ़ा दूं

सफ़र में जो कहीं

प्यासी हो लूं

धूप घोल पानी में पी लूं।




सौम्या वफ़ा।©



क़लम की कमाई

 कुछ मेरी क़लम की कमाई

कुछ मंच पे उतर के

रंगों की मुंह दिखाई

कुछ तालियां तारीफें

कुछ जग हंसाई

ले दे के

इसके सिवा और क्या पास रखा मैंने

जितनी भरी खुशबुएं

उतनी ही सांसें लुटाईं।


सौम्या वफ़ा।©


मेरी कमाई

 मैंने अपने जीवन में कुछ नहीं बस

जी को तोड़ कर ख़त्म कर देने वाली 

मेहनत कमाई है

उस मेहनत में पैसे नहीं 

हर बार हार कमाई है

उस हार से कमाया है फ़िर 

बेशकी़मती अनुभव

उस अनुभव से फ़िर जी की शांति कमाई है

उस शांति से फ़िर कमाई है एक जगह

और उस जगह से फ़िर एक ज़िन्दगी कमाई है

उस ज़िंदगी ने फ़िर दिया है सबकुछ

वो सबकुछ जो आज मेरी पूरी कमाई है।


सौम्या वफ़ा।©

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

मैं और कविताएं

 हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं

आग़ में बहते बहते

चांदनी बुन लेती हूं

ज़ख्म सी हो अगर कोई कहानी

उस पर कविता का मलहम मल लेती हूं

ज़िन्दगी, मुश्किल पार कर के 

उसके आगे शुरू होती है

मैं ऐसी कहानियां, हर रोज़ सुनती हूं

मुश्किलें पार मगर,

कविता से ही करती हूं

फ्रेम में होती हैं कहानियां

और अंदर कविता रंगती हूं

मैं हर काहानी के पूर्ण विराम पे,

एक कविता का टीका कर देती हूं

हर दिन कहानियां जीते जीते

मैं कविताएं चुन लेती हूं।



सौम्या वफ़ा।©


सोमवार, 23 नवंबर 2020

Pages of Peace ☀️🌗🌙☀️

 Fill Your blank pages 

With Rainbow Dreams of Peace

For Peace is the Only Love

And Love is Peace

The Two Companion

Are always together

For resolving the mysteries of universe,

Just like the Golden Lock and Silver Key

They are the only source of Truth;

For those who are seeking Liberation

Who are Somewhere in the Universe

While Still being On Earth Very much Alive

Your Peace will Lock the doors of

Unwanted darkness and Disbelief

Your Love will Open the Hearts

For bringing the Joy of Eternity

As there is no Separation between

Love and Peace

Peace is Love,

And Love is Peace

The eternal Bliss

And Ultimate Prosperity

Why to leave the precious pages of Life

Fill Your blank pages

With Rainbow Dreams of Peace.


Saumya Wafa.©


❇️🌟💜❇️🦋🌼🌱🌈🌱


शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

My Graceful Life 🌟💜💚💜🌟

 I was a Hopeless beggar

When I was running after pleasure,

My time was a misery

And I was a miserable loser;

Never knowing that I always had

The Most Beautiful Treasure

Until One day I almost lost it

The day,

I got the senses to realise it

What a tremendous chance I have got

Of having a gift of life;

The Most Precious

The most wonderous!

Since then,

Every day is a Surprise,

And night is a moment to return

What I got, 

before my bed is there to retire.!

Oh my Beautiful Life

With my head bow down,

And chest swelled with Gratitude

I am ready to embrace you every moment

You are the most Graceful!

I am living you and Loving you

All through in and Out!


(at your Precious Service my Life)


Saumya Wafa ©🌟💜💚🙌💖🙏💜🌟💚💜🙏🙌🦋🌱🦋🌷🥀🌱☘️❇️🌼☘️✨✨💖🌟💜💚🌟💜💚🌟💜🌟💜🌟💚🌟💜🙏🙏🙏🙏🙏🙏

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

कुछ अंग्रेज़ी में। An Ode to the Butterfly 🦋

 The Song of Broken wings

A pride with which her tiny Soul shines

Moulding the brave medals 

Of wars

Donning the glowing scars

With wisdomful Smile

She makes it,

a moment to remember

When her soul fought 

the mighty fight,

When She won the game of Survivor 

more than thousand times

Achieving a remarkable mark for her Life

From where now everyday,

A Ray of Light illuminates so Bright.

She holds onto this Light of Paradise

And Glides to her way

For which she was born

Living a life full size

With a Soul of phoenix

And Body of Butterfly

She lost the part of her wings

Yet she knew how to Fly

Reminding herself the fact

Living like Yourself;

Is the Best way to Gracefully Die.


Poem dedicated to the Butterfly 🦋

@saumya_wafa0 ©


An ode to the Butterfly who fought for her Life and in that war she lost a part of her wings, Yet she knew how to Fly. I don't know how that happened, but I know this butterfly who come everyday on our  small terrace garden. Along with 11-12 more other butterflies. 


She is one of the most beautiful and Delicate fighter who knows, how to keep flying...✨🖤💜💛✨☘️🌼☘️🌼🌼☘️💚🌷🌺🥀🌷❇️☘️🌼🍀

रविवार, 15 नवंबर 2020

राग रंग

 रंगों की खुशबुओं को, जी भर के पीते रहना

आंखे बंद कर के,

खुशबुओं में

 रंगों को टटोलना

पानी में घोल के पानी सा होना

उस रंगे पानी को फ़िर,

पानी से ही धो देना

जाने कैसे सीख लिया मैंने;

ख़ुद को रंग रंग के 

फ़िर ख़ाली कर लेना

हर रंग के राग में रंग के

फ़िर पानी कर लेना।


@saumya_wafa0©

असबाब

 मखमली ख़्वाब

सुरमई जज़्बात

पंख महताब

दो लबों पे आब

और मेरे पल्लू के कोने से बंधा

एक टुकड़ा आफ़ताब

जीने को काफ़ी है मेरे

बस इतना सा असबाब।


@saumya_wafa0 ©

मद्धम मद्धम

 कितना अच्छा है

यूं मद्धम मद्धम जलते रहना

ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना

बिन कुछ कहे सुने

महफ़िल से उठ 

कहीं ख़ुद में,

भरे जामों को ख़ाली करना

किसी राह से गुज़रे तो उस राह को

सलामी करना

किसी मुड़ती गली के पते पर,

पर्चियां गुमनामी भरना

बादलों के पीछे छिटक रहे

धूप के सिक्कों से

मुट्ठियां जगमग रंगना

कभी मन की सुनना

कभी मन को सुना देना

सांसों का बातों से

मौन धरना

ज़रा सी आहट पे यूं ही

पिघलते रहना

आहिस्ता आहिस्ता

ख़्वाहिशों की तमन्ना से

दूर होते रहना

रंग बनके रोशनी में

चूर होते रहना

मीलों टिमटिमाते तारे को

सीने में रख 

नूर कर लेना

कितना अच्छा है यूं

मद्धम मद्धम रोशनी में जलते रहना

ठंडी रेतों पे, थम थम के चलते रहना।


सौम्या वफ़ा।©

बुधवार, 11 नवंबर 2020

बोलती हैं खिड़कियां

 दीवारों के कान होते हैं

मगर बोलती हैं खिड़कियां

कभी खोल के तो देखो

क्या बोलती हैं खिड़कियां

पर्दों के घूंघट में छिपी

जाने क्या क्या सोचती हैं खिड़कियां

चटकी सिटकनियों और पड़ी झुर्रियों

को शायद छिपाती हैं खिड़कियां

देखती हूं तो

आंखों में छप जाती हैं खिड़कियां

सलाख़ों के पीछे, जाले- जालियों के पीछे

सांस लेती,

फड़फड़ाती खिड़कियां

दिल में कोई खड़का सा खड़काती खिड़कियां

दीवारों के सीने को चीर

मुझे;

मैं, मैं हूं

ये बताती खिड़कियां

दीवारों के कानों पे

पहरेदारी करती ये खिड़कियां

दीवारें तो ख़ामोश हैं

कि दीवारों के कान होते हैं

मगर बोलती हैं खिड़कियां।


सौम्या वफ़ा।©


मासूम

 मासूम वो है, जो अनछुआ है

और अनछुआ वो है

जिसे दुनिया ने नहीं

भोले से सपनों ने छुया है

भोले हैं सिर्फ़ वो सपने,

जिनमें बस प्यार है या दुआ है

इसलिए मासूम सिर्फ़ माँ है

और भोला बस उस बच्चे का जहां है

बचपन में मां ने जिसे थपकी देकर

सुलाया है

उस बच्चे को बस सोई दुनिया में

जगाना है

कंक्रीटों के कांटे नहीं,

मिट्टी में दुलार उगाना है

मासूम हथेलियों में फ़िर कोई

तितली का पंख सजाना है

नंगे पांव को ओस की बूंदे पहनाना है

एक डुबकी बचपन की लगा के

फ़िर से अनछुआ हो जाना है

एक मुस्कान में मां

एक खिलखिलाहट में बच्चा हो जाना है।


सौम्या वफ़ा।©

मेरी नींद

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता

ना इश्क़ का मुआमला है

ना ही कोई ख़ता वता

बस जाने कहां निकल जाती है

रोज़ रात को बांधे बस्ता

कहती है रात में ही तो

मिलती है,

 दो गिलास ठंडी सांसें

 और साथ में मिलता है सुकून

 चांद की टपरी पे;

 इत्मीनान की तश्तरियों में

 चार आने सस्ता,

 दिन को दुनिया में क्या ही दौड़ लगाएं

 जमहैयां छिपाएं

 ऊंघ लगाएं झपकियों में:

 दुनिया ठहरी ताश की बाज़ी

 और हम जोकर पत्ता

 नींद सोती है चांद तले

 और हम नींद का ताकते हैं रस्ता,

 नींद ख़ुद ही उतर आती है

 देख हमारी हालत खस्ता

 हां मगर नींद के उस हसीं चेहरे से,

 मुलाक़ात नहीं हो पाती

 हम आंखें खोलते हैं

 वो सवेरे सवेरे ही निकल जाती है

 कौन है वो नींद 

 और कैसा है उसका हसीं चेहरा

 एक यही बाकी है;

 रिश्ता सच्चा अलबत्ता

 कहने को मेरी ही पलकों में आती है

 पर कोई डाक नहीं लाती है

 उसने दरवाज़े से हटा दिया है

 किसी भी नाम का पट्टा

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता

 मेरी नींद का नहीं है कोई अता पता।


सौम्या वफ़ा।©

 

 

सोमवार, 9 नवंबर 2020

हरि को प्यारी

 पिया की प्रीत को नजरिया लागी 

झर झर  सूखे सब पात हरियाले  

ना सावन आये ना आये लाली

दुल्हन जग की हुयी  

हरि को प्यारी 

राग छूटा , अनुराग टूटा 

 छूटा मोह,  जग रूठा 

लागा  रंग राग जोग; 

कौन जाने सुख कैसा 

 तन- मन साजा पोर- पोर 

हरी के रंग जो मन राचा 

ना भाये  सिंगार, 

ना काम आये सिंधौरा 

जिस माथे सजे हरि की लौ 

उस माथे को क्या ही  बिंदिया,

 क्या हो चांदी बिछुआ 

जो बांधे पग घुंघरू हरी सौं  

साजे काहे  अंगिया संग 

लाली चुंदरिया 

जो रमी राख कारी 

गोरी देह पे जोगन की 

सिंदूर बन सूरज सौ

काहे उतारे, पारे, सँवारे 

गोरी गोरिया 

नैनन पे काजर कजरारे 

जो समाये नैनों में हरी 

पार हो गए सब नीर -तीर तिहारे 

काहे मले जोगन, चन्दन 

जोगन जले पल पल 

बन अगर बाती 

सीत जिया को, 

माटी पे बरसते सावन की लागे

गोरी महके बन महि 

हरी को बदरिया सी भावे  

क्या  बरखा, बहार , 

क्या ही  भादो 

हर मौसम  

हरी संग बन हरी  

नाचे बन बन उपवन 

सतरंगी जोगन बावरी 

क्या कोई कथा भाँचे 

क्या कोई महूरत बतावे 

क्या ही कोई जग में 

गीत सुनाये 

आये जो धुन 

हरि की बंसी की 

सब रज, राज -ताज तज 

हरि के संग हरी की प्यारी 

मुख पर धूप सँवारे, 

सांवरे संग ऊंची टेर  लगाए 

गगन चढ़ जाए गुलाबी 

जग बनाये बातें निराली 

दुल्हन जग की,

हुयी हरी को प्यारी 

दुल्हन जग की हुयी,  

हरि को प्यारी। 




 सौम्या वफ़ा।  ©


शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

जियो और जीने दो

 आजकल,

बासी पड़े कोरे पन्नों पर

सीने से घुमड़ता हुआ

 रंगों का बादल फट जाता है

और रंग देता है सतरंगी हर पन्ना

एक एक रंग की रिस्ती बूंद

सीने में कोई बीज सा बोती है

जैसे बरसों से वहीं अटकी पड़ी थी

फूटने को तैयार

मगर जो अब आज जाके फूटी है

जिससे निकल रही हैं

हरी गहरी समाती जड़ें

और पीले अंकुर

ख़ाली पन्ने की

ज़मीं पर एक नया बाग़ बसाने को

जो कभी अपनी ही नासमझी में

कोरा रह गया था

पर अब जाके ख़िल उठा है

ये कह के कि जियो और जीने दो।


मैंने

 लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है

ज़माने ने जब तब धकेला है अंधेरों में

मैंने सीने पे पड़ गई दरारों से;

लौ की कोपलों को फोड़ा है

जलाया है बेखु़दी ने,

राख़ कर छोड़ा है

मैंने राख़ के ढेरों में खोया 

अपना,मिट्टी का दाना ढूंढा है

भीग भीग कर सींचा है सीना

फ़िर ख़ूब तपाया है

मैंने सूखे सेहराओं में

बवंडर की पीठ पे चढ़

बरसातों को आंखों से निचोड़ा है

लोगों ने तोड़ा है मुझे बार बार

मैंने हर बार ख़ुद को जोड़ा है।



सौम्या वफ़ा।








अपराजिता

 उसकी बात बात पे

कविता होती है

वो जीती है,

हंसती है;

