गुरुवार, 28 मई 2020

मैं और इश्क़

तुम्हें इश्क़ है तो शाख़ हो जाओ
मैं लौट कर हर बार तुम तक आऊंगी
जो डालोगे डोरे कै़द के
तो फुर्र फुर्र हो जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो नीला आसमां हो जाओ
मैं महज़ पंछी नहीं परवाज़ भी हूं
मैं उड़ उड़ कर तुम पर छा जाऊंगी
जो चाहोगे कहीं ठहर के बना लें बसेरा
तो बादलों में कहीं गुम हो जाऊंगी।
मुझे नशेमन का शौक़ नहीं
मेरे पंखों में महज़ उड़ानों का ज़िक्र है
शाख़ों से है इश्क़ मुझे
मुझे खौफ़ नहीं खौफ़ का
बस क़फ़स से खौफ़ है
जो चाहो संग जीना
तो ज़िन्दगी बन जाओ
मैं हर परवाज़ पे तुमको जी जाऊंगी।
तुम्हें होना है तो शाख़ हो जाओ
मैं हर बार लौट कर तुम तक आऊंगी।





सौम्या वफ़ा।०


मंगलवार, 19 मई 2020

ज्ञान

ज्ञान ज्ञानी को ही कहिए
ज्ञानी रहिमन, कबीर , मीरा
ज्ञानी साधू, सूफ़ी, पीर
बाकी अज्ञानी की नादानी को तो
अलिफ़ की सीधी चाल भी
टेढ़ी ख़ीर
जो जाने  ज्ञानी जन ज्ञान की बात
ज्ञान बड़ा नहीं सरल सीधी लकीर
बस यही सरल हो सीधा बढ़ना
दुनिया को जाने कितनी भारी पीर ।



सौम्या°

खुशियां

मुस्कानें बांटों
ठहाके बटोरो
बिखेर दो रंग ज़िन्दगी के
जिस राह से भी गुजरो
मगर अपनी खुशियों को ख़ुद में ही छिपा के रखो
खुशियां खज़ाना हैं
छिपी होंगी तो महफूज़ होंगी
बांटने की कोशिश में
लुट जाएंगी सारी की सारी
सब छीन लेगा ज़माना और तुम्हारे हाथ ख़ाली
महफ़िल देखेगी तमाशा और बजाएगी ताली
ख़ुशी तुम्हारी
बस तुम्हारी ही ख़ुदा है
बाकियों के लिए बर्फी या खजूर
या काफ़िर कहलाएगी
इसलिए मुस्काने बांटों
ठहाके बटोरो
बिखेर दो ज़िन्दगी
जिस राह से भी गुजरो
लगे रह गया है कुछ
तो गुल बनकर बिखर जाओ
और खुशबुएं भी बिखेर दो
मगर अपनी खुशियों को
बस ख़ुद में ही छिपा के रखो।


सौम्या°



सोमवार, 18 मई 2020

सहज

निर्मल पावन सी तरंग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
अाई हो कि गई कोई भान ना हो
ऐसी सूक्ष्म अनन्त हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सहजता कोई भाव नहीं एक
शून्य सत्य है
तुम सत्य में विलीन हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सहजता स्थिति नहीं सिद्धि है
तुम एक सिद्ध योग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
सिद्ध शून्य से बड़ा कोई चमत्कार नहीं
तुम स्वयं में विलीन हो
इस चमत्कार से चमत्कृत हो जाओ
मुझमें आती हो बस जाती हो
ऐसे ही कण कण में बस जाओ
अगण्य हो अब
नगण्य हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ
निर्मल पावन सी तरंग हो जाओ
मेरी सांस तुम सहज हो जाओ।


सौम्या॰

शनिवार, 16 मई 2020

एग्जै़क्ट फै़क्ट कविता सिरीज़ -१ ( ब्रेकअप के बाद)

