शुक्रवार, 30 अक्टूबर 2020

जाना क्या कभी तुमने जाना

 जाना क्या कभी तुमने जाना

क्यूं शुरू होती है कोई कहानी

और क्यूं ढल जाता है 

कोई अफ़साना

कैसे बन जाता है कोई शायर

और कैसे उभर आते हैं

किसी गज़ल के सीने पे 

काफ़िए काफ़िराना

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि क्यूं सुबहों की सूरत

मिलती है शामों से

क्यूं लगती हैं

आते हुए पंछियों की कतारें

वैसी की ही वैसी,

जाते हुए

हर बार कैसे पिघल कर

गुम हो जाता है सूरज

मगर जाने से पहले

हर रंग दे जाता है

जवां होती शामों को

अपने जादुई पिटारे से

जाना क्या कभी तुमने जाना

कैसे शाम की उमर इतनी छोटी

मगर दिलकश़ होती है

जैसे दो दिलों में

पहली मुहब्बत होती है

थोड़ी देर को ही सही

एक आसमां में चांद सूरज

साथ साथ जल रहे होते हैं

एक के गुज़र जाने से पहले

इसी शाम के छोटे से शामियाने में

और दूसरा जलता रहता है

मुहब्बत के दाग़ लिए

जिनसे फूटती है फ़िर

उसकी अपनी ही रोशनी 

अंधेरों में उजाले किए

और आहिस्ते से बदल जाता है

जवां शामों का क़िस्सा

नीली स्याही में ढली

चुपचाप दमकती

बूढ़ी हो चली रातों में

जैसे रात ने जान लिया हो राज़ ये

कि ख़ुशी है बेइंतेहा गहरी

जब किसी से किसी ख़ुशी की

कोई ख़्वाहिश़ ना रह जाए

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि कैसे रात 

अपने सारे ज़ेवर उतारकर

दे देती है सुबहो को

क्यूंकि हर नई सुबह आती है

एक कोरा पन्ना लेकर

जिसे रात जगह देती है

ख़ुद को खो कर

अपने भरम के सारे ज़ेवर

पीछे छोड़ कर

स्याह से फ़िर सफ़ेद हो सकती है

सुबह के पन्नों पर

एक नई दास्तां लिख कर

जाना क्या कभी तुमने जाना

कि कु़दरत के सबसे नायाब रिश्ते

जानते हैं एक दूसरे के लिए होना

वो जानते हैं एक दूसरे को उनकी

मकबूल जगह देना

और ख़ुद दिए वक़्त में

जी भर के जी लेना

लेकिन तुम चाहते थे

मुझसे सब कुछ ले लेना

और बदले में

जीने को जितनी जगह

और वक़्त ज़रूरी है 

वो भी ना देना

तुम्हारा आना उस हसीं शाम की तरह

बेहद दिलकश़ और ज़रूरी था

मगर उससे भी ज़रूरी था

तुम्हारा चले जाना

उस वक़्त का गुज़र जाना

ताकि, मैं रात बन सकूं

और अपनी, कहानी लिख सकूं

आख़िरी करवटों से 

भोर की दस्तक पर

जाना क्या कभी तुमने जाना

जो ना जाना तो क्या ही जाना

पर जो जाना तो इस गुजरते ज़माने से

गुज़र जाने से पहले

ख़ुद को ज़रूर बताना और मुस्कुराना।


सौम्या वफ़ा।©


बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

अपना पता

 भीड़ में खोए मन को, 

जब अपना पता मिल जाता है 

यूँ समझ लो,

 बस उस घडी 

पत्थर में,

 ख़ुदा मिल जाता है 

सुबहो का रंग,

शामों पे 

खिल  जाता है 

एक ही फ़लक  पे 

चाँद और सूरज 

जगमगाता है 

रातें भटकती नहीं,

 फिर कभी तनहा 

तारों का पूरा 

काफ़िला साथ आता है 

दिशाओं का 

 होता नहीं, कोई भरम;