हर बार मरती है

जीवित हो फिर फिर

जीवन के संग मचलती है

गिरती है, उछलती है,

संभलती है

उतरती है, चढ़ती है

जाने किस किस राह

मुड़ती है, चलती है

वो स्त्री है,

अंत से पहले नहीं रुकती है

सब मौसमों को झेलती, खेलती

वो सजती है, संवरती है

वो स्त्री सिर्फ़ स्त्री नहीं

वो अपराजिता होती है

उसकी मौन में

होती है कहानी

और बात बात पे कविता होती है

वो स्त्री है, वो कविता है

उसकी हर कहानी

अपराजिता होती है।


सौम्या वफ़ा।


शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

जाना क्या कभी तुमने जाना

 जाना क्या कभी तुमने जाना

क्यूं शुरू होती है कोई कहानी

और क्यूं ढल जाता है 

कोई अफ़साना

कैसे बन जाता है कोई शायर

और कैसे उभर आते हैं

किसी गज़ल के सीने पे 

काफ़िए काफ़िराना

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि क्यूं सुबहों की सूरत

मिलती है शामों से

क्यूं लगती हैं

आते हुए पंछियों की कतारें

वैसी की ही वैसी,

जाते हुए

हर बार कैसे पिघल कर

गुम हो जाता है सूरज

मगर जाने से पहले

हर रंग दे जाता है

जवां होती शामों को

अपने जादुई पिटारे से

जाना क्या कभी तुमने जाना

कैसे शाम की उमर इतनी छोटी

मगर दिलकश़ होती है

जैसे दो दिलों में

पहली मुहब्बत होती है

थोड़ी देर को ही सही

एक आसमां में चांद सूरज

साथ साथ जल रहे होते हैं

एक के गुज़र जाने से पहले

इसी शाम के छोटे से शामियाने में

और दूसरा जलता रहता है

मुहब्बत के दाग़ लिए

जिनसे फूटती है फ़िर

उसकी अपनी ही रोशनी 

अंधेरों में उजाले किए

और आहिस्ते से बदल जाता है

जवां शामों का क़िस्सा

नीली स्याही में ढली

चुपचाप दमकती

बूढ़ी हो चली रातों में

जैसे रात ने जान लिया हो राज़ ये

कि ख़ुशी है बेइंतेहा गहरी

जब किसी से किसी ख़ुशी की

कोई ख़्वाहिश़ ना रह जाए

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि कैसे रात 

अपने सारे ज़ेवर उतारकर

दे देती है सुबहो को

क्यूंकि हर नई सुबह आती है

एक कोरा पन्ना लेकर

जिसे रात जगह देती है

ख़ुद को खो कर

अपने भरम के सारे ज़ेवर

पीछे छोड़ कर

स्याह से फ़िर सफ़ेद हो सकती है

सुबह के पन्नों पर

एक नई दास्तां लिख कर

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि कु़दरत के सबसे नायाब रिश्ते

जानते हैं एक दूसरे के लिए होना

वो जानते हैं एक दूसरे को उनकी

मकबूल जगह देना

और ख़ुद दिए वक़्त में

जी भर के जी लेना

लेकिन तुम चाहते थे

मुझसे सब कुछ ले लेना

और बदले में

जीने को जितनी जगह

और वक़्त ज़रूरी है 

वो भी ना देना

तुम्हारा आना उस हसीं शाम की तरह

बेहद दिलकश़ और ज़रूरी था

मगर उससे भी ज़रूरी था

तुम्हारा चले जाना

उस वक़्त का गुज़र जाना

ताकि, मैं रात बन सकूं

और अपनी, कहानी लिख सकूं

आख़िरी करवटों से 

भोर की दस्तक पर

जाना क्या कभी तुमने जाना

जो ना जाना तो क्या ही जाना

पर जो जाना तो इस गुजरते ज़माने से

गुज़र जाने से पहले

ख़ुद को ज़रूर बताना और मुस्कुराना।


सौम्या वफ़ा।©


बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

अपना पता

 भीड़ में खोए मन को, 

जब अपना पता मिल जाता है 

यूँ समझ लो,

 बस उस घडी 

पत्थर में,

 ख़ुदा मिल जाता है 

सुबहो का रंग,

शामों पे 

खिल  जाता है 

एक ही फ़लक  पे 

चाँद और सूरज 

जगमगाता है 

रातें भटकती नहीं,

 फिर कभी तनहा 

तारों का पूरा 

काफ़िला साथ आता है 

दिशाओं का 

 होता नहीं, कोई भरम;

वक़्त,खुद ही रास्ता दिखाता है 

भीड़ में खोये मन को 

जब अपना पता मिल जाता है 

यूँ समझ लो बस उस घडी; 

पत्थर में खुदा मिल जाता है। 


- सौम्या वफ़ा। ©

पता

 कुछ कुछ मिल सा गया है

 जो खोया था पता, 

लापता ज़िन्दगी का 

फ़िर मिल रही है कोई 

दहलीज़ 

जिसपे खुलता है दरवाज़ा, 

अपने आँगन का 

मिल रहा है कोई, कोना 

अपनी खिड़की, 

अपने झरोखों का 

फ़िर मिल रहा है 

कोई बहाना 

बेघर को एक, 

घर होने का 

कच्ची टूटती; 

आसमां ताकती, नींदों का 

ज़मीं पे सुकूँ का, 

अपना एक बिछौना होने का 

आ गया है साँसों का तार, 

संदेसा लेके 

ख़ुदी के:

 ज़िंदा होने का 

दर बा दर  के 

अंदर ही 

अपना समंदर होने का 

बेमानी ख़्वाहिशों से ख़ाली, 

एक नयी फ़ज्र होने का 

दीन दुनिया के दस्तूरों 

के दरबार से दूर 

एक देहरी पे; 

अपना भी सर होने का,

हमपे ज़िन्दगी के असर होने का 

कुछ कुछ मिल सा गया है 

जो खोया था पता 

लापता ज़िन्दगी का।  

कुछ कुछ मिल सा गया है 

जो खोया था पता 

लापता ज़िन्दगी का।  



- सौम्या वफ़ा। ©


रविवार, 11 अक्टूबर 2020

मिलन

 पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया हों नील गगन

और मैं बरस जाऊं

बन घटा मेह

पिया संग बन कर्पूर

जले जिया, जले देह, जले दिया

मलूं आंखों में बना के अंजन

रात की काली कालिख

पारूं हथेलियों के बीच

सुरमई चांदनी

महके केवड़ा

बिखरे बेला

रंग एक लागे

दो तन पे, केसरिया

ना चूड़ी, पाज़ेब

ना चुंदरिया

बाजे बस सांसों की सारंगी

उतरे, लिपटे बस एक सी दो परछाई

लाज की माथे से बिंदिया

बाहों में भर उतारें पिया

मैं मल लूं गालों पे

गुलाबी भीनी अबीर

एक रंग नीला वो बन मीत साजें

एक रंग लाली बन

मैं हो जाऊं प्रीत

एक रंग मिलन का हो 

गहरी हरियाली

पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया हों नील गगन

और मैं बरस जाऊं

बन घटा मेह।


सौम्या वफ़ा।©


रात रात भर रात रानी जगे

 रात रात भर रात रानी जगे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

बेला, जूही को पलने पे सुलाके

चली रात रानी हवा पे बैठ

सजधज गोरी के गजरे पे

उतरने को पिया के सिरहाने

गेसू खोले गोरिया

पिया होए मदहोश

रात रानी का ऐसा जादू

सुभो तक ना आए

पिया को होश

सेज में पिस जाए रात रानी

पिस जाए जैसे चन्दन संग

महका पानी

धूप सेंक थकी पाती दिन भर सोए

रात ढले बन बावरी

रात रानी

बन ज्योत जले

महके रूप में

दहकती चांदनी सजे

चांद की सीत लागे

रात रानी की प्रीत जगे

पिया संग बावरी

सबा पे सेज डाले

खिले रात के गहरे

रहस्य के रस में

भर भर नैनों में

पी पी पुकारे

रात रात भर रात रानी जगे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

रात रात भर रात रानी जगे।


सौम्या वफ़ा।©°

औरत बनने की क़ीमत और प्रक्रिया

 तुम क्या गए, मानो 

मैं ही इस जहां से चली गई

मेरी स्याही में डूबी

हमारी खुशबुएं

तीखी तेज़ धूप में सब 

सूखकर उड़ गईं

मेरे जिस्म में कै़द कस्तूरी

जिसका पता सिर्फ़ तुमको मालूम था

उस पते पर अब तुम्हारे बिना

नहीं आती है कोई चंचल हिरनी

नहीं आती है चौखट पे कोई 

पाक  देवी

रातों में अप्सरा, 

दिन में कोई दोस्त या सहेली

तुम आए थे जब, तो वादा किया था

मेरे रंगीन पंखों से दुगने चढ़ा के रंग

भरोगे मेरे कोरे पन्नों पर 

नीला आसमान

वो आसमां जिसमें खुली आंखों से देखो तो

सात रंग होते हैं

और आंखे बंद कर के देखो 

तो

हम तुम होते हैं

तुमने उतार तो लिए मेरे ही पंखों से रंग हज़ार

मगर पन्नों पर पीछे मुड़ के देखने को

एक दाग़ भी ना छोड़े

पन्ने तो थे ही कोरे

अब पंख भी हैं निरा सफ़ेद

हां वही सफ़ेद जो मेरा सबसे प्रिय रंग है

अब उसी रंग की मैं भी हूं

 बिल्कुल सफ़ेद

यानी हर रंग का आदि, उद्गम हूं मैं

पहले गुलाबी थी, फ़िर तुमने हरा कर दिया

तुम्हारे रंगों ने नीला, तुमसे दूरी ने पीत

और तुम्हारे धोखे ने बिल्कुल सूखा भूरा

फ़िर भी क्या ही हुआ

सुबह हुई, रात हुई। 

हर दिन यूं ही हुआ

और फ़िर चढ़ गया धीरे धीरे मुझपे

सुबह का लाल, और रात का काला

बीच में सब झक सफेद

और कोई रंग चढ़ाओ तो

पन्नों से सब उड़ जाता है

जैसे तेज़ हवा से हैरान

टूटी शाख़ पे बैठा

उम्मीदों का ढेर

और पंखों से फिसल कर बिखर जाते हैं रंग

जैसे दो हथेलियों के बीच

फिसल जाती है

बिना नींव की रेत

यूं ना समझना ये सिर्फ़ शिक़ायत थी कोई

मुझे एक आख़िरी बार तुम्हारा शुक्रगुजा़र होना था

जो तुम आए तो नाज़ुक सी छुईमुई को तोड़ मरोड़

कोमल कलियों को पीछे छोड़

बना गए अनचाहे ही मज़बूत पेड़

पहले तुम्हारे आसमां के सपनों में उड़ती थी

इसलिए आ गई ज़मीं पर

और खाई हैं चोटें गहरी

मगर जहां ये चोटें थीं

वहीं से अब

जमीं हैं ज़मीं की कोख़ तक

मेरी जड़ें गहरी

एक लड़की जो कभी थी

वो अब ना ख़ुद को जानती है

ना पहचानती है

अब वो जीती है हर दम ख़ुद में

एक ही पल में

सृष्टि रचने वाली औरतें कई

तुम गए तो सचमुच साथ में

मेरा भोलापन, मेरा अल्हड़पना

मेरी नादानी चली गई

अम्मा जानती हैं

अब बिटिया सयानी हो गई

मगर किसी से कहती नहीं है

उन्हें ज़रूर ख़बर है

कैसे सयाना होने में

बचपन खोया

कैसे जवानी खो दी

कि औरत को औरत गढ़ने में

सांचा आज भी

मर्द का धोखा ही है

तुम क्या गए मानो मैं ही इस जहां से चली गई

अम्मा फ़िर भी जब तब अलापती हैं

बिटिया परजीवी पुरुषों की दुनिया में

अक्सर,

औरत बनने की क़ीमत और प्रक्रिया यही है।


सौम्या वफ़ा।©











शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

निंदिया

 रात ढले निंदिया उड़ जाए 

पलकों के टूटे पंख लगाए

कड़वी कड़वी आंखों में कच्ची कच्ची 

दुनिया चुभ जाए

निंदिया की राह तके बिन

थकी अंखियां मानें ना

उतर के निंदिया आए इस बार

तो अंखियों में नए सपने सजाएं

सपनों का मीठा जो फ़िर से लागे

पलकों का कड़वा मिट जाए

सूखे सूखे आंखों के सेहरा में

कोई बारिश दे जाए

टूटे पंखों पे फ़िर लगाऊं

गुलाबी गुलाली गुब्बारे

बरसे तपते चेहरे पे हों 

ठंडे भीगे बोसे से फ़व्वारे

एक टूटे जो कहीं दूर सितारा

मैं बांट लूं उसे रात से आधा आधा

दबी दबी सी हंसी मेरी

फ़िर से खुल के खिलखिलाए

पर्दे के पीछे लुका मन

झाँ कर के झट से बाहों में आ जाए

ये चाहूं रात रात भर

और जाने कब नींद आ जाए

टूटे फूटे पंखों से

माथा सहला जाए

खुल गई जो आंखें गर

तो जादू सा सब गायब

जानूं मैं वो थी अभी यहीं

 जो देखूं कि

सिरहाने छूटे छूटे से रंग दे जाए

तकिए पे साए के साथी

नीले गुलाबी से हो जाएं

और निंदिया फ़िर उड़ जाए

पलकों के टूटे पंख लगाए।


सौम्या वफ़ा।©

रविवार, 4 अक्टूबर 2020

छोटा सा है मन भौरा

 छोटा सा है मन भौरा 

 और दुनिया कितनी बड़ी 

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली 

खाली पेट से पुकार 

लगाती प्यास है चख ली 

हर क़िताब  के बीच है लगा के रखा 

अपनी निशानियों का बुकमार्क 

हर बूँद पे पानी से 

अपनी तस्वीर खींच ली 

छूटी थी कहानी जहाँ 

वहां नयी शुरुआत लिख ली 

जले जितना और उड़े उतना 

मन भौरे ने जलते जलते 

भाप से हवा में फुर्र हो 

घुल घुल 

बरस  जाने की 

जादू भरी 

तरक़ीब है सुन ली 

छोटे से मन भौरे ने 

जाने अनजाने 

सारी दुनिया है तक ली 

प्यासे मन ने  जाने कैसे 

समंदर पे ग्लूकोज़ एनर्जी 

 की छड़ी घुमा दी है 

ख़ारी  ख़ारी  सब लहरों पे 

मिश्री है मल दी 

झीने झीने पंखों से  

पीछे छूटे सब जूठन की 

ऊँगली चट रेसेपी गढ़ ली 

जो लिखी ना गयीं उन क़िताबों 

को जी के 

भौरे की सूझ बड़ी बढ़ गयी 

पहले सपनों को मैं पकाने की 

करती रहती थी दिन रात तैयारी 

अब सपनों ने मुझको 

मद्धम मद्धम पकाने की 

पक्की सारी  तैयारी है कर ली 

बड़े दिनों से थी अनबन 

अब जाके मुसाफ़िर ने 

टूटी फूटी सब राहों से 

 है यारी कर ली 

जितनी भी थीं तस्वीरें 

सब औरों की थीं 

औरों में से कितनी तो 

ग़ैरों की थीं 

ख़ुद  को खोज के मैंने 

ख़ुद  ही ख़ुद की तस्वीर  बदल ली 

बदली तस्वीर पे नई तकदीर गढ़ ली

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली । ...  