यार कुछ भी कहो मगर ब्रेकअप के बाद
लाइफ़ क्या सही सेटिल हो जाती है
सब एक्सपीरिएंस हो जाता है
डेमो क्लास और मॉक ड्रिल भी हो जाती है
रोज़ रोज़ की क्लास कौन करे
रोज़ रोज़ लेक्चर कौन लगाता है
डेटिंग का टेस्ट पास कर के
फ़िर एग्जाम की तैयारी कौन करे
एक बार टॉप कर के
फ़िर बंदा फे़ल हो जाता है
चीटिंग का कोई चांस नहीं
रिश्तेदारों की पार्टी में
कोई प्रॉक्सी भी नहीं लगवाता है
घर की चारदीवारी से निकल के
बंदा हो या बंदी हो
हो जाए बंदर दोबारा
घर के राजा रानी अब अपन
किंग साइज़ हो या क्वीन साइज़
बिस्तर से लेकर सारा बेडरूम हमारा
ना नहाने धोने की रोक टोक
ना खा़ने पीने का कानून
सोच अपनी शौच अपनी
अपना अधिकार अपना नारा
शादी अगर इंस्टीट्यूट है
तो रिलेशनशिप ट्रेनिंग सेंटर
सिंगलहुड फाइव स्टार आश्रम है
सेल्फ़ लव , भरपूर केयर , इंट्रोस्पेक्शन
इनर कॉलिंग और नए नए एडवेंचर
ब्यूटी पार्लर, मेकओवर
जिम, स्विमिंग, हॉर्स राइडिंग
योगा और मेडिटेशन
हम ही हैं अब अपने रिपब्लिक
हर दम अपनी फ़्रीडम
रात हो जाएं टांगें पसारे
सोएं जी भर के हम
दिन को कोई किच किच नहीं
हर बात पे अपनी सेलिब्रेशन
यादों का टिकट कटा के
करा दिया है इमिग्रेशन
परमानेंट सेटिंग कर ली अपनी
अपने ही संग
चार वर्णों के आश्रम में
ये पांचवा खड़ा है सर्वोत्तम
जैसे गट फी़लिंग के साथ कंपैटिबल हो
बढ़िया सिक्स्थ सेंस
हम हैं सेल्फ़ डिपेंडेंट
ना काहू का भय
ना काहू से पराक्रम
हमको पसंद है अपने साथ अपनी ही कॉम्बिनेशन
दिल टूटा तो  बोला
अमी एकला चलो रेे
ज्ञान आवे जब ईगो जावे
फ्ऱस्ट्रेशन के संग
अब हम ही बुद्ध
हम ही कन्हैया
हम ही हैं कंस
हम तो मज़े में हैं जी रहे
जलता है तो जले देख देख संसार
कहें लोग घर बसा लो
हम तो भैया घर में ही रहते हैं
तुम जो बताओ
उसे कहते सैल हैं बाकी हिंदी में कारागार
जेलर तुम गले ना बांधों
टेंडर टिंडर , गृंडर का सब है यहां
नहीं तो सबके सुख दाता जगन्नाथ
रुको रुको सुनते जाओ
हाउसफुल है अपनी कंपनी
बाकी सब तुम्हारी इमैजिनेशन
बाकी मजबूरी की बात न बतियाओ
 उसमें नहीं है कोई कनविक्शन
बच्चे वच्चे की चिंता ना करो
नौकरी भी है , आई ॰ वी॰ एफ ॰ भी
और लीगल है अडॉप्शन
नहीं तो सेरोगेसी भी है
और स्पर्म डोनेशन का भी है ऑपशन
तुमको संसारा फिकर घंटा नहीं
तुमको चाहिए बस सेंसेशन
तुम्हारी कॉज़ से हुआ है जो लॉस
उसका कौन भरेगा कंपनसेशन
अब अर्जी फर्जी चिट्ठी ना डालो
ना भेजो एप्लिकेशन
सिस्टम हमारा फुल है
ना वायरस भेजो
ना भेजो बग का टेंशन
तुमने हमेशा पढ़ाई दो दूनी चार
हम एक इक्कम एक हैं
बाकी ज़्यादा गरियाओ ना
सुबक सुबक के घबराओ ना
हम जानते हैं दूने चौगुने लोगों की
इकहरे से सुलग जाती है
तुम्हारी चलती होगी अपने घर
हमारी दौड़ जाती है
इसी बात से बस सब लोगों की
भन्नाती है
यार कुछ भी कहो मगर ब्रेक अप के बाद
लाईफ़ क्या सही सेटिल हो जाती है।