वक़्त,खुद ही रास्ता दिखाता है 

भीड़ में खोये मन को 

जब अपना पता मिल जाता है 

यूँ समझ लो बस उस घडी; 

पत्थर में खुदा मिल जाता है। 


- सौम्या वफ़ा। ©

पता

 कुछ कुछ मिल सा गया है

 जो खोया था पता, 

लापता ज़िन्दगी का 

फ़िर मिल रही है कोई 

दहलीज़ 

जिसपे खुलता है दरवाज़ा, 

अपने आँगन का 

मिल रहा है कोई, कोना 

अपनी खिड़की, 

अपने झरोखों का 

फ़िर मिल रहा है 

कोई बहाना 

बेघर को एक, 

घर होने का 

कच्ची टूटती; 

आसमां ताकती, नींदों का 

ज़मीं पे सुकूँ का, 

अपना एक बिछौना होने का 

आ गया है साँसों का तार, 

संदेसा लेके 

ख़ुदी के:

 ज़िंदा होने का 

दर बा दर  के 

अंदर ही 

अपना समंदर होने का 

बेमानी ख़्वाहिशों से ख़ाली, 

एक नयी फ़ज्र होने का 

दीन दुनिया के दस्तूरों 

के दरबार से दूर 

एक देहरी पे; 