सौम्या वफ़ा। ©


सोमवार, 28 सितंबर 2020

अरमां

 उड़ते रहते हैं अरमां समन्दर पे

लहरों के पंख ले के

मंडराते हैं सर पे छत बने

जैसे चील कौवों के साए

मोह और माया के बीच

 बांधे झूला झूले है अरमां

मैं समझूं उसको नादां

वो समझे है मुझेको बच्चा

ना इस ठौर पैर टिकाए

ना उस ठौर पैर टिकाए

बस जिस पल्ले बैठे

उधर ही वज़न बढ़ाए

अरमानों के सर दोश चढ़ा

ये मूरख, खल, कामी हैं

जिनके नहीं हैं कोई अरमां

उनके सर भी ये आफ़त

ज़िन्दगी बन चढ़ जानी है

अरमानों के अरमां नहीं

ये भी तो एक अरमां ही है

अरमानों के हाथों हम कठपुतली 

वो खेल खिलौने खिलाए

 हम खाएं गच्चा

 अरमां ही हैं सुनहरे हल्के कहकहे

 अरमां ही हैं बोझ की गठरी

 कभी ऊंची उड़ान भरें अरमां

 कभी बन जाएं कंधों पे बोझा संसारी

 मन भागे इंसा का

 रोता हंसता अर्मानों के पीछे

 कभी पंख सिले चमकीले

 कभी पांव धोए पखारे

 जो चाहे कर ले बेचारा

 अरमानों के कानों में

 एक जूं ना रेंगे

 लंबे चौड़े पिलैन बना

 धक्कामुक्की में इंसा ख़ुद को झेले

चुपचाप कभी कभी शोर मचाएं

खींचे आगे कभी चक्कर घुमाएं

 ले ले ज़िन्दगी जब मज़ा

  सब पे पानी फेरे

 अरमानों का फ़िर भी क्या ही बिगड़े

 बस्ता उठाए चलदे सवेरे सवेरे

 ये ढीठ ऐसा है अपनी दर से

 ना बित्ता हिले ना पौने

 मन के अरमां सूरमे के शोरबा

 इनके आगे हम तुम हैं पिद्दी

 तेरी मेरी भूल के आगे

 अरमानों की भूल है बस इत्ती

 सब झूठ मूठ से ठगे हैं जग में

 और ये निकले भोले भंडारी

 सब छूटे थे पीछे जब

 तब संग ये हमारे हो लिए

 कितना भी टूटें बिखरें अरमां

 ख़ुद को हर बार ये जोड़ ले

 अरमां हैं ऐसे साहबज़ादे

  नाक है बड़ी ऊंची

 और कान हैं बड़े छोटे

 मन में धूनी रमाए

 जोगी सा अलख निरंजन बोले

 सिर्फ़ अपनी सुनें ये अरमां

 और किसी की ना बूझें 

उड़ते रहते हैं अरमां समदर पे

लहरों के पंख ले के।

 सौम्या वफ़ा।©

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुसाफ़िर

 मुसाफ़िर हो या राहें दोनों को बस 

गुज़रते चले जाने की

ख़्वाहिश नौशाद है

कि भटकते रहने में पुर सूकूं ए एहसास है

मंज़िल से ख़ूबसूरत हैं मुसाफ़िर को राहें

मुसाफ़िर से ना पूछ कि

ठहर जाने का क्या इंतज़ाम है

ख़्वाबों में ही महज़ ठहरते हैं राही

मंज़िल राहों का आख़िरी इत्मेनान है

ठहरा पानी क्या ही जाने

बहते चले जाना कैसी प्यास है

बस गुजरते चले जाने की ख़्वाहिश नौशाद है।

सौम्या वफ़ा।©





शहर

 जितना शहर मुझे बुलाता है

उतना गांव मुझमें बस जाता है

ये शहर मुझे अपनी गलियों में

सूने गांव दिखाता है

उधर नदियों के बहते हैं आंसू

इधर समन्दर खारा हो जाता है

जितना भी मूंदूं मैं आंखें

उतना सुरमे सा चारचांद लगा टिमटिमाता है

मगर आंखों में ये अधूरा चांद बन

शहर जाने क्यूं किरकिराता है

सजा धजा लो चाहे जितना

मगर चेहरे को मेरे आईना दिखाता है

मैं क्या क्या हूं

क्या नहीं हूं

मुझको बताता है 

भागता दौड़ता शहर खूंटियों में पसीने से तर

गांव टांग जाता है

गांव की खुशबू पर सेंट चढ़ाए

 हर सुबह वही पसीना पहन निकल जाता है

 शहर बड़ा बातूनी है

 दिन रात कहता रहता सिर्फ़ अपनी

 मेरे अंदर का गांव उसकी हर बात पे बस

 मौन रह जाता है

 पगडंडियों को झुठलाते पांव को

 अपनी सड़कों की भूलभूलैया में नचाता है

 धुंध उड़ाते जहाज़ों के भड़कीले डैनों में

 पंछी शर्मीले छुपाता है

 कितना भी कह लो बुरा भला

 पुराने आशिक़ सा मगर शहर

 सर पे मंडराता है

 जिन भोले सपनों को सजाया था गांव ने

 शहर उन सपनों को पाव रोटी संग बीच में दबा

 चटनी संग

 बड़े चाव से हर सुबह खाता है

 ज़िद से अपनी लूट देस को

 हवा में परदेस घुमाता है

 सोजा सोजा मुसाफ़िर मेरे

 इक दिन घर जाएगा

 हर रात यही कह शहर

 ख़ामोशी को फुसलाकर रात भर

 शोर में सुलाता है

 हर रात कहीं किसी थपकी में

 कोई गांव सिसक जाता है

 सुबह आंखों को फ़िर नया चश्मा बेचने को

 रंग बिरंगे सपने दिखाता है

 जितना शहर मुझे बुलाता है

 उतना गांव मुझमें बस जाता है।


सौम्या वफ़ा।©

 

सोमवार, 21 सितंबर 2020

खु़दी

 रोशनी के तले

स्याह सी खिंची लकीर है कोई

कांच के उस दोहरे बदन के पार

अपना ही हमसाया है कहीं

बोतल में बंद जिन्न सी है खु़दी 

मुझे ढूंढ के लानी है 

खु़दी में वो फूंक तिलस्मी

तकदीरों से परे

सितारों से बढ़ानी है पहचानें और भी

एक पर्दा है धूप का

इक दीवार है पानी की

जिसके उस पार अब भी बाकी है ख़्वाहिश

ख़ुद को आज़माने की।

रहें या ना रहें निशां

एक बार ज़िन्दगी को 

छू के गुज़र जाने की।


सौम्या वफ़ा।©

रोशनी

 जग में खोये अपने 

अंधियारे साये को 

अब मैं रोशनी नयी दिखाऊं 

बीज उजियारे का आज मैं 

माटी की कोख में उगाऊं  

उपजे हरियाली काया 

उपजे मन हरियाला 

फूटे कोमल किरणें नयी 

बरसे सीने से झर झर आंसू 

 बन अमृत दुधियारा 

आज हरियाले पे बन मैं 

फूल बसंती खिल जाऊं  

जग में खोये अपने अंधियारे साये को 

अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं 

आसमान तक फैलें  मेरी हथेलियां  

पावों में गहरी जड़ें जमाऊँ

हाथों में ले समय की नोंक 

 सूरज का मैं कातू चरखा  

लाली पर गुलाबी बन छाऊँ  

मैं नाचूं, धरती झूमें 

संग सारंगी गगन के 

ताल दे बदरिया 

मैं ही बरसूं जी भर भर 

मैं ही तर तर जाऊं

मैं ही जलूं अपनी भसम में 

मैं ही ख़ुद में रम रम जाऊं 

इस पार की छोड़ के बातें 

अपने कंधे चढ़ाये 

अपनी कश्ती 

लहरों में लहराऊँ  

मैं तैरूं, मैं उड़ूँ

मैं उस पार उतर जाऊं 

धूल धूल मटियारे में 

जुगनू बन जगमगाऊं 

मैं ही बरसूं जी भर भर 

मैं ही तर तर जाऊं  

जग में खोये अपने अंधियारे साये को 

अब मैं नयी रोशनी दिखाऊं। 


सौम्या वफ़ा।©


सोमवार, 14 सितंबर 2020

कभी कभी

 कभी कभी कितना लगता है

कि ज़ेहन में कहीं

कुछ अटका सा है

कितना भी ढूंढो 

अक्सर मिलता नहीं

ख़ुद से छिपा बैठा

तहों का फांस है

और बैठ जाओ ज्यों ही

ख़ाली चुपचाप

ख़ुद ही निकल कर आ जाता है बाहर

मानो आंख मिचौली में

चोर के पकड़ जाने पर

ख़ुशी मनाता कोई बच्चा तैयार है

और बस झटके से कब आ जाता है 

आंखों के सामने

मन में छिपा बैठा कंकड़

साथ में कलकल कर बहती लहरों के

कि मालूम ही नहीं चलता

कि वो जो कब से अटका सा था

वो कब का धुल कर बह गया है।


सौम्या वफ़ा।©

दिन भर जहां रात को घर चाहिए

 दिन भर जहां रात को घर चाहिए

इस छोटे से जी को जाने क्या क्या चाहिए

मुठ्ठी में सिमटा है समन्दर सारा

मगर लहरों से करवटें नहीं

मीठे सुखन चाहिए

मानो अनहोनी से कोई होनी चाहिए

थक गए हैं क़दम

मगर ख़तम ना हो 

ऐसा कोई सफ़र चाहिए

इस छोटे से जी को जाने क्या क्या चाहिए

डाले है डेरा दर बा दर

कभी ख़ामोश, कभी बवंडर

बेघर मुसाफ़िर को

राह भर में दर चाहिए

दिन भर जहां

रात को घर चाहिए;

जहां भर का मुझ पर 

तारी रहा है असर

अब आया है वो मक़ाम

जहां मुझे अब 

पता एक बेखबर चाहिए

जहां भर से जुदा

उम्र एक बेअसर चाहिए

बुलंद हो मेरी राह की वो इब्तेदा

जहां दिल को सुकूं ओ ज़फ़र चाहिए

दिन भर जहां रात को घर चाहिए

इस छोटे से जी को जाने क्या क्या चाहिए।

दिन भर जहां रात को घर चाहिए।


सौम्या वफ़ा।©


शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

वफ़ा

 तेरे मेरे बीच दायरा

दुनिया के दस्तूरों का है

ये फा़सला मीलों का नहीं

चंद फ़ैसलों का है

वफ़ा की क़ीमत 

हर बार अदा नहीं होती मुहब्बत से

ये बेवफ़ाई नारसाई की फ़ितरत सा है

जो है आज यहीं है

कल के अरमानों की जेबों में

सिक्का सिर्फ़ कसूरों का है

आज है तो जी लो

कल को रिश्ता सिर्फ़

तोहमतों का है

ना हम दिल लगाएं

ना तुम करो दिल्लगी

ज़िन्दगी की क़ैद में

चंद घड़ी को जीना

मोहलतों सा है

दो सांस में बांट लो उम्र आधी आधी

कि मुहब्बत से ख़ाली दुनिया

 ढूंडती है मशगूली में मुहब्बत

मुहब्बत काम बड़ी फु़रसतों का है।


सौम्या वफ़ा।©


गुरुवार, 20 अगस्त 2020

बदलते मौसम

 हमेशा शिकायतें ही रही हैं बदलते मौसमों से 

या  दो घड़ी  को ठहर कर कभी हाल लिया है 

 मौसमों की आरज़ू का 

बिना बासी  सी ख़बरों पे 

नजऱें  डाले हुए 

जिया है साथ कभी मौसमों की चाहत के 

अपनी हसरतों का साथ 

मौसम के हाथों में डाले हुए 

आयी है क्या तुम्हारे भी आँगन में कभी बरसात 

बिना छतरी की परवाह किये 

बेपरवाह फुहारें बरसाते हुए

खींची है कांच पे उँगलियों से कोई तस्वीर 

बिना वो नाम बताये हुए 

साथ में जिसके भरी हों 

चाय की चुस्कियां 

आँखों के कोनों से शर्माते हुए 

कभी ठण्ड में बितायी है रात गरम सी 

बिना ऊनी दुशालों के

काटी है कोई रात ठण्ड से अकड़ती गलियों में 

बिना सिगरेट पिए ही 

धुएं के छल्ले उड़ाते हुए 

तपती गर्मी का इंतज़ार किया है कभी 

उन हाथों के लिए,

जो बनाते हैं ठन्डे 

 खस - ग़ुलाब  के शरबत 

वो आते हैं तो साथ लाते हैं 

अपनी भीनी भीनी खुशबु 

बिना खुद को 

सेंट की बोतलों  में छुपाये हुए  

जिनके ज़रा नज़र हटाने पे 

साँसों में उतार लेते हैं 

उन्हीं की खुशबु 

उनके दुपट्टों या रूमालों से

और वो देखें तो कह दें 

कुछ नहीं,

बस बात कर रहे थे ख़्यालों  से ! 

बहारों में देखें हैं सिर्फ़ 

घर से बाहर ही गुलिस्तां 

या देखे हैं वो गजरे 

जो मुरझा गए हैं रखे रखे फ्रिज में 

किसी के भूल जाने से 

और बढ़ाया हो अपना हाथ

 किसी अपने को 

उसकी अपनी ही भूली खुशबु 

तरोताज़ा लौटाने में

और आयी हों जब तेज़ आंधियां 

तो समेट  लिया हो किसी को अपनी बाहों में 

 नशेमन की नींव बनाते हुए  

हमेशा शिकायतें ही रही हैं बदलते मौसमों से 

या  दो घड़ी  को ठहर कर कभी हाल लिया है 

 मौसमों की आरज़ू का 

बिना बासी  सी ख़बरों पे 

नजऱें  डाले हुए?!!.... 


सौम्या वफ़ा। © 


  

अब्र

 प्यासे हमेशा ही भटके रहे हो

या फिर पिया है कभी जी भरकर 

कहीं उड़ते चले जा रहे अब्रों को?

बिना किसी से कहे जलते रहे हो सदा 

अनकही बातों में; 

या फिर कभी सीपीयों की तरह समेटी हैं 

ठंडी बूँदें सुलग रहे पोरों में, 

और महसूस किया है बरसों से जलते ज़ख्मों का 

आहिस्ते आहिस्ते ठण्ड में डूबते जाना; 

और हर डुबकी के साथ 

नया बनके  उभरते आना, 

या फिर यूँ ही छोड़ दिया था 

ठण्ड में, 

ठिठुरते दिल को बिना अपनी 

हथेली की नरम गर्मी दिए; 

सीत भरे कोनों में ?

कभी जब बहुत उमस बढ़ गयी हो 

और लगा हो की अब दम घुटा की तब 

तो क्या खोली थी, 

कोई खिड़की बंद पड़े कमरों में 

या यूँ ही छोड़ दिया था मासूम जान को 

खोने के लिए; 

किसी और का होने में? 

या गले लगाया था उस दिन ख़ुद  को, 

ख़ुद  को पा लेने में! 

और उतरी थी बहार फिर से जब 

सूने पड़े आँगन में 

तो चमन को कह दिया था ख़ुदा हाफ़िज़, 

फिर मिलेंगे किसी और बहाने से 

या फिर बोये थे बीज मोगरे के; 

और साफ़ किये थे इंतज़ार में रखे प्याले, 

किसी नए अफ़सानानिग़ार  की दावत को 

प्यासे हमेशा ही भटके रहे हो

या फिर पिया है कभी जी भरकर 

कहीं उड़ते चले जा रहे अब्रों को?... 