@सौम्या वफ़ा।©





शुक्रवार, 15 मई 2020

ग़ज़ल

तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की
नर्मी क्यूं चुरा ले गए
उतरती थी इतरा के पन्नों पर जो स्याही
उस सुर्ख़ श़बाब की
शो़खी क्यूं  उड़ा ले गए
महकता था जो पन्नों पे
कन्नौज का श़हर
उस बसे बसाए श़हर की
ख़ुशबू क्यूं  चुरा ले गए
मेरे शामियाने में आती थी
ज़रा देर से सहर
तुम गए तो गए
मगर ये रात के पैराहन
क्यूं उतार ले गए
मेरी आंखों सी बोलती थी मेरी क़लम
तुम गए तो गए मगर मेरी क़लम को
आख़िरी कलमा क्यूं पढ़ा गए
तुम गए तो गए
मगर मेरी हर ग़ज़ल को
नाम शायर क्यूं रटा गए
आब को आग़ से क्यूं बुझा गए
तुम गए तो गए ग़म नहीं
साथ नाज़ुक नज़्मों की नर्मी क्यूं चुरा ले गए?



@सौम्या वफ़ा।©




स्पेशल मेनू

एक थाली चांद का ऑर्डर
एक कटोरी सूरज
बारिश़ की रोटी
बरखा़ का साग
पतझर के नमक
और बहारों के गुलकंद
गर्मी की कुछ तीखी मिर्च
और ठंड से ठिठुरता
घी संग गुड़
मिलेंगे क्या जी भरने को
फ़िर से क़िस्मत के ढाबे पर
दो बिछड़े हाथ
स्पेशल मेनू के कुछ सूखे पन्नों के साथ!



सौम्या वफ़ा।©

कुछ हवा कुछ हैरानी


तुम ठंडी ठंडी सी बहती हवा
और मैं लहराकर उमड़ता पानी
तुम शान्त सहज शीतल सी चितवन
मैं बिखरी बिखरी सिमटी सी सुंदर
तुम चित्त शून्य एक
मैं महके महके रंग अनन्त
तुम सुलझी सुलझी सी उलझन
मैं उलझी उलझी सी सीधी सरल
तुम नील गगन के पन्ने अनेक
मैं उससे बरसती स्याही
तुम थोड़े सच्चे झूठे मौजी मगन
मैं कच्ची पक्की सी सच्ची लगन
मैं तुम्हारी जली बुझी सी धूनी की लौ
तुम मेरी भीगी भीगी
भीनी सी हैरानी
तुम ठंडी ठंडी सी हवा
और मैं लहराकर उमड़ता पानी।





सौम्या वफ़ा।©
(26.4.2020)