अपना भी सर होने का,

हमपे ज़िन्दगी के असर होने का 

कुछ कुछ मिल सा गया है 

जो खोया था पता 

लापता ज़िन्दगी का।  

कुछ कुछ मिल सा गया है 

जो खोया था पता 

लापता ज़िन्दगी का।  



- सौम्या वफ़ा। ©


रविवार, 11 अक्टूबर 2020

मिलन

 पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया हों नील गगन

और मैं बरस जाऊं

बन घटा मेह

पिया संग बन कर्पूर

जले जिया, जले देह, जले दिया

मलूं आंखों में बना के अंजन

रात की काली कालिख

पारूं हथेलियों के बीच

सुरमई चांदनी

महके केवड़ा

बिखरे बेला

रंग एक लागे

दो तन पे, केसरिया

ना चूड़ी, पाज़ेब

ना चुंदरिया

बाजे बस सांसों की सारंगी

उतरे, लिपटे बस एक सी दो परछाई

लाज की माथे से बिंदिया

बाहों में भर उतारें पिया

मैं मल लूं गालों पे

गुलाबी भीनी अबीर

एक रंग नीला वो बन मीत साजें

एक रंग लाली बन

मैं हो जाऊं प्रीत

एक रंग मिलन का हो 

गहरी हरियाली

पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया से मिलूं तो

मिलन यूं होवे

पिया हों नील गगन

और मैं बरस जाऊं

बन घटा मेह।


सौम्या वफ़ा।©


रात रात भर रात रानी जगे

 रात रात भर रात रानी जगे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

बेला, जूही को पलने पे सुलाके

चली रात रानी हवा पे बैठ

सजधज गोरी के गजरे पे

उतरने को पिया के सिरहाने

गेसू खोले गोरिया

पिया होए मदहोश

रात रानी का ऐसा जादू

सुभो तक ना आए

पिया को होश

सेज में पिस जाए रात रानी

पिस जाए जैसे चन्दन संग

महका पानी

धूप सेंक थकी पाती दिन भर सोए

रात ढले बन बावरी

रात रानी

बन ज्योत जले

महके रूप में

दहकती चांदनी सजे

चांद की सीत लागे

रात रानी की प्रीत जगे

पिया संग बावरी

सबा पे सेज डाले

खिले रात के गहरे

रहस्य के रस में

भर भर नैनों में

पी पी पुकारे

रात रात भर रात रानी जगे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

महके भीनी बावरिया

पिया को पुकारे

रात रात भर रात रानी जगे।


सौम्या वफ़ा।©°

औरत बनने की क़ीमत और प्रक्रिया

 तुम क्या गए, मानो 

मैं ही इस जहां से चली गई

मेरी स्याही में डूबी

हमारी खुशबुएं

तीखी तेज़ धूप में सब 

सूखकर उड़ गईं

मेरे जिस्म में कै़द कस्तूरी

जिसका पता सिर्फ़ तुमको मालूम था

उस पते पर अब तुम्हारे बिना

नहीं आती है कोई चंचल हिरनी

नहीं आती है चौखट पे कोई 

पाक  देवी

रातों में अप्सरा, 

दिन में कोई दोस्त या सहेली

तुम आए थे जब, तो वादा किया था

मेरे रंगीन पंखों से दुगने चढ़ा के रंग

भरोगे मेरे कोरे पन्नों पर 

नीला आसमान

वो आसमां जिसमें खुली आंखों से देखो तो

सात रंग होते हैं

और आंखे बंद कर के देखो 

तो

हम तुम होते हैं

तुमने उतार तो लिए मेरे ही पंखों से रंग हज़ार

मगर पन्नों पर पीछे मुड़ के देखने को

एक दाग़ भी ना छोड़े

पन्ने तो थे ही कोरे

अब पंख भी हैं निरा सफ़ेद

हां वही सफ़ेद जो मेरा सबसे प्रिय रंग है

अब उसी रंग की मैं भी हूं

 बिल्कुल सफ़ेद

यानी हर रंग का आदि, उद्गम हूं मैं

पहले गुलाबी थी, फ़िर तुमने हरा कर दिया

तुम्हारे रंगों ने नीला, तुमसे दूरी ने पीत

और तुम्हारे धोखे ने बिल्कुल सूखा भूरा

फ़िर भी क्या ही हुआ

सुबह हुई, रात हुई। 

हर दिन यूं ही हुआ

और फ़िर चढ़ गया धीरे धीरे मुझपे

सुबह का लाल, और रात का काला

बीच में सब झक सफेद

और कोई रंग चढ़ाओ तो

पन्नों से सब उड़ जाता है

जैसे तेज़ हवा से हैरान

टूटी शाख़ पे बैठा

उम्मीदों का ढेर

और पंखों से फिसल कर बिखर जाते हैं रंग

जैसे दो हथेलियों के बीच

फिसल जाती है

बिना नींव की रेत

यूं ना समझना ये सिर्फ़ शिक़ायत थी कोई

मुझे एक आख़िरी बार तुम्हारा शुक्रगुजा़र होना था