सौम्या वफ़ा। ©


मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मन मलंगी

 मन मलंगी की धुन अतरंगी 

जहाँ जाए जहां में 

देखे ख़्वाब सतरंगी 

उड़े मन मतवाला बन 

क़ाग़ज़ पतंगी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर 

मन की माने राजा है 

मन  की ना माने फ़कीर 

मन है  मन का

जिधर ठहर जाए    

उधर ही रमा ले  धूनी 

जाने जग जोगिया 

जोगी जाने मन को रोगी 

किस ठौर मिले ठंडी छाँव 

किस ठौर जलेंगे धूप  में पाँव 

कभी तिनके के सहारे 

 बुझा ले प्यास 

कभी नदिया किनारे 

प्यास रह जाए प्यासी 

मन का  भेद मन ही जाने 

मन रांझा मन हीर

मन बावला बंजारा 

मन ही सूफ़ी  पीर 

कभी बाजे मन में  इकतारा 

कभी बाजे सारंगी 

कभी ख़ामोशी से  रुक जाए 

 मन तक आती सदा हमरंगी 

मीठा लागे जी को घर का बासी 

लागे फीका जगमग जग में 

घर का वासी 

दिसा  भूले 

भटके मारा मारा 

कभी बैठे डेहरिया पे 

बाट जोए बटोही 

ठोकर खा के मिलेगी 

राह राही 

भटक के मिलेगी मंज़िल 

जाना चाहे जिधर भी मन, 

चल देना 

थामे सूने हाथ में अपना ही हाथ 

ठहर गया जो साथ की चाह  में 

 बिछुरी उसकी  चदरिया सुनहली 

जो मन ने खोया जग में 

जो पाया जग में मन ने 

जग को देते जाना 

खाली हाथ आये थे 

खाली मन ना जाना 

ठाठ बाठ  की बांधे गठरी 

ढोता है काहे बोझ बेरंगी 

बोझा छोड़ राह में 

मंज़िल को दौड़ लगाना 

दिल में आग लगा के 

मन को पंख लगाना 

भूल के सब काज बेनामी 

सरसरा के उड़ जाना 

भूल के जगवा अनारी 

मन को मन का दाता  माने 

मनका मनका फेरे जाना 

जग के मोह में मूरख तू 

जागे ना सोये 

जगवा भरम की फेरी रंगीली 

जग बौराये तो होये सब मैला  

मन बौराये तो उजियाला 

होये बैरागी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर 

मन का मनका फेर तू 

मन को लेना जीत 

मन मलंगी की धुन अतरंगी 

जहाँ जाए जहां  में 

देखे ख़्वाब  सतरंगी 

मन की सुन लेना 

मन जो भी बोले 

मन ही जाने तेरी पीर। 


सौम्या वफ़ा। ©





 

हमनवा ही रक़ीब था

 मोहब्बत  तो हमारी थी 

उनका फ़रेब था 

वक़्त सारा 

वफ़ा सारी 

अर्थी को चढ़ा दहेज़ था 

इश्क़ हमारा हैरानी 

कारनामा उनका हैरतअंगेज़ था 

लम्हों को समझे साज़ थे हम 

उनका तो सब दांवपेंच था 

रंग उतर कर हो गया था 

पानी पानी 

खाली हाथ खड़ा रंगों को रोता 

रंगरेज़ था 

दांव पड़  गए थे उलटे सब 

बाज़ीगर के 

जादूगर की टोपी से 

जादू सारा छूमंतर था 

बहरूपिये के मंच पर गिरा पर्दा

छिपा खेल था जगजाहिर 

मगर आख़िर  था 

रांझे ने ही 

लूट लिया था  हीर को 

हमराही ही रहज़न 

हमनवा ही रक़ीब था 

मोहब्बत  तो हमारी थी 

उनका फ़रेब  था। 


सौम्या वफ़ा। ©




शनिवार, 15 अगस्त 2020

जिए अमन तेरे आँगन का !

 क्या हुआ था क्या क्या हुआ था 

के अमन के सीने को चाक दुश्मन ने किया था 

 उस रात जो सोयीं थीं चादरें खींचे 

 मुँह तक जाने कितनी  जानें 

भूल सारे ग़म भूल सारे बहाने 

आयी थी  सुबह लेके पैग़ाम 

जिसपे लिखे थे फ़साने 

पहली आज़ादी के 

 क़ुर्बान हुयी जिसपे 

जाने कितनी आग़ 

यहाँ से वहां तलक लाल आब 

बहते क़िस्सों से लबालब लाल 

पलटी सूरतों से पटी चेनाब 

तिरंगे पे बरसी थी पिचकारी लहू की 

नाम लिखने को आज़ादी के,

आज़ादी ये तेरी, आज़ादी ये मेरी 

 विरासत तेरी है,अमानत है मेरी   

इस आज़ादी पे नाम लिखे हैं 

 ढेरों शहादत के, गुमनामी के 

जलते रहें  शान से चिराग़ इसके  

कीमतें चुकाई थीं पीढ़ियों को 

पहले  पहले पर फड़फड़ाने को जाने 

कितनी बुझ चलीं उड़ानों ने 

दिलो जान से खिले 

दुनिया के चेहरे पे लेके अमन 

गुलिस्तां बनके मेरा आज़ाद वतन 

देके संदेसा गुज़र  गयी 

लहर वो उबलते एहसासों की 

आज़ाद हो तुम आज़ाद ही रहो 

ऊंची रहे सदा तेरी आज़ादी की 

नस नस दौड़ती रहे  साथ इसके  

चाहे कितने ही हों  गिले शिकवे 

चाहे कितने ही हों एक दूजे से 

हम जुदा 

धड़कन दौड़ लगाती रहे 

नाम से तेरे  

जो लहराए आसमान पे सरमौर सा 

तिरंगा 

खून तेरा ख़ून मेरा 

सांस तेरी सांस मेरी 

एक ही रंग है 

एक ही है सबा  

जियूं जब तलक मैं 

जिए तुझसे मेरी वफ़ा 

ये मुल्क है मोहोब्बत और अमन का 

जीती रहे  तेरी मोहोब्बत मुझसे 

जीता  रहे अमन तेरे आँगन का 

जीती  रहे तेरे सदके में हर दुआ  

जीते दिलों का दिलों से मेल 

जीते क़ुर्बान इस्पे हर रूह का चैन 

जिए तेरी मोहोब्बत मुझसे 

जिए अमन तेरे आँगन का 

के जियूं जब तलक 

 जाने जहाँ इस  

 बेगाने को तेरे नाम से 

के जाऊं जहाँ से जब 

तो गाये ज़माना तुझपे लिखे 

मेरे तराने

के खुशबाग़ खिले खिलता रहे 

महके तेरी गोद में 

फूलों सा हर चेहरा 

मिटटी से इसकी लहराता रहे 

बोये हर बीज का दाना 

शाद  रहे आबाद रहे 

वतन मेरे तेरा आबदाना 

जिए तेरी मोहोब्बत मुझसे 

जिए अमन तेरे आँगन का

क़ायम रहे जहाँ में तेरी सदा 

ऊंची है उड़ान ऊंची रहे तेरी 

रोशन है रोशन रहे 

लौ तेरी आज़ादी की 

रोशन है रोशन रहे 

लौ  तेरी आज़ादी की

 जिए तेरी मोहोब्बत मुझसे 

जिए अमन तेरे आँगन का

सर उठाये ना उठे अब दुश्मन का 

अमन के पैग़ामों पे नाम लिखा हो मेरे वतन का !

जिए तेरी मोहोब्बत मुझसे 

जिए अमन तेरे आँगन का !


(मेरे दिलो जान, मेरी रूह मेरे वतन को मेरी अदनी सी भेंट तेरी आज़ादी रहे क़ायम , तुझपे रहूं मैं क़ुर्बान, तेरे नाम रहे हमेशा मेरी वफ़ा !।)
सौम्या वफ़ा। ©

मंगलवार, 11 अगस्त 2020

रेशमी ख़्वाब

 तुमने कै़द किया है

 ख़्वाबों को इन आंखों में

या क़ैद हो तुम ही कहीं

जहां भर के ख़्वाबों में

आंखों से पूछो ये किन्हें सम्हालती हैं,

टकटकी लगाए रातों में?

ज़ेहन में झांको ये क्या ढूंढता है,

बेतुक बुदबुदाती बातों में?

काते हैं तागे ख़्वाब के

सहेजे हैं परतों में किमख़ाबों के

या उलझे उलझे हैं हम ही

रेशम के धागों में?

पर आ गए हैं वक़्त पे

उड़ने को;

या उड़ रहे हैं ख़्वाबों में?

तुमने कै़द किया है

 ख़्वाबों को इन आंखों में

या क़ैद हो तुम ही कहीं

जहां भर के ख़्वाबों में!



सौम्या वफ़ा।©


सोमवार, 10 अगस्त 2020

मोहे ऐसे सतायो श्याम

 मोहे ऐसे सतायो श्याम 

रूठा गली गलियार 

मोसे छूटे चहुँ  धाम 

मोहे ऐसे सतायो श्याम 

छुट गयो पनघट डगरिया 

छोटे मोसे मथुरा का आँगन 

छुट गयो नगरी 

मोसे टुट गयो मोरी गगरिया 

छूटे साज 

छूटो रंग राग

लागो बैरागी अनुराग  

सुर साजे जोग मोहे 

मोहे भाये न शाम बिन जमुना के तीरे 

तंग करत उछलत गिरत प्रेम तरंग 

 प्रेम बैरी का है बैर मोसे 

छूटे जो शाम मोरे 

बरसी  बरखा उमड़ी जमुना 

बह गयी मोरी अखियन से मेहंदी

बह गयी लाली मतवाली 

 बही संग संग चितवन 

बह गयो लाज संग 

चुनरी लहरिया 

जो ऐसे सतायो श्याम 

छोड़ गयो बिरहन को जान अनजान 

आयो ना शाम से फिर 

घर लौट के फागुन 

पलट गयो  मोरी डेहरी से ऋतुयन  

ना लागे हल्दी बसंती 

बिखर गयो  माथे की  बिंदिया 

बह गयो  संग शाम के 

शाम की सिन्दूरी गोधूलि 

कारी कारी डगरिया पे 

लुट गयी बैरन 

रतिया की निंदिया 

नैनन  में श्याम मलूँ 

तो झपकी सी लागे 

अंजन बेदर्दी मोहे चुभोये कंकरिया 

तज गयो उपवन को  सब सुख चैन 

उतरे ना डारी  रंग बसंती 

लागे ना अंग केसरिया 

तन मोरा चन्दन 

मन की पीर को लिपटे भुजंग 

लागे तीखी तीर सी बंसी 

आग लगाए कूक 

जियरा जलाये पपीहरा 

रोम रोम में चिटके बीज  

खिले कलियन हरी हरी 

मन हरियाला जग उजियारा 

तन हरा हरा रोगन रमा 

 जोगन भयो मन 

ले नाम हरि हरि 

दुल्हन शाम की जोगन बनी 

डोली छोड़ जग छोड़ चली 

कौन सी ये अगन लगी 

जो जली घड़ी घड़ी  

फिर भी ना डरी 

जोगन का जोग चमका ऐसा 

लागे जोगनिया  खरी खरी 

कौन सो लागे अब निर्गुण को हाथ 

कौन दिसा अब ले जाए कहार 

कौन सो सजावे गाम 

मोहे ऐसे सतायो श्याम   

मोहे ऐसे सतायो श्याम 

रूठा गली गलियार 

मोसे छूटे चहुँ  धाम 

मोहे ऐसे सतायो श्याम। 




सौम्या वफ़ा। ©

शनिवार, 8 अगस्त 2020

बादलों के बीच

 टटोलता है रोज़ मन 

 बादलों के बीच अपनी जगह

कुछ लाली, कुछ धूप, कुछ ठंडी छैयां

कुछ फा़हे जैसे उड़ते ख़्वाब

कुछ रेश़म ख़्याल

कुछ पर्दा डाले गर्मी पर

गरज बिगड़ कर बरस जाना

 कुछ ढलती शाम में

छनती रोशनी के तारों पे

अपनी उड़ानों को 

 पंखों से सी लेना

रात ढले चांद जले को 

हौले हौले से सहला के

मलहम लगाना सीख़ लेना

एक नई सुबह को फ़िर पर्दा सरका के

पौ फटने के इंतज़ार में

पड़े पड़े एक झपकी और लगा लेना

पहली आती किरणों को रस्ता दे

अलसाई नींद भगा लेना

टंगे टंगे यूं ही आसमां पे

कुछ अपने उखड़े पाओं 

एक बार फ़िर से जमा लेना।


@सौम्या वफ़ा।०©





औंधी बारिश

 औंधे औंधे मुंह चली आई बारिश

जैसे भूल गई हो रस्ता

धूप अभी तक सिमटी नहीं

ना बादलों का उमड़ा दस्ता

दो बूंदे कहां से जाने

आ कर दे गईं माथे पर

बरसों भूला कोई बोसा

यूं लगा कि अपना ही अक्स है

मगर काश कि अपना होता।


@सौम्या वफ़ा।०©

मन दर्पण

 सबसे सुंदर है बिना कहे 

मन के आंगन में

प्रेम दरपन देख लेना

सबसे मधुर है बिना सुने ही

मौन पड़े सुरों की धुन सुन लेना

सबसे प्रेममय है बिना स्पर्श के ही

आलिंगन में समेट लेना

सबसे मीठा है मन में कड़वा घोले जो 

उसे वहीं रोक लेना

सबसे सुगंधित है

मुरझाए मन में जीवन अमृत बो लेना

मन दर्पण में देखोगे जब भी

सुंदरता की मूरत

दिखेगी अपनी ही 

धुली हुई नई नवेली

भोली सूरत

मन अपना, सूरत अपनी

मन की मूरत में बसती सीरत अपनी

अपनी ही है , अपनी जान के

जब जी चाहे देख लेना

सबसे सुंदर है बिना कहे

मन के आंगन में

प्रेम दर्पण देख लेना।


@सौम्या वफ़ा।०©


शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

सोहबत

 दो हाथ हों वो

घुलती चाशनी की सोहबत

लब हों दो खिले गुलों के शर्बत

घुल जाएं तो रंग गुलाबी हो

और स्वाद हो पानी सी मुहब्बत।


सौम्या वफ़ा।©


बुधवार, 5 अगस्त 2020

बहते बादल

बादलों संग थोड़ा मैं भी बह जाती हूं
थोड़ी सी हवा की ढील हो 
तो पतंग बन लहराती हूं
एक छत है बिना दीवारों
बिना छज्जों की
उसपर चढ़ बैठूं तो फ़िर
जाने क्या क्या बतियाती हूं
ज़मीं पे छोड़ के पाओं को
मुट्ठी में आसमां भर लाती हूं
गरम गरम छनते सूरज के गोले
और चांद का बताशा झोले में भर लाती हूं
पेट थोड़ा ख़ाली सा हो
या जेब सूनी सूनी
पर चंद हवा के खनकते सिक्कों से मैं
पसेरी  भर मन भर लाती हूं
सुबह के भूले दिल को
शामों से बहलाती हूं
बादलों संग थोड़ा मैं भी बह जाती हूं। 



सौम्या वफ़ा।© (२०/६/२०२०).

सोमवार, 20 जुलाई 2020

मनचली

मनचली के साथ साथ
अब उसकी कवितायेँ भी बढ़ चली हैं
ज़िद्दी अलबेली सी मनचली
जो खुद की ही सुनती
अपनी ही धुन में गुम नाचती कूदती
उसकी धुनों से 
आड़ी तिरछी  निकलती कवितायेँ
अब बहता मधुर संगीत बन चली थी 
कड़वी कड़वी सी बातें उगलने वाली
शहद सी घुलने लगी थी 
पहले  कहती थी की मैं लिखती हूँ
पर अब कहती है कि
खुद ही सब लिख जाता है
मैं कुछ नहीं लिखती !