शब्दों का जादूगर

वो शब्दों का जादूगर था
शब्दों के लिए जज़्बातों को बेच आया था
उधारी पर बड़े बड़े तोहफ़े खूब लाया था
जिगरा तो था ही नहीं ,
 दिल भी गिरवी रख आया था
 बहानों की लंबी चौड़ी फ़ेहरिस्त भी
 ज़ुबान पर उतार लाया था
 उसके दिल में क्या था वो ही जाने
 या राम जाने
 जिस राम का ढोंग वो
 कृष्ण से कर आया था
 चढ़ाने को जिस्म की अंगीठी पर
 राशन भरपूर लाया था
 मगर दिल की अधगली दाल में
 पंसारी से कंकड़ भरवा आया था
 सौदे का खरा था
 इरादों का नहीं
 लेकर प्यार का सारा
 कच्चा माल
  चौगुने मोल में
 पैकिंग नई कर के देता जा रहा था
 कोरे पन्नों को शुरू शुरू में पैकिंग
 का नया रंग
 दिलो जान से भाया था
 रंग उतरा तो अन्दर
 सब निल बटे सन्नाटा छाया था
 बड़बोली उसकी शब्दों की
 दुकान पर मैंने उस दिन
 अलीगढ़ी ताला पाया था
 सुना है अपने ही घर उसने चोरी की थी
 और वहीं बिस्तर पर
 मेरा प्यार बिसरा आया था
 उसके हाथ में मैंने
  अपने घर की चाबी दी थी
 वो जाने कहां गिरा आया था
 जादूगर से वो सीधा बन गया जोगी
 लेकर गायब हो गया था
 मेरे खज़ाने भरी तिज़ोरी
 कर के सच की बत्ती गुल
 अंधेरे की धूल आंखों में झोंक कर
 वो सबको अंधा कर आया था
 वो शब्दों का जादूगर था
 शब्दों के लिए
 जज़्बातों को बेच आया था।




@सौम्या वफ़ा।©


मॉडर्न मजनूं

ये कथा है मॉडर्न
छैल छबीले मजनूं की
उसकी चंगुल में फंस गई
उड़ती फिरती स्वतंत्र लैला की
लैला के उसने पंख सजाए
 ख़ुद नए नए रंगों से
बोला उसने जब
 मैं उडूंगी अब
इतराते खुले गगन में
मजनूं ने बोला जा मेरी लैला
फुर्र फुर्र उड़ आ
सोचना ना मैं शिकारी हूं
मैं तो दिन रात करता रखवाली हूं
डालूंगा तुम्हारे गले में रस्सी
तुम उड़ आना जहां तक हो
मेरी मर्ज़ी
लैला बोली , तुम तो बड़े
मतलब के साथी हो
पंख हैं सजीले
 मगर उड़ने से कतराते हो
कहते हो आशिक़ हो
पर हरकतें तुम्हारी बनिया सी
बेहिसाब मेरे प्यार का
जोड़ तोड़ हिसाब लगाते हो
एक भी करूं पुकार मनुहार
तो कभी खीजते कभी खिसियाते
कभी बत्तीसी दिखलाते हो
लेकर गाड़ी लगाकर हैट
सूट बूट पहने झोला दाबे
हाथों में मेरा हाथ थाम
कभी पिक्चर कभी मेले में ले जाते हो
प्रॉब्लम है दिल की
पार लगाना है अनमोल ज़िन्दगी
और तुम दिखलावे को
मार्केट प्राइस में बिकता हुआ
 पैक गिफ्ट ले आते हो
अच्छी अच्छी गप गप करके
कड़वी कड़वी सब थू कर जाते हो
प्यार जताने को अंधेरे में ले जाते
सपनों के सितारे दिखलाते हो
बातें करवा लो लंबी चौड़ी
पर जिम्मेवारी नहीं उठाते
कहते हो हम हैं जीवन साथी
इधर उधर टहलाते जाते
पर हाथ मांगने कभी घर नहीं आते हो
इरादे तुम्हारे नेक नहीं
तुम होगे अंट्रू
हम ट्रू हैं फ़ेक नहीं
तुम्हारे फ़ोन का पासवर्ड
 होगा बहरूपिया
हमारा तो ओपन सीक्रेट है
कोई लॉक नहीं
समझ गई हूं तुम्हारी नियत में ही डेंट है
गट फीलिंग में मेरी दम
सेंट परसेंट है
मजनूं मेरे प्यारे
रख लो तुम अपने रंग सारे
ख़ुद को लगा लो ये रस्सी
और ख़ुद पे डालो पांसे
माना तुमने खेल रचाने में
बहुत ख़ूब मेहनत की थी
सुन लो मेरे प्राण प्यारे
ये कथा यहीं तक ही थी
तुम्हारे इस प्रेम गेम का
अब ये दी एंड है।