जो तुम आए तो नाज़ुक सी छुईमुई को तोड़ मरोड़

कोमल कलियों को पीछे छोड़

बना गए अनचाहे ही मज़बूत पेड़

पहले तुम्हारे आसमां के सपनों में उड़ती थी

इसलिए आ गई ज़मीं पर

और खाई हैं चोटें गहरी

मगर जहां ये चोटें थीं

वहीं से अब

जमीं हैं ज़मीं की कोख़ तक

मेरी जड़ें गहरी

एक लड़की जो कभी थी

वो अब ना ख़ुद को जानती है

ना पहचानती है

अब वो जीती है हर दम ख़ुद में

एक ही पल में

सृष्टि रचने वाली औरतें कई

तुम गए तो सचमुच साथ में

मेरा भोलापन, मेरा अल्हड़पना

मेरी नादानी चली गई

अम्मा जानती हैं

अब बिटिया सयानी हो गई

मगर किसी से कहती नहीं है

उन्हें ज़रूर ख़बर है

कैसे सयाना होने में

बचपन खोया

कैसे जवानी खो दी

कि औरत को औरत गढ़ने में

सांचा आज भी

मर्द का धोखा ही है

तुम क्या गए मानो मैं ही इस जहां से चली गई

अम्मा फ़िर भी जब तब अलापती हैं

बिटिया परजीवी पुरुषों की दुनिया में

अक्सर,

औरत बनने की क़ीमत और प्रक्रिया यही है।


सौम्या वफ़ा।©











शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

निंदिया

 रात ढले निंदिया उड़ जाए 

पलकों के टूटे पंख लगाए

कड़वी कड़वी आंखों में कच्ची कच्ची 

दुनिया चुभ जाए

निंदिया की राह तके बिन

थकी अंखियां मानें ना

उतर के निंदिया आए इस बार

तो अंखियों में नए सपने सजाएं

सपनों का मीठा जो फ़िर से लागे

पलकों का कड़वा मिट जाए

सूखे सूखे आंखों के सेहरा में

कोई बारिश दे जाए

टूटे पंखों पे फ़िर लगाऊं

गुलाबी गुलाली गुब्बारे

बरसे तपते चेहरे पे हों 

ठंडे भीगे बोसे से फ़व्वारे

एक टूटे जो कहीं दूर सितारा

मैं बांट लूं उसे रात से आधा आधा

दबी दबी सी हंसी मेरी

फ़िर से खुल के खिलखिलाए

पर्दे के पीछे लुका मन

झाँ कर के झट से बाहों में आ जाए

ये चाहूं रात रात भर

और जाने कब नींद आ जाए

टूटे फूटे पंखों से

माथा सहला जाए

खुल गई जो आंखें गर

तो जादू सा सब गायब

जानूं मैं वो थी अभी यहीं

 जो देखूं कि

सिरहाने छूटे छूटे से रंग दे जाए

तकिए पे साए के साथी

नीले गुलाबी से हो जाएं

और निंदिया फ़िर उड़ जाए

पलकों के टूटे पंख लगाए।


सौम्या वफ़ा।©

रविवार, 4 अक्टूबर 2020

छोटा सा है मन भौरा

 छोटा सा है मन भौरा 

 और दुनिया कितनी बड़ी 

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली 

खाली पेट से पुकार 

लगाती प्यास है चख ली 

हर क़िताब  के बीच है लगा के रखा 

अपनी निशानियों का बुकमार्क 

हर बूँद पे पानी से 

अपनी तस्वीर खींच ली 

छूटी थी कहानी जहाँ 

वहां नयी शुरुआत लिख ली 

जले जितना और उड़े उतना 

मन भौरे ने जलते जलते 

भाप से हवा में फुर्र हो 

घुल घुल 

बरस  जाने की 

जादू भरी 

तरक़ीब है सुन ली 

छोटे से मन भौरे ने 

जाने अनजाने 

सारी दुनिया है तक ली 

प्यासे मन ने  जाने कैसे 

समंदर पे ग्लूकोज़ एनर्जी 

 की छड़ी घुमा दी है 

ख़ारी  ख़ारी  सब लहरों पे 

मिश्री है मल दी 

झीने झीने पंखों से  

पीछे छूटे सब जूठन की 

ऊँगली चट रेसेपी गढ़ ली 

जो लिखी ना गयीं उन क़िताबों 

को जी के 

भौरे की सूझ बड़ी बढ़ गयी 

पहले सपनों को मैं पकाने की 

करती रहती थी दिन रात तैयारी 

अब सपनों ने मुझको 

मद्धम मद्धम पकाने की 

पक्की सारी  तैयारी है कर ली 

बड़े दिनों से थी अनबन 

अब जाके मुसाफ़िर ने 

टूटी फूटी सब राहों से 

 है यारी कर ली 

जितनी भी थीं तस्वीरें 

सब औरों की थीं 

औरों में से कितनी तो 

ग़ैरों की थीं 

ख़ुद  को खोज के मैंने 

ख़ुद  ही ख़ुद की तस्वीर  बदल ली 

बदली तस्वीर पे नई तकदीर गढ़ ली

छोटे से मन भौरे ने 

 जाने अनजाने ही 

सारी  दुनिया है तक ली 

ऊंचे ऊंचे सपनों की 

हर क़िताब है चख ली । ...  



सौम्या वफ़ा। ©