मनचली अब सयानी हो चली थी
जानते सब थे उसे
मगर अनजानी हो चली थी
पहचानते सब थे उसे
मगर बेगानी हो चली थी

दुनियादारी के दस्तूरों से नावाक़िफ़ 
वो  खुद में एक दुनिया हो चली थी 

पहले पन्ने भरने को तरह तरह की
डायरियां भरा करती थी

अब हर पल जी भर कर
जीने में  इतना मशगूल है
कि खुद ही किताब हो चली है

रंगों को अब वो नहीं सजाती
रंग उस पर सजते हैं

बातें वो नहीं बनाती
अलफ़ाज़ उस पर फ़बते  हैं

स्याही से कुछ नया नहीं उड़ेलती
अब जिधर भी देखती है उधर
पलकों से ही लिखती है

ज़िद्द अब भी है
पर अब किसी और से नहीं

खुद की ज़िद से खुद रोज़
हारती खुद रोज़ जीतती है

वो कोई और ही थी
जो छुप छुप के रोती थी
ये तो बस बेवजह ही
कोई राज़ मन में दबाये सा
हर पल ही हंसती है

पहले ख़्वाबों में जीती थी
अब सोते हुए भी
दिल खोल के खिलखिलाती  है

वो जानती है शायद
वो ख़्वाब  सारे
हर रोज़ ,अब उसे जीते हैं

जिन्हें कभी
वो सपने कहकर पुकारती थी

उड़ने का सपना लिए मनचली
सपनों और ख़्वाबों से कहीं बहुत दूर

बहुत आगे आकर 
हवा में खुशबु सी घुल गयी है
क्या पता !
गुम हो गयी है ,कि
मिल गयी है !

मनचली अब ना छोटी बच्ची है
ना कोई खोयी हुयी सी लड़की
ना ही वो कोई भरी पूरी सी स्त्री ही है

मनचली ने लिखा आखिरी बार
पन्ने पर एक हर्फ़ 'कविता'
और फिर बंद कर दिया उसे
यूँ ही खुला छोड़ के

जीते जाने के लिए हमेशा

मनचली सबसे आगे निकल के
अब रूह हो चली है
और मनचली के साथ साथ
उसकी कवितायेँ भी बढ़ चली हैं।



सौम्या वफ़ा। ©

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

बोझ की गठरी गंगा बहा के
ताले में बंद कर सब दिखलावे

मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे

बस जो हूँ बस वो रह जाऊं

मैं तज के दुनियादारी सब
सीधी  सीध में बढ़ जाऊं
सीखी सिखाई रटी रटाई
भुला के सब
एक नया ज्ञान हो  जाऊं

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

बादलों के रेगिस्तान में
भाप सी खो जाऊं

क़तरा  क़तरा  जो ढूंढे कोई तो
क़तरा  भी ना मिले

जो  ढूंढे कोई जीवन तो
साँसों में समा जाऊं

मैं छोड़ के बाबुल की गली
ख़ुदी  को ख़ुदा  जानके
ख़ुद  को कहीं ढूंढूं बसाऊं

मैं तोड़ के सब नाते भरम के
सात आसमाँ  दूर उड़ जाऊं

तूफाँ जो आये राह में
मैं बवंडर बन लहराऊँ

कोई हो जो हाँथ ,
थामे जलती धूप में
तो पुरवैय्या बन माथे को सहलाऊँ

मैं थकूं भी तो ठहरूं ना
कभी झूमूँ , नाचूं, उडूं ,बलखाऊँ
कभी आहिस्ते आहिस्ते चलती जाऊं

मैं तोड़ के माटी की गगरिया
बूँद बूँद में  उतरूं
और तर जाऊं

मैं से मैं मिलके हम बन जाऊं

मैं पीछे छोड़ सब सिंगार पहनावे
बस जो हूँ , बस वो रह जाऊं।



सौम्या वफ़ा। ©

एक शांत शीतल सी लड़की

एक शांत शीतल सी लड़की  जो
 गीत लिखती है आज़ादी के

पन्नों पर उतारती है सपने सुलगते
हरी भरी आबादी के

 दहकते अंगारों के कुछ निशाँ
मिट जाते हैं जो बारी बारी
 उसके ठन्डे मीठे स्पर्श से

उसकी आँखों के दहकते दो खुर्शीद
उबल से पड़ते हैं स्याही बनके

एक एक  गरम सुलगते शब्द उसके
चमकते हैं पीले पन्नों पे तारे बनके


कभी ख़ुशी ख़ुशी सब समेट के
कभी मन मार के
सब बिखेर के

दुनिया से दूर एक नयी दुनिया बसाती है

जब जब वो गीत लिखती है आज़ादी के

हौले हौले ठंडी पुरवैया सी बहती लड़की
आग़  सी बरस जाती है काग़ज़ पे

जल जाता है काग़ज़ कुछ
कुछ निशाँ रह जाते हैं उसके हाथों पे

सुन्दर  बेदाग़ सी लड़की
दाग़ों के तमगे टाँगे सीने पे

रात की किताबों में  चमकती है
चाँदनी उड़ेले ,चाँद बनके
राह दिखाती है  धरती के
भूले बिसरों को

आसमान में उड़ती कहानी के

एक शांत शीतल सी लड़की
जो गीत लिखती है आज़ादी के।



सौम्या वफ़ा। ©

सोमवार, 13 जुलाई 2020

गीत - '' सांवरी घटा छायी ''

घनन घनन उमड़े बरसे मेघ
मेघ बरसे  ,बरसे मेघ
सांवरी  घटा छायी
पुरबइया छुमक छुमक चले
छम छम
पुरबैय्या छुमक छुमक चले छम छम
सरसर सरसर झर झर झर
संदेसा सावन का ले आयी
बरसी बूँद बूंदा बांदी
प्यासे जलत जिया को ठण्ड लायी
घुमड़े मेघ गगन पे घन घन घमक घमक घन घन घन घनन घनन घन घन  घन घन घननन घननन नननन नननन
घुमड़े मेघ गगन पे घन घन
प्यासी दौड़त गोरी अंगना आयी
छोड़ के बारहमासी बिरह
छोड़ के बारहमासी बिरह
गोरी  मन धुन सावन  रमाई
कूके कोयलिया  नीम डार पे
कूके कोयलिया नीम डार पे
गोरी पीयू पीयू सुर मिलाई
लगाए गोरी  माई से मनुहारें , मनुहारें
लगाए गोरी  माई से मनुहारें
सखी सखियाँ पुकारें 
देख देख गोरी मन
माई बाबा से जिद लगवाई
गोरी सखी संग अंगना में
अमवा पे  झूला डलवाई
पीपल छैयाँ बैठे सखियाँ
गोरी भर नैनन में साजन 
ऊंची  पेंग बढ़ाई
सखियाँ संग गाँवे कजरी
गोरी के मन बाजे मल्हार बधाई
गगन पर बरसे  रंग गुलाबी
गोरी तन छायी हरियाली
साजन सजनी सखी सहेली
नाचे रिमझिम रिमझिम रुमझुम रुमझुम
झूमक झूमक झूमक झुम झुम
गोरी पाँव थिरके ताल
जो ताल बरसाए बरखा मतवारी
छोड़ के सब बिरज के काज
छोड़  के सब बिरज के काज 
गोरी नाचे आज छमाछम  बिन लाज
उड़े चुनर बसंती
संग पुरवैय्या के
दे गोरी की ताल पे ताली
सूने माथे साजे सोलह बिंदिया
होठ पे चपला बन चमके लाली
बावरी जोगनिया आज हरि  पिया की , पिया की...
बावरी जोगणिया आज हरि पिया की
नाचे बन दुरहन मतवारी
हाँथ रचाये मेहंदी
सजाये सोलह सिँगारी
गोरी भीजे
भीजे हरि
भीजे तन मन
गोरी भीजे
 भीजे हरि
भीजे तन मन
भीजि हरि के रंग हरी अंगिया
भीजे गोरी के रंग हरि  हर हर
हर हर हरि रंगे गोरी रंग
सावन सारी  हरी हरी हरि रंग रसिया
गोरी को सावन में बहार लागी
गोरी  के जी को लागा  जियरा
गोरी  के जी को लागा  जियरा
नाचे पग पग बन बन
पग पग सर नवाये बृंदाबन
गोकुल पे बरखा छायी
हरि के जी में देखो जी
हरि के जी में देखो जी 
हरि के जी गोरी समायी
सांवरे संग सांवरी बरखा आयी
सांवरे संग सांवरी बरखा आयी
 घनन घनन उमड़े बरसे मेघ
मेघ बरसे 
साँवरी घटा छायी
घनन घनन उमड़े बरसे
घुमड़े मेघ गगन पे घन घन घमक घमक घन घन घन घनन घनन घन घन  घन घन घननन घननन नननन नननन
घुमड़े मेघ गगन पे घन घन
सांवरी  घटा छायी
घटा छायी
घटा छायी
सांवरी घटा छायी.... । .


गीत - सौम्या वफ़ा। ©

गीत - '' घटा बरसी ''



घनन घनन घटा बरसी
 बरसी घटा घनन घनन बरसी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी बरसी बरसी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी बरसी बरसी
घनन घनन भीगी मन भर
भीजि सब गली गलियार
भीजि अंगना में जमी फुलवार
नयना बरसे मेघ बन
बिजुरी बन हूक चमकी
कहे  सजनी  साजन को
संग साजन के पाऊं जितना
बन बनवारी को मन बावरी
भर भर गागर उतना तरसी
सजनी प्यासी बिरहन बन
प्यासी जनम जनम की
सागर बन डूबी
डूबी डूबी डूबी
जितना उतना फिर भी तरसी 
बनी एक ही बार प्रिये की
प्रियतमा
बाकी जोगन ज्वाला बन भड़की
बनी गुंजन सुन मधुर भ्रमर की
पाती पाती खिली अलि की नलिनी
जे घर बार सजाये घरनी
बनी एक ही बार साजन की सजनी
हारी खेल प्रेम का पिए से
दुल्हन बन सजी  एक बार
जोगन बनी  हर रोज़ फिरती
लागि बेसुध बावरी को
जोग की धुन मलंगी
ढूंढे दरबदर प्रिये पिए
पिया को बन जोगनी
छम छम छम दौड़े
डगर डगरिया
डगर डगरिया
छलकी जाए नैनन से भरी भरी
प्रेम गगरिया
दौड़ी सुध बुध
खोये गंवाए सब
जैसे चपला सी गरजी
पाए पिया को तो
ठौर पाए सजनी
पहले सावन में पहली बार बरसी
बरसी बरसी बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी
कंकन सी मतवारी
ठोकर खायी
 गिरे जाई , सम्भली
कन कन भीजा
असुअन जल सींचा
भिगोये जाए दीवानी
सारी धरती
पाती पाती डोली
पाखी पाखी बोली
निखरी संवरी धरा सारी
खिल उठी रंगों  की होरी
जग तज  भोरी भोरी
सांवरे को जो ढूंढन चली
सलोनी सांवरी प्यारी
लिए नाम मनमोहन की डोरी
मन  ना माने चितचोर का
लियो हर सांवरी की निंदिया
बन ऋतू पुरवैया चोरी चोरी
जो चली थी सांवरी भरन पनिया
ले घट घाट बन घटा
फिरे मन हारे डोली डोली
सांवरे की छवि को ताके
बन चकोर  दिन रैन
जो बाजे बंसी धुन
बिरहन  का उड़ जाए मन
बन चकोरी
ह्रदय में पिए कूके
कूके पिए पिए
पिए पिए रटे जाये
 पिए पिए टेरी
आ जाओ  जो सांवरे पिया
आये कुछ अमृत झोली
बरखा बरसे रिमझिम रिमझिम रिमझिम
ले संग पिए की बावरी को पिए
पिए का आलिंगन बने  बृंदाबन
नाचे जोगन मन पिए के आँगन
बन मोरनी
साजे सजनी साजन  संग
जैसे साजे सिन्दूरी चोली संग
हरी सावन में बसंती ओढ़नी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक
बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक
बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी
मनवारी  बनवारी  को मतवारी तरसी तरसी तरसी
घनन घनन घटा बरसी
 बरसी घटा घनन घनन बरसी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक बरसी
पहले सावन में पहली बार बरसी
बन घटा घट घट घर से पनघट तक बरसी
 बन घटा घट घट घर से पनघट तक बरसी।

गीत - सौम्या वफ़ा। ©




रविवार, 12 जुलाई 2020

बचत

बचपन के बक्से से निकालीं
कुछ पेंसिलें पुरानी गुम हुई कहानियों की
जवानी की तेज़ धार से छीली
पेंसिलों से उतारीं
लहराती कविताओं की कतरनें
सजा लीं जिनसे बढ़ती उम्र की ओरिगैमी
बढ़ बढ़ के बढ़ चली
टूटी फूटी बोलियों की अपनी ही भाषाएं
संग बढ़ के बढ़ चलीं
छोटी से बड़ी हो चुकी आशाएं
पेंसिल से पेन
पेन से फाउंटेन पेन हुईं
महंगी से महंगी इंक हुईं
वो सारे चटपटी चाट से चुटकुले
वो सारी दो  रुपए में चार
जितनी सस्ती कविताएं
वो सारी हल्की फुल्की सी कहानियां
जिनके सहारे लिखे थे
टेढ़े मेढे आड़े तिरछे अक्षरों में
पहले पहले जज़्बात
वही सारे अब हुए
सोच समझ के लिखे
कैलक्युलेटेड इज़हार
डायरियों के किस्से बन गए दास्तां
और कागजों के पीले धब्बे
हुईं कविताएं बेकार
एक बड़ी गाड़ी हुई
एक घर, चारदीवारी हुई
कंप्यूटर, लैपटॉप
मोबाइल की
अपनी अपनी मेजें
अपनी अपनी आलमारी हुईं
जगह नहीं थी बची
तो टांड़ पे उठा के रख दिया
वो बचपन से भरा बक्सा कहानियों का
डालकर उसपे दादी की पुरानी लोई का पर्दा
कविताओं की कतरनें
पेनसिलों के साथ
अलविदा सी हुईं
कागजों के धब्बे पीले से भूरे हुए
जिनको अब भी सहेजे थी
कबाड़ से झांकती पहली डायरी
जिसके पन्ने अब भी कर रहे थे
हवा से बातें
जिसका रोशनदान थी
बाबा की फट चुकी बंडी
उसे तलाश थी नई रोशनी की
रोशनदान की नहीं
हवाई जहाज की खिड़कियों की

जिसके बीच से अब भी झांक रहे थे
दो सबसे पुराने साथी

जीवन की सबसे पहली समझ

 सबसे पहली आज़ादी

झांक रही थी पहली नांव
 झांक रहा था उड़ने का सपना लिए
 छोटा सा हवाई जहाज़
 ये सब समेटे डायरी
 अपनी जगह दोबारा बनाने से पहले
 बन गई कविता
 गुम हुई कहानियों की
 अब नए नए कंप्यूटर पर थी
 आज की ताज़ा खबर
 डायरी के पन्नों की जगह
 पब्लिक पोस्ट ने ले ली थी
 जहां कभी जिन्हें कोई नहीं पढ़ता था
 वो सब अब ज़ोर शोर से पढ़े जाते हैं
 और ख़ामोश जो कुछ भी नहीं लिखा जाता
 वो सब बन जाता है
 बिना किसी दस्तावेज़ के
 एक बहती जाती कविता
 एक अंतहीन कहानी
 बस जाते जाते आज बचा ली थी
 बचपन के बक्से से निकली
 जीवन भर की कमाई
 और बचत सारी जमा कर दी
 बुढ़ापे की तिज़ोरी में,
 ज़िंदा बची कहानियां
 मुस्कुराती कविताओं की।