@सौम्या वफ़ा।©


अजायबघर

ज़िन्दगी एक कांच का अजायबघर
अजूबे की माया है
चील कौओं की लड़ाई
बंदर बांट का तराज़ू
गीदड़ की दादागिरी
शेर की सिट्टि पिट्टी गुम
चूहे की चालाकी
सांप की जकड़न
जमूरे के नाच का आंगन
जादूगर का पिटारा है
किसी के पेट की मरोड़ें
किसी के हाथ की रेखा
किसी की घिस चुकी बट्टी
किसी का टूटा सिलबट्टा
किसी के माथे का सितारा है
किसी की पिस्ती चक्की
किसी के चाक से उतरा पहिया
किसी की ऊंची उड़ान
किसी की लंबी छलांग
किसी की तेज़ रफ़्तार
किसी के आहिस्ते चलने का हुनर
किसी की झटपट धरपकड़
किसी का सधा शिकार
किसी के बच निकलने की अदा है
किसी के पंखों में सतरंगी रंग
किसी के पंख पसारना भी ज़ाया है
कोई जिए ऐसे जैसे सब है आज
कल फिर कभी होगा नहीं
कोई जिए कल - कल में
जैसे आज का मोल भाव
सेंसेक्स में जाना नहीं
किसी के ख़्वाब हकीकत हैं
किसी का ख़्वाब देखना
बेवकूफी़ का तानाबाना है
कोई उड़े लेकर जेट प्लेन
कोई उड़ जाए भरकर जेबों में बैंक
कोई दो वक़्त की रोटी लूटे
किसी की कॉफ़ी की कीमत
महीने भर का राशन है
कहीं रोल्स रॉयस ,लीमोसीन
कहीं जगुआर और वॉल्क्स वैगन है
कोई खींचे हाथ गाड़ी पर गिरस्ती
कोई पटरी के नीचे आ जाए
कोई सड़क पर ही जन दे बच्चा
कोई तोड़ कर रीढ़ खींचे
ट्राली बैग पे जच्चा
किसी को भाए पिंजरे में रहना
कोई खुली हवाओं का हमसाया है
कहने को बस नाम आदम है
फ़र्क मगर सिर्फ़ इतना है
कोई जानवर है
कोई जनावर है
किसी ने सजाया किसी ने बेचा
किसी ने पाया किसी ने गंवाया है
ज़िन्दगी एक कांच का अजायबघर
अजूबे की माया है।


सौम्या वफ़ा।©

धरती आकाश

धरती तो धरती है
जैसी की तैसी है
गिरगिट सा रंग बदले सारा आकाश
कभी धुला धुला नीला
कभी फीका काला धुंधला
कभी ग़ुलाबी कभी
सुनहरा कभी नारंगी है
धरती की वफ़ा एक तरफा
बावरी सी काटे प्रेम के चक्कर
पर आकाश का चाल चलन
अतरंगी है

कैसे निभे दोनों में
रोज़ क्षितिज पर मिलने की हो बात
धरती बैठी रहे लगाए आस
मगर आकाश के तो हैं रसीले ठाठ
चाहे जितने लगा लो जुगत उपाय

पर इधर सूरज ढला और
उधर  बिगड़ जाए हर जुगाड़
सुनाने को मिले कोई तो सुनाऊं
ये कसक की कहानी

सुनने में बड़ी सुहानी लगती है
करीबी हो कोई अगर
तो ही ये राज़ बताऊं

असल में , ये प्रेम नहीं
सदियों पुरानी रंजिश है।

आदम का हाथ नहीं
इसमें कुदरत की ही कोई साज़िश है।




@सौम्या वफ़ा।©



सोमवार, 11 मई 2020

मर्ज़ी

तुम रौंद दो हमें ये तुम्हारी मर्ज़ी है
हम बनके गुलिस्तां महकते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है
माना की ख़ुशबू़ओं से इंकार
गुलों पे पर्दा
ये तुम्हारी खु़दगर्ज़ी है
हम बाग़ सजाए
 खु़शबुएं बिखेरते रहें
  ये हमारी खु़दगर्ज़ी है
  जितना चाहे बिगाड़ लो चमन की आबो हवा
हम गुल बनकर खिलते रहेंगे ये हमारी मर्ज़ी है।