सौम्या वफ़ा।©









शनिवार, 11 जुलाई 2020

फ़िर बारिश

उतरी एक बार फिर छत से कांच पे जो बारिश
धुली धुली है फ़िर से
धूल भरी जो थी यादें सारी
रंग सारे हैं फ़िर रंग बिरंगे
भीगे भीगे भीने भीने
कुछ हरे कुछ नीले
तुम कहो ना कहो
मैं मिलूं ना मिलूं
उतरेंगी जब जब बारिशें
याद आएंगी वो तारीखें
वो नई नई खिली कलियां
और वो बगिया से उखड़ी तुलसी
याद आएंगी वो मुलाकातें
वो शिकायतें
याद आएंगी वो रूठने मनाने की
मनुहारें  सारी
मेरी आंखों से गुज़र के
तुम्हारी धड़कनों में उतरती
 हवा की धुन बावरी
 याद आएंगी दो हाथों के बीच
 धधकती भरी बरसात में आग
 याद आएंगी वो सब सांसों की
 चढ़ती उतरती लयकारी
 याद आएगी
  उंगलियों पे चक्कर काटती हैरानी
  याद आएगी कांचों को सजाती
  दुनिया पे पर्दा डाले
  तेरी मेरी हर सांस की धुंध से बनी चित्रकारी
  याद आएंगे यादों में
  पांव भूल गए हैं जिधर का रास्ता
  रास्ते भूल गए हैं जो मंजिलें पुरानी
  वो रास्ते सारे फ़िर चल पड़ेंगे
  जब जब पांव के नीचे आएगी
  रिमझिम फुहार बनके पिचकारी
  दो आंसुओं के कतरे होंगे साथ हमेशा
  आंखों से कानों तक
  कानों से ठोनी तक झूल के उतरते
  जैसे हल्के हल्के इतराते मोती के बूंदे
 याद आएंगी खो चुकी खुशबुएं
 साथ साथ हल्की सी भारी
 मुस्कानों की गठरी
 याद आएंगी खुशियों के वादों पे मिली
 आंसुओं की सौगात
 याद आएंगी सारी बातें
 और उन बातों का हर हिसाब
 याद आएंगी समन्दर को बूंदों से भरकर
 तर देने की बात
 याद आएंगी आकाश की धरती से मिलन की
 वो अनदेखी बात
 याद आएगी वो तरपन की रात
 याद आएगी बाकी रह गई है
 मेरी जो हर बात
 याद आएगी तुमपे जो है बाकी
 मेरी मिट्टी की खुशबूओं की उधारी
 और बीत जाएंगी टपकते टपकते
 छत से
 कांच को धोते धोते बारिश सारी
 बाकी होंगी बाद फ़िर सर्दी की बर्फ़
 गर्मी की धूल
 जिनमें बिसर जाएंगे फ़िर ये
 गीत मल्हारी
 के फ़िर आएंगी जब बूंदें
 उतरेगी छत से कांच पे जो बारिश
 धुली धुली होगी फ़िर से
 धूल भरी जो थीं यादें सारी
 सिलसिला है ये मौसमों का
 सिलसिला रहेगा जारी....



सौम्या वफ़ा।©



 

बुधवार, 8 जुलाई 2020

ज़िन्दगी के नाम

ज़िन्दगी है निराली बड़ी
तीखी है
पर प्यारी है बड़ी
रूठे तुम हो बैठे यहां
जाने तन्हा कबसे
सुनी पुकार तुमने नहीं
ये कबसे तुम्हें बुला रही है
मना लो इसे जो ये रूठी है
जैसे मान जाएं
खेल खेल में गुड्डे गुड़िया
काहे की लड़ाई
काहे की जीत हार
मान जाओ तुम
ये तुम्हें माना रही है
काहे का मान अभिमान
काहे का लंबा कद
काहे का फ़िज़ूल ही सीना चौड़ा
थोड़ा सा सिर झुका के चलो
ये दामन में फूल बरसा रही है
मानो तुम या ना मानो
ये फ़िर भी आइने में
कुछ तो बता रही है
थोड़ा तुम रुक के इसकी 
ख़ैर खबर लो
ये तुम्हारी ही खैरियत पूछती जा रही है
ये अलबेली सी ज़िन्दगी
नीम हकीम सी महंगी है
कड़वी जैसे दवा की पुड़िया
सीख लो जो  इससे जीना
तो हर मर्ज का है इलाज
दर्द ले के फ़िर रहे हो यहां वहां
ये मुदावा ख़ुद में बता रही है
ना हो कोई मोल
तो बेच ना देना कहीं
किसी को कौड़ियों के भाव
जिनकी नज़र को परख़ नहीं
उनको हीरे में भी
लगती कंकड़ से भी सस्ती है
थके तुम हो
कहते हो ये रुकी रुकी सी है
देखो तो गौर से
तुम हो ठहरे
ये तो बहती ही जा रही है
सीख लो जो संग इसके बहना
तो फ़िर डूबने का क्या खौफ़
डूब भी गए तो क्या
ये ख़ुद ही तुम्हें पार लगा रही है
बस भरोसा निभा के देखो
बस हौसला बना के देखो
माना कि के कहना है आसान
जियो तो जीना है दो धारी तलवार
पर छोड़ने से पहले ज़िन्दगी का हाथ
लेना उनका ज़रूर कुछ ख़बरो हाल
जो मौत के इंतज़ार में
जाने कब से बैठे हैं
जीने को बेक़रार
क्या हुआ जो खाई हैं
ठोकरें तुमने दर बदर हज़ार
ये लेके सौ मर्तबा हर इम्तेहान
सिखाती है जीना फ़िर एक बार
सीख लो जो ये सिखा रही है
तुम्हें दिखा के महफिलें
ये अपनी ही धुन में अकेली चली
साथ ज़िन्दगी के वही चल सका
जिसे इसकी बावरी मौज की
धुन लगी
के गा लो सुर में सुर मिला के संग इसके
ये जो भी  नगमे सुना रही है
कर ना लेना हड़बड़ी में कोई
नादानी
कितनी भी हो मुश्किल
पर ये दुश्मन नहीं
यही तो एक पक्की सहेली है
झूठ मूठ के फेर में
कर लेना ना इससे कट्टी कहीं
ज़िन्दगी की बाहों में डाल के हाथ
चल पड़ो साथ इसके
जिधर भी ले जा रही है
ये रुक के करेगी ना तुम्हारा इंतज़ार
मौका है फ़िर भी हर रोज़ देती
जीने का एक बार
किसी बार तो सुन लो ज़रा जी
ये जाने जां तुम्हें ही बुला रही है।
ज़िन्दगी है निराली बड़ी
तीखी है पर है
प्यारी बड़ी।
किसी बार तो सुन लो
ये जाने जां तुम्हें ही बुला रही है।




"ज़िन्दगी के नाम"।


सौम्या वफ़ा।©





मंगलवार, 30 जून 2020

मन

ये मन पापी,
बड़ा पुण्यवान है
यूँ तो सारे पापों की  खान है
पर जो मन का मन चाहे तो
मनका मनका फेर मन
मन ही अल्लाह राम है
मन ही किशन
मन ही एक
बुद्ध अटल
मन ही सत्यवान है
मन चले जो ढूंढ़ने सत्य तो
देखे ,छुए , मुँह लगाए
मन को भाये सब कुछ
मन पाए जग सारा,
पाए सब जो है मिथ्या
पर बिन मिथ्या का कलंकी
तिलक लगाए
मन छोड़ ना सके
वो जो भी छोड़ना चाहे

मन है प्रयोगों का विज्ञान !
या व्यसनी दुराचारी है !?

मन आदम का अब भी वानर है
जो ना चखे स्वाद तो
लड्डू , पेड़ा  भी
अदरक  है
मन है भरमाये सबको
करम से
मगर छुप के है नियत से निभाए
क्या पुण्य है क्या पाप
ये फैसला वही करे
जो मंतर फूंके
मन पे
नियत के उपाय,
मन बिन नियत के
बड़ा गुमनाम बड़ा अनजान है
बिगड़ जाये छटूले बच्चे सा !
जाने काहे का अभिमान  है ?
मन की करो तो मन 
एक सर्वोत्तम सखा
सुखवान है ;
मन की एक ना सुनो तो
बिगड़े सारे संधान हैं
ये मन पापी
बड़ा पुण्यवान है।


सौम्या वफ़ा।


रविवार, 28 जून 2020

दो लोग

दो बरस पहले दो लोग मिले थे
आज वो ढूंढ के भी नहीं मिल पाते हैं
लेकर आए थे साथ जो तुम
थोड़ी अपनी मिश्री थोड़ा अपना नमक
लेकर अाई थी जो मैं
थोड़ी अपनी शहद थोड़ा अपना नमक
अब ना तुममें मिश्री है
ना मुझमें नमक
अब ना मुझमें मिठास है ना तुममें नमक
बस अब तुम्हारी गर्मी मुझमें है
और तुम में सांस लेती है
मेरी वही गमक
आंखें अब भी जब टकराती हैं
बोलती भी हैं और शर्माती भी हैं
जान अब भी है
मगर उतनी ही जितनी
 सांस खींच ले जाती है
 दो हाथ अब भी एक दूसरे को
 एक ही जिस्म और जान का हिस्सा जानते हैं
 दोनों के सिर अब भी अपना अपना सिरहाना
 अपने हमजान के सीने पे पहचानते हैं
 बस पहले दो जानें
 खुशियों के लिबास में
 संवर कर आती थीं
 अब दो मर्ज़ मिलते हैं
 अपने अपने मुदावे से
 और कफ़नों में लिपट के आते हैं
 जीने भर को ज़रूरी हो जितना
 उतना भर
 हवा से नमक
 आसमां से मिश्री चुराते हैं
 जीने भर को ज़रूरी हो जितना
 बस उतना ही जी के रह जाते हैं।



सौम्या वफ़ा।(6/2/2020).

रात

रात तेरे पहलू से मैं
सुबह को जो निकला हूं
ख़ुद से बेगाना हूं
रूह से बिछड़ा हूं
सूरज ने दिन का उजाला
तो दिखाया है
पर रात के अंधेरों में
अपना साया खो आया हूं
रात तेरे पहलू से मैं
सुबह को जो निकला हूं
ख़ुद से बेगाना हूं
रूह से बिछड़ा हूं
दिन की सारी कमाई लेकर
कोई एक रात मुझे फिर
रात के साथ दिला दे
मैं रात रात भर
रात के लिए तड़पा हूं
रात तेरे पहलू से मैं
सुबह को जो निकला हूं
ख़ुद से बेगाना हूं
रूह से बिछड़ा हूं।



सौम्या वफ़ा। (18/8/2019).

खिड़कियां

ये खिड़कियां भी कमाल होती हैं
खिड़कियां नहीं ख़्वाब होती हैं
दम तोड़ते शहर में
जीते रहने की खुराक होती हैं
ये खिड़कियां भी कमाल होती हैं
तेरी खिड़की में झांकती मेरी खिड़की
हर बात का हिसाब होती है
दौड़ते हुए लम्हों का
थमा खि़ताब होती हैं
इस खिड़की की चाहत बेहिसाब होती है
एक छोटी सी ही खिड़की हो
मगर हो तो सही
उम्र भर यही मुराद होती है
एक खिड़की हो तुम्हारी
एक खिड़की हो मेरी
इस कोशिश में
हर रात तमाम होती है
ये खिड़कियां भी कमाल होती हैं।








सौम्या वफ़ा।(3/1/2019).

दुआ

जब हम नहीं पहुंच पाते
तो दुआ भेज देते हैं
नम आंखों को
नर्म आवाज़ को
ख़ुद में समेट लेते हैं
घर का दरवाज़ा खटखटाते हैं
केवल मुस्कुराहटें और तोहफ़े
और बातों बातों में ही बस
मिठाईयां बटोर लेते हैं
हलक में जाने क्या अटक सा जाता है
झाड़ पोंछ कर उसे फ़िर
एक बक्से में लपेट देते हैं
इसी तरह दूर दूर से हम
करीब के सारे
रिश्ते सहेज लेते हैं
जब हम नहीं पहुंच पाते हैं तो
दुआ भेज देते हैं।



सौम्या वफ़ा।(14/8/2019)

वादा

ज़्यादा तो कुछ नहीं
बस इतना वादा कर सकती हूं
तुम ज़िंदा रहो तो
जीते जाने का वादा कर सकती हूं
तुम फूल नहीं ना सही
पुंकेसर ही दे दो
मैं रस बनकर बरस जाने का वादा कर सकती हूं
मैं कल तो नहीं थी तुम्हारी
पर तुम मुझे आज दे दो
मैं आने वाले हर कल में
अपने हिस्से का ब्याज भर सकती हूं
गेहूं चुनकर आओ जब तुम
तो मैं ठंडे पानी का घूंट बन सकती हूं
ज़्यादा तो कुछ नहीं
बस अपने साथ साथ तुमको भी
ज़िंदा रख सकती हूं
तुम ज़िंदा रहो तो
जीते जाने का वादा कर सकती हूं
ज़्यादा तो कुछ नहीं
बस इतना वादा कर सकती हूं।


सौम्या वफ़ा।(11/8/2019).

थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं

थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं
कभी कभी आज भी ऐसा लगता है
खिड़की से आती हवा का
चेहरे को सहलाना अब भी अच्छा लगता है
सड़क पर चलते चलते बेखबर
सीटी बजाना अब भी अच्छा लगता है
अब भी अच्छा लगता है
शरारत करना
अच्छा लगता है पानी को छूना
किसी पंछी संग ख्यालों में उड़ जाना
टीन की छत पर नंगे पाओ फुदकना
दो बादलों के फुग्गों बीच
टांगे पसारे तैरते चले जाना
अब भी अच्छा लगता है
बुखार में आइसक्रीम खाना
अच्छा लगता है उड़ते जहाज़ की पूंछ पकड़ कर
हो हो चिल्लाना
किसी नौसिखुए की पतंग लूट लाना
अब भी अच्छा लगता है
पड़ोसी के घर की दीवारें फांद जाना
अच्छा लगता है अब भी
दरवाज़ा खटखटा कर भाग जाना
अब भी अच्छा लगता है
 छिपे रहकर टीप मार जाना
 अच्छा लगता है बस इस
 अच्छे लगने के एहसास में
 अच्छे लग जाना
 एक लंगड़ी टांग से
 इक्खट दुक्खट में
 दुनिया नाप जाना
थोड़ी अब भी ज़िंदा हूं मैं
कभी कभी आज भी ऐसा लगता है।




सौम्या वफ़ा।(9/8/2019).