सौम्या वफ़ा।©

गंगा

गंगा मा सब जना पाप धोए
गंगा के को धोई?
तारे तारिनी पापन के पाप
तारिनि के को तारन होई?
जे सुमिरन ,सेवन, हनन
हरास, त्रास सब करएं
जे गंगा सुमिरे मानुस को
ते ना कोहू पूछन वाला होए
साधुअन बड़का करैं बखान
लुच्चे लपाडी़ भी खूब बतियावें
आर्टी पार्टी के सब नेता जन
भर लैं वोटन की खदान
जे होली, दिवाली ,
इलेक्सन के बाद मा
ना कोहू को आवे धान
हर हर कर सब हर लिए
भई गंगा के प्राणन की संत्रास
गंगा की हर संतान
मैला कुचैला सब धोए डारे
धोए डारे सब पाप
अब जे गंगा मैली भई
डूब गई कारिख मा
ले सब कलुअन के पाप
के कारिख धोई गंगा के?
को करि गंगा के उद्धार?
जे पापियन अब चलैं
गंगा मा पाप धोए
पूछा पापियन से
कि गंगा के को धोई?
तारे तरिनी पापियन के पाप
तरिनि के को तारन होई?
गंगा मा सब जना पाप धोए!
गंगा के को धोई?



@सौम्या वफ़ा।

रविवार, 10 मई 2020

अंजुली

कभी मुट्ठी में बंद था
अंजुली भर सारा आकाश
मुट्ठी खुली तो कैद से छूटा आकाश
सारे आकाश पर है अब
 खुले पंखों की छाप
 बिखर गए मोती जाली
रह गई सच की कंठी साथ
फिसले जादू के महल सारे
छूट गई हाथ से
बेहरूपिए की ताश
एक  अंजुली सागर समान
जाने ना आकाश का अभिमान
मिली अंधेरे में सच की लौ
जब छोड़ा मुट्ठी से कांच
ना रहे डर में छिपे चेहरे नक़ली
 ना रहे स्वारथ चाशनी के पाश
अज्ञानी की राह से उड़ गई अंजुली
पंछी बन नील गगन के उस पार।



@सौम्या वफ़ा।©®

शुक्रवार, 8 मई 2020

दौर

कभी इक दौर था हम भी हक़ीक़त नहीं
ख़्वाबों में जीते थे
बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे
टेढ़ी हर लकीर को सीधी कर लेते थे
किसी के घर सुबह की रौनक को
अपनी रातें काली कर लेते थे
भूल आते थे जानकर उनके घर छतरियां
जिनके घर बारिश में भीगे थे
थोड़ा उनके प्याले की मिठास बढ़ाने को
ख़ुद की चाय फीकी कर लेते थे
महके किसी का आंगन सौंधा सौंधा
माटी सा
हम ख़ुद की ज़मीनें बंजर कर देते थे
वो पूछें महकी है कहां से ये ख़ुशबू
तो बदल बदल कर नाम
इत्रों पर इल्ज़ाम मढ़ देते थे
छिपकर मगर दरअसल
अश्कों से मूंह धोते थे
कभी वो रूठें तो रो पड़ते
कभी वो मनाते तो खिलखिलाकर हंस देते थे
मासूम से थे पर नादान नहीं
जानते थे सौदा है महंगा
और हम ठहरे फ़कीर अनाड़ी
कौड़ी को हीरे के भाओ तोलते  थे
फ़िर भी किश्तें पूरी करने को
बार बार मुहब्बत गिरवी रख देते थे
कभी इक दौर था हम भी हक़ीक़त नहीं
 ख़्वाबों में जीते थे
 बातों नहीं जज़्बातों को सीते थे ।


सौम्या वफ़ा।©