कैक्टस

कैसे होता है यूं
कि जब सपनों के पास आते जाते हैं
तो वो जो दूर रहने पे
खिले थे प्रेरणाओं के फूल
वो कैसे मुरझा जाते हैं
हकीकत की सड़ांध और बू से
तब कितना ज़्यादा लगता है
कि काश
हर फूल के पास कांटों का सुरक्षा कवच होता
बिना किसी बाग़बां या माली के
कड़ी धूप में बिना पानी के
ज़िंदा रखता
फ़िर अचानक नज़र के सामने
जानी पहचानी मगर बिसर चुकी सूरत
खिल उठती है
ये बिसर चुकी सूरत बारह साल की
लिली जैसी नाज़ुक नर्म और मासूम सी लड़की है
फ़िर सोलह की टियूलिप
फ़िर अटराह की जूही
फ़िर बीस की ग़ुलाब
ये सारे फूल पत्तों के एल्बम में बदल जाते हैं
जहां यादें तो अब भी बहुत सी ताज़ा हैं
मगर वो सब अब सिर्फ़ यादें ही हैं
क्यूंकि उनमें से कोई भी अब ज़िंदा नहीं
और ये पन्नों के पत्ते पलटते पलटते
जा रूकते हैं छब्बीस की कैक्टस पर
जिसके जिस्म का रोम रोम
कांटों की तरह तनकर खड़ा हो जाता है
गर्व और मुक्ति से
आंखों में अब नमी नहीं आती
वो खूंखार और ठोस हो चुकी हैं
तो फ़िर नमी कहां गई ?
वो सारी कांटों को पालने में चली गई
और बची खुची नमी
का स्टॉक एक कोने में पड़ा है
क्या पता कब काम आ जाए
आखिर कांटों को सींचने में भी
नमी की ही ज़रूरत होती है
और इस नमी और कांटों के
मधुर संबंध के दरम्यान
रेत का बवंडर
धीरे धीरे अपनी जगह बनाता रहता है
जिसके इर्द गिर्द केवल वही पनपते हैं
जिन्हें संगीत के बजाए
डरावनी सांय सांय पसंद है
ऐसे खौफ़नाक से मंज़र में
जहां ज़िन्दगी का नामो निशान नहीं होता
वहां ज़िन्दगी की निशानी लेकर
गर्व से खड़ी होती हैं
मुक्त कैक्टस की ख़ामोश बाहें
नमी और चुभन का संतुलन बनाए हुए
जिसे बरसात का कोई इंतज़ार नहीं
जो बस एक बूंद में ही तर हो जाती है
और जी जाती है
मैं अब यही कैक्टस हो चुकी हूं
और अगर तुम अब
 फूलों से नाज़ुक बनकर आओगे
तो छिल जाओगे।





सौम्या वफ़ा।(29/1/2018).



गुच्छे

बस छह क़दम की जगह को
कुछ साइकिलों के गुच्छे ने
भीगने से बचा रखा है
ख़ुद भीगते जंक खाते ये गुच्छे
वो छत हैं
जिसके तले कई क़िरदार महफूज़ हैं
महफूज़ हैं
नन्हीं हंसी और किलकारियां
चूल्हे की आंच
तेल की झार
रोटी की ख़ुशबू
और गुड़ की मिठास
महफूज़ है कोई
लरजती कांपती बूढ़ी आवाज़
और महफूज़ है किसी के दो हाथों की
चार चूड़ियां
साथ ही महफूज़ है
इसके सवार की भीगती रूह
जिसका जिस्म अब महज़ कंकाल है
इस तरह से बस छह क़दम की जगह को
कुछ साइकिलों के गुच्छे ने
भीगने से बचा रखा है।



सौम्या वफ़ा।(1/1/2019).

सोनू टी स्टॉल

अंडे  , भुजिया, पकौड़ियां
चाय, अदरक, टॉफियां
गणेश जी को उम्मीद से निहारते
साईं बाबा
अंधेरी शेल्फों में छिपी पड़ी
सिगरेट की डिब्बियां
जलने को त्यार लटका
रंग बिरंगा लाइटर
माचिसों की पुलिया
मौसम में ठंडी बरसात
हर चाय के प्याले में राहत
और टकटकी लगाए
कुछ सीली चूरन की गोलियां
हर पुड़िया में छोटी छोटी खुशियां
ये सब कुछ था
सोनू टी स्टॉल पे
बस नहीं था
तो सोनू टी स्टॉल पे कोई गाहक नहीं था
कुछ लोगों को वो ख़ुद याद नहीं थे
और कुछ को लेमन ग्रास के क्रेज़ में
आड़ी तिरछी बढ़ती अद्रकों की याद कहां।



सौम्या वफ़ा। (28/6/2019).

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी से और कुछ नहीं
बस एक सांस भर ज़िन्दगी चाहिए
एक सांस जिसमें सारी हवा भर के
ज़िन्दगी बादलों के बीच उड़ती हो
एक सांस जिसमें सारी फिज़ा भर के
किसी पागल धुन में
मेरी रूह फिरती हो
एक सांस जो आख़िरी हो
मगर उसमें पहली सांस वाली बात हो
एक सांस जिसमें घुल के
हवा इत्र बन जाती हो
एक सांस जो छूटे जां से
तो मुस्कुराती हो
एक सांस जो बिना वजह मन को गुदगुदाती हो
ज़िन्दगी से और कुछ नहीं
बस एक सांस भर ज़िन्दगी चाहिए।


सौम्या वफ़ा।(6/1/2019).



दो बीज

इक रोज़ जब मैं आंगन में खड़ी
सूप में इश्क़ पछोर रही थी
तब अनजाने में ही
तुम्हारे इश्क़ के दो बीज
मेरे आंगन के कोने में जाकर छिप गए
कई रोज़ बाद देखा
वहां नन्हीं नन्हीं हरी कोपलें फूटी थीं
मैंने सोचा क्यूं ना इन्हें
बीच आंगन में
तुलसी की छांह में रोपूं
पर जैसे ही मैंने उन्हें
इस एहसास से हाथ लगाया
वो दोनों सहम कर सकुचा गए
वो तुलसी के साथ नहीं
बल्कि एक कोने में अपना घर बसाना चाहते थे
नलके के पानी से नहीं
बारिश के इंतज़ार से ख़ुद को
सींचना चाहते थे
फ़िर ख्याल आया
ये हमारे इश्क़ की फूटी कोपलें ही तो हैं
इन्हें बारिश का ही इंतजार रहेगा
इन्हें तुलसी की छांह नहीं
अपने सर पर
छोटे से आसमान का ही इंतजार रहेगा।



सौम्या वफ़ा। (7/1/2019).

शनिवार, 20 जून 2020

क़दम

जिस घर से चले थे उसी की राह भूल जाते हैं
उठते डगमगाते क़दम कहीं गुम जाते हैं
कुछ को ख़ुद याद नहीं रहता कुछ भी
कुछ गुमशुदा हो जाते हैं
कुछ उन्हीं भूली बिसरी सी शक्लों में लौट आते हैं
कुछ मिल के भी नहीं मिलते
कुछ मिलते हैं तो
बस निशां रह जाते हैं
कुछ जाते हैं तो उन्हीं क़दमों पर
चौदह चांद चमक जाते हैं
कुछ को ढूंडो तो
सोलह सिंगार मिल जाते हैं
बाकी चार क़दम की तलाश में
बस इश़्तहार रह जाते हैं
कुछ क़दमों की आहट से
रोशन आंगन जगमगाते हैं
कुछ भटके थे सुबहो को
तो शाम को भी नहीं
लौट पाते हैं
नादां क़दम जिस घर से चले थे
उसी की राह भूल जाते हैं।




सौम्या वफ़ा।०

रविवार, 7 जून 2020

घर और शहर

टूटे टूटे टुकड़ों से जो कुछ भी
बसाया है टीन टप्पर का शहर
बड़े सबर से भरे पूरे बसर का
ख़्वाब लगाया है दांव पर
कभी तो जज़्बे सा लगता है
कभी लगता है दीवानगी
कभी कहता है जो है सब यहीं है
फ़िर मुकर जाता है
जब हो बात सच की
दिल जानता है वो देता है झूठी गवाही
कहीं है अपना सब
तो अपने नहीं
कहीं अपने हैं तो अपना जो है वो नहीं
एक छत है सुनहरी अरमानों की
जहां भीड़ है बस अनजानों की
एक ज़मीं है मां की कोख़ सी नरम
मगर वहां पंख पसारने को
 सारा आसमां नहीं
एक महल है हसरतों का जिसे
घर बनाने की बेवजह है सारी मशक्कत
एक है गहरा दरख़्त मज़बूत
और एक है नन्हा शजर
एक टूटी फूटी छप्पर तले
छोटे छोटे बीजों की बोई है सारी जागीर
इक छत पर है नाम कल की सुबह का
इक ज़मीं है पीछे छूटी उम्र की तामीर
दुनिया से नहीं अरमानों से हैं खफा
इन अरमानों पे चढ़ी हैं कई
अनकही ठोकरों की कहानी
जिनकी मुस्कुराहटों के पीछे
 छिप जाती है मेरी पशेमां तन्हाई
 कितनी बार अश्कों के सितारे
 चमका देती है किनारों पर
जाने कितनी मजबूरियों की बानगी
 जब जब होती है पाओं तले ज़मीन से
एक अदद छत को रवानगी ।


@सौम्या वफ़ा ०।©

सोमवार, 1 जून 2020

डोर

कच्ची डोर है इश्क़
बिजली का तार नहीं
हौले हौले उठती गिरती
तरंगें हों,तो है बात कोई
एक बार के झटके में
जल जाने का मज़ा ख़ाक नहीं
इश्क़ की डोर चले थोड़ी सीधी
उड़ ले सांसें भर के जब ढील दें
तनातनी की बात में
तोड़ मरोड़ है
रिश्ता बेजोड़ नहीं
तेज़ आंच पे चढ़े इश्क़ में
मद्धम आंच का स्वाद नहीं
छूटे अगर हाथ तो
छोड़ दो सरल डोर भी
टुकड़ों से ख़ाली हाथ भले
टुकड़ों से बसता संसार नहीं
डोर आए तो सहेज लो
गांठों का पैबंद का कोई मोल नहीं
जो जाने कि इश्क़ है
तार बिजली
वो छिपा छिपा रखते हैं जेबों में
ख़ुद के हांथ जले
इश्क़ की डोर सब्र से
चरखा चढ़े
हौले हौले कातें
हौले हौले सिएं
चाहे तो बना लें ओढ़नी
चाहे तो रज़ाई बुन लें।


सौम्या वफ़ा।०©

गुरुवार, 28 मई 2020

मैं और इश्क़

तुम्हें इश्क़ है तो शाख़ हो जाओ
मैं लौट कर हर बार तुम तक आऊंगी
जो डालोगे डोरे कै़द के
तो फुर्र फुर्र हो जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो नीला आसमां हो जाओ
मैं महज़ पंछी नहीं परवाज़ भी हूं
मैं उड़ उड़ कर तुम पर छा जाऊंगी
जो चाहोगे कहीं ठहर के बना लें बसेरा
तो बादलों में कहीं गुम हो जाऊंगी।
मुझे नशेमन का शौक़ नहीं
मेरे पंखों में महज़ उड़ानों का ज़िक्र है
शाख़ों से है इश्क़ मुझे
मुझे खौफ़ नहीं खौफ़ का
बस क़फ़स से खौफ़ है
जो चाहो संग जीना
तो ज़िन्दगी बन जाओ
मैं हर परवाज़ पे तुमको जी जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो शाख़ हो जाओ
मैं हर बार लौट कर तुम तक आऊंगी।





सौम्या वफ़ा।०


मंगलवार, 19 मई 2020

ज्ञान

ज्ञान ज्ञानी को ही कहिए
ज्ञानी रहिमन, कबीर , मीरा
ज्ञानी साधू, सूफ़ी, पीर
बाकी अज्ञानी की नादानी को तो
अलिफ़ की सीधी चाल भी
टेढ़ी ख़ीर
जो जाने  ज्ञानी जन ज्ञान की बात
ज्ञान बड़ा नहीं सरल सीधी लकीर
बस यही सरल हो सीधा बढ़ना
दुनिया को जाने कितनी भारी पीर ।



सौम्या°

खुशियां

मुस्कानें बांटों
ठहाके बटोरो
बिखेर दो रंग ज़िन्दगी के
जिस राह से भी गुजरो
मगर अपनी खुशियों को ख़ुद में ही छिपा के रखो
खुशियां खज़ाना हैं
छिपी होंगी तो महफूज़ होंगी
बांटने की कोशिश में
लुट जाएंगी सारी की सारी
सब छीन लेगा ज़माना और तुम्हारे हाथ ख़ाली
महफ़िल देखेगी तमाशा और बजाएगी ताली
ख़ुशी तुम्हारी
बस तुम्हारी ही ख़ुदा है
बाकियों के लिए बर्फी या खजूर
या काफ़िर कहलाएगी
इसलिए मुस्काने बांटों
ठहाके बटोरो
बिखेर दो ज़िन्दगी
जिस राह से भी गुजरो
लगे रह गया है कुछ
तो गुल बनकर बिखर जाओ
और खुशबुएं भी बिखेर दो
मगर अपनी खुशियों को
बस ख़ुद में ही छिपा के रखो।


सौम्या°



सोमवार, 18 मई 2020

सहज

निर्मल पावन सी तरंग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
अाई हो कि गई कोई भान ना हो
ऐसी सूक्ष्म अनन्त हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सहजता कोई भाव नहीं एक
शून्य सत्य है
तुम सत्य में विलीन हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सहजता स्थिति नहीं सिद्धि है
तुम एक सिद्ध योग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सिद्ध शून्य से बड़ा कोई चमत्कार नहीं
तुम स्वयं में विलीन हो
इस चमत्कार से चमत्कृत हो जाओ
मुझमें आती हो बस जाती हो
ऐसे ही कण कण में बस जाओ
अगण्य हो अब
नगण्य हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
निर्मल पावन सी तरंग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ।


सौम्या॰

शनिवार, 16 मई 2020

एग्जै़क्ट फै़क्ट कविता सिरीज़ -१ ( ब्रेकअप के बाद)

यार कुछ भी कहो मगर ब्रेकअप के बाद
लाइफ़ क्या सही सेटिल हो जाती है
सब एक्सपीरिएंस हो जाता है
डेमो क्लास और मॉक ड्रिल भी हो जाती है
रोज़ रोज़ की क्लास कौन करे
रोज़ रोज़ लेक्चर कौन लगाता है
डेटिंग का टेस्ट पास कर के
फ़िर एग्जाम की तैयारी कौन करे
एक बार टॉप कर के
फ़िर बंदा फे़ल हो जाता है
चीटिंग का कोई चांस नहीं
रिश्तेदारों की पार्टी में
कोई प्रॉक्सी भी नहीं लगवाता है
घर की चारदीवारी से निकल के
बंदा हो या बंदी हो
हो जाए बंदर दोबारा
घर के राजा रानी अब अपन
किंग साइज़ हो या क्वीन साइज़
बिस्तर से लेकर सारा बेडरूम हमारा
ना नहाने धोने की रोक टोक
ना खा़ने पीने का कानून
सोच अपनी शौच अपनी
अपना अधिकार अपना नारा
शादी अगर इंस्टीट्यूट है
तो रिलेशनशिप ट्रेनिंग सेंटर
सिंगलहुड फाइव स्टार आश्रम है
सेल्फ़ लव , भरपूर केयर , इंट्रोस्पेक्शन
इनर कॉलिंग और नए नए एडवेंचर
ब्यूटी पार्लर, मेकओवर
जिम, स्विमिंग, हॉर्स राइडिंग
योगा और मेडिटेशन
हम ही हैं अब अपने रिपब्लिक
हर दम अपनी फ़्रीडम
रात हो जाएं टांगें पसारे
सोएं जी भर के हम
दिन को कोई किच किच नहीं
हर बात पे अपनी सेलिब्रेशन
यादों का टिकट कटा के
करा दिया है इमिग्रेशन
परमानेंट सेटिंग कर ली अपनी
अपने ही संग
चार वर्णों के आश्रम में
ये पांचवा खड़ा है सर्वोत्तम
जैसे गट फी़लिंग के साथ कंपैटिबल हो
बढ़िया सिक्स्थ सेंस
हम हैं सेल्फ़ डिपेंडेंट
ना काहू का भय
ना काहू से पराक्रम
हमको पसंद है अपने साथ अपनी ही कॉम्बिनेशन
दिल टूटा तो  बोला
अमी एकला चलो रेे
ज्ञान आवे जब ईगो जावे
फ्ऱस्ट्रेशन के संग
अब हम ही बुद्ध
हम ही कन्हैया
हम ही हैं कंस
हम तो मज़े में हैं जी रहे
जलता है तो जले देख देख संसार
कहें लोग घर बसा लो
हम तो भैया घर में ही रहते हैं
तुम जो बताओ
उसे कहते सैल हैं बाकी हिंदी में कारागार
जेलर तुम गले ना बांधों
टेंडर टिंडर , गृंडर का सब है यहां
नहीं तो सबके सुख दाता जगन्नाथ
रुको रुको सुनते जाओ
हाउसफुल है अपनी कंपनी
बाकी सब तुम्हारी इमैजिनेशन
बाकी मजबूरी की बात न बतियाओ
 उसमें नहीं है कोई कनविक्शन
बच्चे वच्चे की चिंता ना करो
नौकरी भी है , आई ॰ वी॰ एफ ॰ भी
और लीगल है अडॉप्शन
नहीं तो सेरोगेसी भी है
और स्पर्म डोनेशन का भी है ऑपशन
तुमको संसारा फिकर घंटा नहीं
तुमको चाहिए बस सेंसेशन
तुम्हारी कॉज़ से हुआ है जो लॉस
उसका कौन भरेगा कंपनसेशन
अब अर्जी फर्जी चिट्ठी ना डालो
ना भेजो एप्लिकेशन
सिस्टम हमारा फुल है
ना वायरस भेजो
ना भेजो बग का टेंशन
तुमने हमेशा पढ़ाई दो दूनी चार
हम एक इक्कम एक हैं
बाकी ज़्यादा गरियाओ ना
सुबक सुबक के घबराओ ना
हम जानते हैं दूने चौगुने लोगों की
इकहरे से सुलग जाती है
तुम्हारी चलती होगी अपने घर
हमारी दौड़ जाती है
इसी बात से बस सब लोगों की
भन्नाती है
यार कुछ भी कहो मगर ब्रेक अप के बाद
लाईफ़ क्या सही सेटिल हो जाती है।




@सौम्या वफ़ा।©





शुक्रवार, 15 मई 2020

ग़ज़ल

तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की
नर्मी क्यूं चुरा ले गए
उतरती थी इतरा के पन्नों पर जो स्याही
उस सुर्ख़ श़बाब की
शो़खी क्यूं  उड़ा ले गए
महकता था जो पन्नों पे
कन्नौज का श़हर
उस बसे बसाए श़हर की
ख़ुशबू क्यूं  चुरा ले गए
मेरे शामियाने में आती थी
ज़रा देर से सहर
तुम गए तो गए
मगर ये रात के पैराहन
क्यूं उतार ले गए
मेरी आंखों सी बोलती थी मेरी क़लम
तुम गए तो गए मगर मेरी क़लम को
आख़िरी कलमा क्यूं पढ़ा गए
तुम गए तो गए
मगर मेरी हर ग़ज़ल को
नाम शायर क्यूं रटा गए
आब को आग़ से क्यूं बुझा गए
तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की नर्मी क्यूं चुरा ले गए?



@सौम्या वफ़ा।©




स्पेशल मेनू

एक थाली चांद का ऑर्डर
एक कटोरी सूरज
बारिश़ की रोटी
बरखा़ का साग
पतझर के नमक
और बहारों के गुलकंद
गर्मी की कुछ तीखी मिर्च
और ठंड से ठिठुरता
घी संग गुड़
मिलेंगे क्या जी भरने को
फ़िर से क़िस्मत के ढाबे पर
दो बिछड़े हाथ
स्पेशल मेनू के कुछ सूखे पन्नों के साथ!



सौम्या वफ़ा।©

कुछ हवा कुछ हैरानी


तुम ठंडी ठंडी सी बहती हवा
और मैं लहराकर उमड़ता पानी
तुम शान्त सहज शीतल सी चितवन
मैं बिखरी बिखरी सिमटी सी सुंदर
तुम चित्त शून्य एक
मैं महके महके रंग अनन्त
तुम सुलझी सुलझी सी उलझन
मैं उलझी उलझी सी सीधी सरल
तुम नील गगन के पन्ने अनेक
मैं उससे बरसती स्याही
तुम थोड़े सच्चे झूठे मौजी मगन
मैं कच्ची पक्की सी सच्ची लगन
मैं तुम्हारी जली बुझी सी धूनी की लौ
तुम मेरी भीगी भीगी
भीनी सी हैरानी
तुम ठंडी ठंडी सी हवा
और मैं लहराकर उमड़ता पानी।





सौम्या वफ़ा।©
(26.4.2020)

शब्दों का जादूगर

वो शब्दों का जादूगर था
शब्दों के लिए जज़्बातों को बेच आया था
उधारी पर बड़े बड़े तोहफ़े खूब लाया था
जिगरा तो था ही नहीं ,
 दिल भी गिरवी रख आया था
 बहानों की लंबी चौड़ी फ़ेहरिस्त भी
 ज़ुबान पर उतार लाया था
 उसके दिल में क्या था वो ही जाने
 या राम जाने
 जिस राम का ढोंग वो
 कृष्ण से कर आया था
 चढ़ाने को जिस्म की अंगीठी पर
 राशन भरपूर लाया था
 मगर दिल की अधगली दाल में
 पंसारी से कंकड़ भरवा आया था
 सौदे का खरा था
 इरादों का नहीं
 लेकर प्यार का सारा
 कच्चा माल
  चौगुने मोल में
 पैकिंग नई कर के देता जा रहा था
 कोरे पन्नों को शुरू शुरू में पैकिंग
 का नया रंग
 दिलो जान से भाया था
 रंग उतरा तो अन्दर
 सब निल बटे सन्नाटा छाया था
 बड़बोली उसकी शब्दों की
 दुकान पर मैंने उस दिन
 अलीगढ़ी ताला पाया था
 सुना है अपने ही घर उसने चोरी की थी
 और वहीं बिस्तर पर
 मेरा प्यार बिसरा आया था
 उसके हाथ में मैंने
  अपने घर की चाबी दी थी
 वो जाने कहां गिरा आया था
 जादूगर से वो सीधा बन गया जोगी
 लेकर गायब हो गया था
 मेरे खज़ाने भरी तिज़ोरी
 कर के सच की बत्ती गुल
 अंधेरे की धूल आंखों में झोंक कर
 वो सबको अंधा कर आया था
 वो शब्दों का जादूगर था
 शब्दों के लिए
 जज़्बातों को बेच आया था।




@सौम्या वफ़ा।©


मॉडर्न मजनूं

ये कथा है मॉडर्न
छैल छबीले मजनूं की
उसकी चंगुल में फंस गई
उड़ती फिरती स्वतंत्र लैला की
लैला के उसने पंख सजाए
 ख़ुद नए नए रंगों से
बोला उसने जब
 मैं उडूंगी अब
इतराते खुले गगन में
मजनूं ने बोला जा मेरी लैला
फुर्र फुर्र उड़ आ
सोचना ना मैं शिकारी हूं
मैं तो दिन रात करता रखवाली हूं
डालूंगा तुम्हारे गले में रस्सी
तुम उड़ आना जहां तक हो
मेरी मर्ज़ी
लैला बोली , तुम तो बड़े
मतलब के साथी हो
पंख हैं सजीले
 मगर उड़ने से कतराते हो
कहते हो आशिक़ हो
पर हरकतें तुम्हारी बनिया सी
बेहिसाब मेरे प्यार का
जोड़ तोड़ हिसाब लगाते हो
एक भी करूं पुकार मनुहार
तो कभी खीजते कभी खिसियाते
कभी बत्तीसी दिखलाते हो
लेकर गाड़ी लगाकर हैट
सूट बूट पहने झोला दाबे
हाथों में मेरा हाथ थाम
कभी पिक्चर कभी मेले में ले जाते हो
प्रॉब्लम है दिल की
पार लगाना है अनमोल ज़िन्दगी
और तुम दिखलावे को
मार्केट प्राइस में बिकता हुआ
 पैक गिफ्ट ले आते हो
अच्छी अच्छी गप गप करके
कड़वी कड़वी सब थू कर जाते हो
प्यार जताने को अंधेरे में ले जाते
सपनों के सितारे दिखलाते हो
बातें करवा लो लंबी चौड़ी
पर जिम्मेवारी नहीं उठाते
कहते हो हम हैं जीवन साथी
इधर उधर टहलाते जाते
पर हाथ मांगने कभी घर नहीं आते हो
इरादे तुम्हारे नेक नहीं
तुम होगे अंट्रू
हम ट्रू हैं फ़ेक नहीं
तुम्हारे फ़ोन का पासवर्ड
 होगा बहरूपिया
हमारा तो ओपन सीक्रेट है
कोई लॉक नहीं
समझ गई हूं तुम्हारी नियत में ही डेंट है
गट फीलिंग में मेरी दम
सेंट परसेंट है
मजनूं मेरे प्यारे
रख लो तुम अपने रंग सारे
ख़ुद को लगा लो ये रस्सी
और ख़ुद पे डालो पांसे
माना तुमने खेल रचाने में
बहुत ख़ूब मेहनत की थी
सुन लो मेरे प्राण प्यारे
ये कथा यहीं तक ही थी
तुम्हारे इस प्रेम गेम का
अब ये दी एंड है।



@सौम्या वफ़ा।©


अजायबघर

ज़िन्दगी एक कांच का अजायबघर
अजूबे की माया है
चील कौओं की लड़ाई
बंदर बांट का तराज़ू
गीदड़ की दादागिरी
शेर की सिट्टि पिट्टी गुम
चूहे की चालाकी
सांप की जकड़न
जमूरे के नाच का आंगन
जादूगर का पिटारा है
किसी के पेट की मरोड़ें
किसी के हाथ की रेखा
किसी की घिस चुकी बट्टी
किसी का टूटा सिलबट्टा
किसी के माथे का सितारा है
किसी की पिस्ती चक्की
किसी के चाक से उतरा पहिया
किसी की ऊंची उड़ान
किसी की लंबी छलांग
किसी की तेज़ रफ़्तार
किसी के आहिस्ते चलने का हुनर
किसी की झटपट धरपकड़
किसी का सधा शिकार
किसी के बच निकलने की अदा है
किसी के पंखों में सतरंगी रंग
किसी के पंख पसारना भी ज़ाया है
कोई जिए ऐसे जैसे सब है आज
कल फिर कभी होगा नहीं
कोई जिए कल - कल में
जैसे आज का मोल भाव
सेंसेक्स में जाना नहीं
किसी के ख़्वाब हकीकत हैं
किसी का ख़्वाब देखना
बेवकूफी़ का तानाबाना है
कोई उड़े लेकर जेट प्लेन
कोई उड़ जाए भरकर जेबों में बैंक
कोई दो वक़्त की रोटी लूटे
किसी की कॉफ़ी की कीमत
महीने भर का राशन है
कहीं रोल्स रॉयस ,लीमोसीन
कहीं जगुआर और वॉल्क्स वैगन है
कोई खींचे हाथ गाड़ी पर गिरस्ती
कोई पटरी के नीचे आ जाए
कोई सड़क पर ही जन दे बच्चा
कोई तोड़ कर रीढ़ खींचे
ट्राली बैग पे जच्चा
किसी को भाए पिंजरे में रहना
कोई खुली हवाओं का हमसाया है
कहने को बस नाम आदम है
फ़र्क मगर सिर्फ़ इतना है
कोई जानवर है
कोई जनावर है
किसी ने सजाया किसी ने बेचा
किसी ने पाया किसी ने गंवाया है
ज़िन्दगी एक कांच का अजायबघर
अजूबे की माया है।


सौम्या वफ़ा।©

धरती आकाश

धरती तो धरती है
जैसी की तैसी है
गिरगिट सा रंग बदले सारा आकाश
कभी धुला धुला नीला
कभी फीका काला धुंधला
कभी ग़ुलाबी कभी
सुनहरा कभी नारंगी है
धरती की वफ़ा एक तरफा
बावरी सी काटे प्रेम के चक्कर
पर आकाश का चाल चलन
अतरंगी है

कैसे निभे दोनों में
रोज़ क्षितिज पर मिलने की हो बात
धरती बैठी रहे लगाए आस
मगर आकाश के तो हैं रसीले ठाठ
चाहे जितने लगा लो जुगत उपाय

पर इधर सूरज ढला और
उधर  बिगड़ जाए हर जुगाड़
सुनाने को मिले कोई तो सुनाऊं
ये कसक की कहानी

सुनने में बड़ी सुहानी लगती है
करीबी हो कोई अगर
तो ही ये राज़ बताऊं

असल में , ये प्रेम नहीं
सदियों पुरानी रंजिश है।

आदम का हाथ नहीं
इसमें कुदरत की ही कोई साज़िश है।




@सौम्या वफ़ा।©



सोमवार, 11 मई 2020

मर्ज़ी

तुम रौंद दो हमें ये तुम्हारी मर्ज़ी है
हम बनके गुलिस्तां महकते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है
माना की ख़ुशबू़ओं से इंकार
गुलों पे पर्दा
ये तुम्हारी खु़दगर्ज़ी है
हम बाग़ सजाए
 खु़शबुएं बिखेरते रहें
  ये हमारी खु़दगर्ज़ी है
  जितना चाहे बिगाड़ लो चमन की आबो हवा
हम गुल बनकर खिलते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है।


सौम्या वफ़ा।©

गंगा

गंगा मा सब जना पाप धोए
गंगा के को धोई?
तारे तारिनी पापन के पाप
तारिनि के को तारन होई?
जे सुमिरन ,सेवन, हनन
हरास, त्रास सब करएं
जे गंगा सुमिरे मानुस को
ते ना कोहू पूछन वाला होए
साधुअन बड़का करैं बखान
लुच्चे लपाडी़ भी खूब बतियावें
आर्टी पार्टी के सब नेता जन
भर लैं वोटन की खदान
जे होली, दिवाली ,
इलेक्सन के बाद मा
ना कोहू को आवे धान
हर हर कर सब हर लिए
भई गंगा के प्राणन की संत्रास
गंगा की हर संतान
मैला कुचैला सब धोए डारे
धोए डारे सब पाप
अब जे गंगा मैली भई
डूब गई कारिख मा
ले सब कलुअन के पाप
के कारिख धोई गंगा के?
को करि गंगा के उद्धार?
जे पापियन अब चलैं
गंगा मा पाप धोए
पूछा पापियन से
कि गंगा के को धोई?
तारे तरिनी पापियन के पाप
तरिनि के को तारन होई?
गंगा मा सब जना पाप धोए!
गंगा के को धोई?



@सौम्या वफ़ा।